भारत की स्वतंत्रता के लिए आज़ादी का संघर्ष छेड़ा गया। यह संघर्ष 1857 से लेकर 1947 तक चला। स्वाधीनता संग्राम की चिनगारी 1857 में तब भड़की जब ब्रिटिश कंपनी में काम करने वाले सिपाहियों ने अंग्रजों के खिलाफ विद्रोही बिगुल फूंक दिया। 34वीं नेटिव इन्फैंट्री के जवान मंगल पांडे ने अपने सारजंट मेजर पर गोली चला दी। लक्ष्मीबाई , कुंवर सिंह , नाना साहब और खान बहादुर के नेतृत्व में हुई क्रांति पर काबू पाने के लिए ब्रिटिश सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी
भारत का स्वतंत्रता आंदोलन सही मायने में मास आंदोलन तब बना जब महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका से लौटे और आंदोलन की कमान संभाली। साउथ अफ्रीका में अजमाए सत्याग्रह का गांधीजी ने यहां भी बखूबी प्रयोग किया। 1857 की महान क्रांति पर काबू पा लेने वाली अंग्रेजी सरकार गांधीजी के अहिंसक आंदोलन के सामने पस्त नजर आने लगी। इसका कारण था कि कांग्रेस जो पहले सिर्फ एलीट क्लास का संगठन थी, उससे बड़े पैमाने पर आम भारतीय नागरिक जुड़ने लगे। लोगों को लगने लगा कि कांग्रेस द्वारा चला जा रहा आंदोलन उनके हित में है।
तिलक वह पहले शख्स थे जिन्होंने 'स्वराज का नारा' दिया। तिलक ब्रिटिश शिक्षा का जबर्दस्त विरोध करते थे, जिसमें भारतीय मूल्यों को दरकिनार कर दिया गया था। उनका मशहूर नारा- स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा- भारतीय जनमानस का नारा बन गया।
लाल, बाल, पाल यानी लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और बिपिन चंद्र पाल कांग्रेस के गरम दल के 3 स्तंभ थे। इनका मानना था कि आजादी याचना से नहीं मिलती, बल्कि इसके लिए संघर्ष करना पड़ता है।
देश में बह रही परिवर्तन की हवा को दबाने के लिए 1919 में रॉलेट ऐक्ट लाया गया। रॉलेट ऐक्ट को काले कानून के नाम से भी जाना जाता है। इस कानून में वायसरॉय को प्रेस को नियंत्रित करने, किसी भी समय किसी भी राजनीतिज्ञ को अरेस्ट करने के साथ-साथ बिना वांरट किसी को भी गिरफ्तार करने का अधिकार देने का प्रावधान था। इसका पूरे भारत में विरोध किया गया।
1919 में जलियांवाला बाग में रॉलेट कानून का विरोध करने के लिए जमा हुए निहत्थे भारतीयों पर जनरल डायर ने गोलियां बरसाईं। 10 मिनट तक निहत्थी भीड़ के सीने छलनी होते रहे। सबसे बड़ी बात यह कि डायर ने गोली चलाने का आदेश देने से पहले कोई चेतावनी देना भी उचित नहीं समझा। इस नरसंहार में 379 लोगों की जान गई। इस दौरान डायर ने करीब 1650 राउंड फायर करवाए। 3 मार्च 1940 को ऊधम सिंह ने डायर को लंदन में गोली मार दी।
गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार के दांत खट्टे कर दिए। देश स्तर पर होने वाला यह पहला आंदोलन था। इसके पहले जितने भी आंदोलन थे, वे देश के किसी न किसी भाग तक सीमित थे, लेकिन असहयोग आंदोलन ऐसा आंदोलन था जिसमें पूरे देश की जनता ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। ब्रिटिश सरकार समझौते के लिए तैयार हो ही रही थी कि चौरी चौरा कांड हो गया और गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया।
भारत में क्रांति के नायक क्रांतिकारी अरबिंदो घोष ने जुगांतर नाम का क्रांति दल बनाया। इसके बाद अलीपुर बम केस, मुजफ्फरपुर की हत्याओं ने इस विद्रोह की शुरुआत की ओर इशारा किया। इन मामलों में शामिल रहे कई लोगों को उम्रकैद जबकि खुदीराम बोस को फांसी की सजा सुनाई गई। 1920 में आजाद ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन तैयार की। पब्लिक सेफ्टी बिल के विरोध में बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को असेंबली में बम फेंका। असेंबली बम केस में बाद में भगत सिंह , सुखदेव व राजगुरु को 1931 में फांसी पर लटका दिया गया।
12 मार्च 1930 को साबरमती से अपने 78 सहयोगियों के साथ गांधीजी ने दांडी यात्रा शुरू की। 240 मील लंबी यात्रा में हजारों लोग शामिल होते गए। गांधीजी ने दांडी पहुंचकर नमक कानून तोड़ा। इस नमक कानून के बारे में उन्होंने कहा था कि पानी से पृथक नमक नाम की कोई चीज नहीं है जिस पर कर लगाकर राज्य करोड़ों को भूख से मार सकती है, बीमार असहाय और विकलांगो को पीड़ित कर सकती है। इसलिए यह कर अत्यंत अमानवीय है, अविवेकपूर्ण है।
गांधीजी ने 3 बार यह आंदोलन छेड़ा। पहली बार यह आंदोलन 1930 में नमक कानून को तोड़कर प्रारंभ किया गया। गांधीजी ने यह आंदोलन अप्रैल 1934 में वापस ले लिया। सिविल नाफरमानी की ताकत को समझाते हुए गांधीजी ने कहा था- मान लें कि भारत के 7 लाख गांवों में से हर एक से 10 व्यक्ति सत्याग्रह में भाग लेकर नमक कानून तोड़ते हैं, वैसी स्थिति में आपके विचार में यह सरकार क्या कर सकती है।
26 जनवरी 1930 को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया गया। हालांकि यह एक बड़ा आंदोलन था लेकिन इसी दौरान आजादी मांगने के सवाल पर कांग्रेस में तेजी से 2 दल उभरे। एक वह जो आजादी के लिए अहिंसा को ही एकमात्र सही तरीका मानता था। दूसरा वह जो इसे पाने के लिए हिंसात्मक विरोध का सहारा लेने को भी तैयार था।
1938 में सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1939 में भी उन्होंने इस पद के लिए खड़े होने का निर्णय किया लेकिन कांग्रेस ने पट्टाभि सीतारमैया को उम्मीदवार बनाया। बोस जीते और सीतारमैया की हार को गांधीजी ने अपनी हार बताया। गांधीजी से मतभेद होने के कारण बोस ने कांग्रेस छोड़ दी। युद्ध के दौरान बोस ने धुरी राष्ट्रों से समर्थन पाने की मुहिम भी चलाई। 1942 में बोस की इंडियन नैशनल आर्मी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ जंग का ऐलान किया।
यह आंदोलन ऐसा आंदोलन था, जिसने ब्रिटिश सरकार की चूलें हिला दी। इस आंदोलन की खासियत यह थी कि जगह-जगह इसकी बागडोर स्थानीय नेताओं ने थामी और आंदोलन का नेतृत्व किया, क्योंकि आंदोलन शुरू होते ही ब्रिटिश सरकार ने सभी बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया। गांधीजी ने 'करो या मरो' का नारा दिया।
16 अगस्त 1946 को मुस्लिम लीग द्वारा मनाए गए सीधी कार्यवाही दिवस में हजारों लोगों की हत्या कर दी गई। पूरा देश दंगे की आग में जल उठा। मुस्लिमबहुल इलाकों में हिन्दुओं का और हिन्दूबहुल क्षेत्रों में मुसलमानों का कत्ल-ए-आम हुआ। इसी बीच, 3 जून 1947 को ब्रिटेन के आखिरी वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन ने ब्रिटिश इंडियन एंपायर के विभाजन का ऐलान किया।
15 अगस्त 1947 की रात को भारत आजाद हो गया। हालांकि देश के विभाजन ने इस चमक को फीका कर दिया। जहां गांधीजी इन हालात का प्रतिकार कर रहे थे, वहीं नेहरू की आंखें क्षितिज पर उभर रहे प्रकाश पर टिकी थीं। लॉर्ड माउंटबैटन आजाद भारत के पहले गवर्नर जनरल बने।
जून 1948 में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लॉर्ड माउंटबेटन की जगह ली। 565 रियासतों को देश में मिलाने का जिम्मा सरदार पटेल पर सौंपा गया। उन्होंने कुशलता के साथ सभी रियासतों को भारत में मिलाया। हां, जूनागढ़, जम्मू-कश्मीर और हैदराबाद स्टेट को देश में मिलाने के लिए बल प्रयोग भी करना पड़ा।