मौलाना अबुल कलाम आजाद भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सक्रीय सदस्य और साथ ही एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे। मौलाना आज़ाद ने बहुत से स्वतंत्रता आंदोलनों और अभियानों में हिस्सा भी लिया है. 1923 में कांग्रेस के विशेष सत्र को इन्होंने संबोधित भी किया था और केवल 35 साल की आयु में कांग्रेस के राष्ट्रिय अध्यक्ष चुने जाने वाले वे सबसे युवा व्यक्ति थे.
आजाद का जन्म 11 नवम्बर 1888 को मक्का, सऊदी अरेबिया में हुआ था. उनका सही नाम अबुल कलाम घुलाम मुहियुद्दीन था जो बाद में बदलकर मौलाना आज़ाद बना. आज़ाद के पिता मौलाना मुहम्मद खैरुद्दीन एक विद्वान लेखक थे जिनकी कई साड़ी किताबे प्रकाशित हो चुकी थी जबकि उनकी माँ एक अरबी थी, पहले उनका परिवार बंगाल प्रान्त में रहता था, लेकिन विभाजन के बाद वे मक्का चले गये जहा मौलाना आज़ाद का जन्म हुआ और फिर बाद में 1890 में अपने पुरे परिवार के साथ वे वापिस कलकत्ता आ गये.
आज़ाद को उस समय कई भाषाए भी आती थी जैसे उर्दू, हिंदी, पर्शियन, बंगाली, अरेबिक और इंग्लिश. वे मज़ाहिब हनफी, मालिकी, शफी और हंबली फिकह, शरीअत, गणित, दर्शनशास्त्र, विश्व इतिहास और विज्ञानं में माहिर थे, साथ ही उन्हें पढ़ाने के लिए उनके परिवार ने एक घर पर पढ़ाने वाला शिक्षक भी रखा था. उनका घर पूरी तरह से पुस्तकालय से भरा हुआ था और इसी वजह से जब वे केवल 12 साल के थे तब उन्होंने घज़ली के जीवन पर एक किताब लिखनी चाही और उनका यही लेख मख्ज़ां बहोत प्रसिद्द हुआ. एक पत्रकार होने के नाते वे अपने लिखो में राजनीती से संबंधित लेखो को प्रकाशित करते जिसमे उनका कविताओ से भरा लेख नैरंग-ए-आलम भी था और साथ वे वे साप्ताहिक अखबार अल-मिस्बाह के संपादक भी थे और तब उनकी आयु केवल 12 साल की थी.1903 में, उन्होंने मासिक लेख लिस्सन-उस-सिडक (Lissan-Ul-Sidq) खरीदना शुरू किया, जो बहोत ही विख्यात था. 13 साल की उम्र में उन्होंने ज़ुलिईखा बेगम से शादी कर ली.
आजाद अपने जवानी के दिनों में उर्दू भाषा की कविताये भी लिखा करते थे. और साथ ही उनके धर्म पर प्रेरनादायी किताबे और दर्शनशास्त्रीयो पर लेख लिखा करते थे. लेकिन एक पत्रकार के रूप में वे ज्यादा प्रख्यात थे, जो अपने लेख में ब्रिटिश राज के विरूद्ध लिखकर उसे प्रकाशित करते थे. आज़ाद बाद में खिलाफत आन्दोलन के नेता बने. जहा उनका सम्बन्ध महात्मा गाँधी
से हुआ. महात्मा गाँधी के अहिंसा आन्दोलन का आजाद पर बहोत प्रभाव पड़ा और वे गांधीजी के महान अनुयायी बन गये और उन्होंने गांधीजी के ही बताये रास्तो पर चलना सिखा और गांधीजी के साथ मिलकर रोलेट एक्ट की 1919 में रक्षा की. आजाद खुद को गांधीजी का महान भक्त बतलाते थे, और गांधीजी की तरह वे भी स्वदेशी वस्तुओ का ही इस्तेमाल करते थे, और लोगो को भी स्वदेशी वस्तुओ का ही उपयोग करने की सलाह दिया करते थे. 1923 में, 35 साल की आयु में उन्होंने सबसे कम उम्र में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सेवा की.
1931 के धरासाना सत्याग्रह में आजाद की मुख्य भूमिका रही, उस समय हिन्दू-मुस्लिम के बिच एकता होने के कारण वे भारत के प्रमुख नेता माने जाते थे. उन्होंने 1940 से 1945 तक कांग्रेस की अध्यक्ष के रूप में सेवा की. और इसी समय ब्रिटिश भारत छोडो बगावत शुरू हुई थी. आजाद को उनके जीवन में कांग्रेस के अन्य नेताओ के साथ 3 साल की जेल भी हुई थी.
जिस समय भारत में सांप्रदायिक धर्मो के बिच विभाजन की बात चल रही थी, उसी समय वे विविध धर्मो के बिच मधुर संबंध बनाने का काम कर रहे थे. भारत के शिक्षामंत्री के रूप में उन्होंने गरीबो को प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मुफ्त में उपलब्ध करवाई. साथ ही भारतीय तंत्रज्ञान संस्था और यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन की भी स्थापना की, ताकि वे भारतीयों को अच्छे से अच्छी शिक्षा प्रदान कर सके.
आज़ाद भारत के पहले शिक्षामंत्री मौलाना अबुल कलम आज़ाद ने 15 अगस्त 1947 से 2 फेब्रुअरी 1958 तक देश की सेवा की और उनके जन्मदिन को आज पूरा भारत “राष्ट्रिय शिक्षा दिन” के रूप में मनाता है. भारत में राष्ट्रिय शिक्षा दिन हर साल 11 नवम्बर को मनाया जाता है.
अबुल कलाम मुहियुद्दीन अहमद आजाद / Maulana Abul Kalam Azad एक भारतीय विद्वान और भारतीय स्वतंत्रता अभियान के वरिष्ट राजनैतिक नेता थे. अपने स्वतंत्रता के अभियान में आगे बढ़ते हुए भारत सरकार के वे पहले शिक्षामंत्री थे. 1992 में, उनके मरणोपरांत उन्हें भारतीय नागरिकत्व के सबसे बडे पुरस्कार “भारत रत्न” का सम्मान दिया गया. उनको ये सम्मान देने के पीछे कई सारे विवाद भी उठ खड़े हुए थे, क्यू की ऐसा कहा जाता है की जो भारत रत्न देने वालो की निर्णायक समिति में शामिल होता है उसे यह पुरस्कार नहीं दिया जाता है, और यही कहते हुए पहले उन्होंने इस पुरस्कार को लेने से माना कर दिया था. आधुनिक भारत में वे साधारणतः मौलाना आजाद के नाम से याद किये जाते है. इसमें मौलाना शब्द ये “सिखने/सिखाने वाला इंसान” से लिया गया है और उन्हें आजाद अपने उपनाम के रूप में अपनाया था. उनके जीवन का एक ही ध्येय था की वे भारत में शिक्षा प्रदान करने वाली संस्थाओ का निर्माण करना चाहते थे, और उनकी इसी याद में पुरे भारत में उनका जन्मदिन “राष्ट्रिय शिक्षा दिन” के रूप में मनाया जाता है.
आज़ाद ने स्वतंत्रता के आन्दोलन के समय कई लोगो को शिक्षित किया और उन्हें आज़ादी पाने के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. उन्होंने उस समय कई भारतीयों को शिक्षा देकर उनका भविष्य सवारा और खुद की परवाह किये बिना ही हिन्दू-मुस्लिम में भेदभाव किये बिना सभी को एक सामान शिक्षा का अधिकार दिया. निच्छित ही हमें ऐसे शिक्षामंत्री पर गर्व होना चाहिए.
मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की जीवन कार्य :
1906 में मक्का के मुल्ला-मौलवीने उनका सन्मान किया और उन्हें ‘अबुल कलाम’ उपाधि बहाल की. ‘आज़ाद’ उनका उपनाम था. लिखने के लिये इस नाम का इस्तेमाल करते थे. उर्दू कविता के अंत में वह ‘आज़ाद’ लिखा करते थे. और इसी कारन उनको लोग आज़ाद नाम से जानने लगे और उनका सही नाम पीछे छुट गया. ‘आज़ाद’ नाम लिखने के पीछे उनका मकसद पुराने बंधनो से ‘आज़ाद’ होनेकी प्रेरणा थी.
1905 आज़ादजी के पिताजीने उन्हें आशिया भेजा. मौलाना आज़ादजी इराक, इजिप्त, सीरिया, तुर्कस्थान आदी देश गये. और ‘कैरो’ देश भी गए वहा पर ‘अल-अझर’ विद्यापीठ गये. योगी अरविन्दजी से मिले और एक क्रांतिकारी समूह में शामील हुये और बादमे इस समूह हुये.क्रांतिकारी समूह मुसलमानो के विरोध में सक्रिय है, ऐसा आज़ादजी को लगने लगा.
1912 में मौलाना आज़ाद जी ने कलकत्ता यहा ‘अल-हिलाल’ ये उर्दू अकबार शुरु किया. और ब्रिटिश विरोध में अपनी जंग छेडी. भारतीय मुसलमानो के ब्रिटिश श्रध्दा पर टिपनी की. इसी कारण सरकार ने इ.स. 1914 में ‘अल-हिलाल’ पर पाबंदी लगाई आगे उन्होंने इ.स. 1915 में ‘अल-बलाग’ नामसे अकबार शुरू किया.
1920 में दिल्ली आनेपर महात्मा गांधीजी से मिले और कॉंग्रेस का सदस्यपद लिया.
मौलाना आज़ादजी को महात्मा गांधी के साथ असहयोग आंदोलन में शामील होने के कारण और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ भाषण करने कारणवश 10 दिसंबर 1921 वे गिरफ्तार हुये और दो सालकी सजा काटनी पडी.
मौलाना आज़ादजी ने हिंदू-मुस्लीम एकता का कार्य किया उससे प्रभावित होकर सन 1923 में उनका भारतीय राष्ट्रिय कॉंग्रेस के अध्यक्षपद के लिए चयन किया गया. भारतीय मुसलमानो मे राष्ट्रीय भाव निर्माण करने उद्देश से राष्ट्रीय कॉंग्रेस में रहकर ही 1929 में ‘नॅशनल मुस्लीम पक्षकी’ स्थापना की और उसका अध्यक्षपद भी मौलाना आज़ाद जी को सौपा गया. इस पार्टीने मुस्लीम लीग जैसे जातीय संघटनो का विरोध किया.
1930 के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में खुद शामील होकर भारतीय मुसलमानो को शामील होने हेतु प्रोस्ताहित किया मौलाना आज़ादजी के इस आंदोलन का नेतृत्व और प्रभुत्व देखकर ब्रिटिश शासनने अनेक प्रांतमें उन्हें प्रवेश बंदी की. 1940 में आज़ाद दूसरी बार राष्ट्रीय कॉंग्रेस के अध्यक्ष बने. 1946 तक इस पदपर रहे.
1942 में भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस का मुंबई में हुये ऐतिहासिक अधिवेशन के मौलाना आज़ाद अध्यक्ष थे. उन्हीकी अध्यक्षता में ‘छोडो भारत’ का प्रस्ताव पारित किया.
1947 को पं. नेहरू ने अंतरिम सरकार तयार की थी. उसमे आज़ाद इनका शिक्षणमंत्री इस रूप में समावेश था. उनकी मौत तक वो इस स्थान पर थे. मौलाना आज़ाद पुर्णतः राष्ट्रवादी भारतीय थे, और देश उन्हें आज भी गौरव से याद करता है.
पूरा नाम – मोहिउद्दीन अहमद खैरुद्दीन बख्क्त
जन्म – 11 नव्हंबर 1888.
जन्मस्थान – मक्का.
पिता – मौलाना खैरुद्दीन.
माता – आलियाबेगम.
शिक्षा – जादातर पढाई निवास पर पुरी 1903 में ‘दर्स. ए. निजामिया’ पारसी भाषा में उत्तींर्ण होकर ‘अलीम प्रमाणपत्र’.
विवाह – जुलेखा बेगम के साथ (1907 में ).