1965 का युद्ध शुरू होने के आसार बन रहे थे. कंपनी क्वार्टर मास्टर अब्दुल हमीद गाज़ीपुर ज़िले के अपने गाँव धामूपुर आए हुए थे. अचानक उन्हें वापस ड्यूटी पर आने का आदेश मिला.
उनकी पत्नी रसूलन बीबी ने उन्हें कुछ दिन और रोकने की कोशिश की लेकिन हमीद मुस्कराते हुए बोले- देश के लिए उन्हें जाना ही होगा.
अब्दुल हमीद के बेटे जुनैद आलम बताते हैं कि जब वो अपने बिस्तरबंद को बांधने की कोशिश कर रहे थे, तभी उनकी रस्सी टूट गई और सारा सामान ज़मीन पर फैल गया.
उसमें रसूलन बीबी का लाया हुआ मफ़लर भी था जो वो उनके लिए एक मेले से लाईं थीं. रसूलन ने कहा कि ये अपशगुन है. इसलिए वो कम से कम उस दिन यात्रा न करें, लेकिन हमीद ने उनकी एक नहीं सुनी.
'द ब्रेव परमवीर स्टोरीज़' की लेखिका रचना बिष्ट रावत कहती हैं, ''इतना ही नहीं जब वो स्टेशन जा रहे थे तो उनकी साइकिल की चेन टूट गई और उनके साथ जा रहे उनके दोस्त ने भी उन्हें नहीं जाने की सलाह दी. लेकिन हमीद ने उनकी भी बात नहीं सुनी.''
जब वो स्टेशन पहुंचे, उनकी ट्रेन भी छूट गई थी. उन्होंने अपने साथ गए सभी लोगों को वापस घर भेजा और देर रात जाने वाली ट्रेन से पंजाब के लिए रवाना हुए. ये उनकी और उनके परिवार वालों और दोस्तों के बीच आख़िरी मुलाक़ात थी.
8 सितंबर 1965, समय सुबह के 9 बजे. जगह चीमा गाँव का बाहरी इलाक़ा. गन्ने के खेतों के बीच अब्दुल हमीद जीप में ड्राइवर की बग़ल वाली सीट पर बैठे हुए थे. अचानक उन्हें दूर आते टैंकों की आवाज़ सुनाई दी.
थोड़ी देर में उन्हें वो टैंक दिखाई भी देने लगे. उन्होंने टैकों के अपनी रिकॉयलेस गन की रेंज में आने का इंतज़ार किया, गन्ने की फ़सल का कवर लिया और जैसे ही टैंक उनकी आरसीएल की रेंज में आए, फ़ायर कर दिया.
पैटन टैंक धू-धू कर जलने लगा और उसमें सवार पाकिस्तानी सैनिक उसे छोड़कर पीछे की ओर भागे. अब्दुल हमीद के पौत्र जमील आलम बताते हैं, ''मैं अपनी दादी के साथ सीमा पर उस जगह गया जहाँ मेरे दादा की मज़ार है.''
उनकी रेजिमेंट वहाँ हर साल उनके शहादत दिवस पर समारोह आयोजित करती है. वहाँ उनकी एक ऐसे सैनिक से मुलाक़ात हुई थी जिसका लड़ाई में हाथ कट गया था. उसने उन्हें बताया था कि अब्दुल हमीद ने उस दिन एक के बाद एक चार पैटन टैंक धराशाई किए थे.
हमीद को परमवीर चक्र देने की सिफ़ारिश भेजे जाने के बाद अगले दिन उन्होंने तीन और पाकिस्तानी टैंक नष्ट किए.
जब वो एक और टैंक को अपना निशाना बना रहे थे, तभी एक पाकिस्तानी टैंक की नज़र में आ गए. दोनों ने एक-दूसरे पर एक साथ फ़ायर किया. वो टैंक भी नष्ट हुआ और अब्दुल हमीद की जीप के भी परखच्चे उड़ गए.
इस युद्ध में साधारण “गन माउनटेड जीप” के हाथों हुई “पैटन टैंकों” की बर्बादी को देखते हुए अमेरिका में पैटन टैंकों के डिजाइन को लेकर पुन: समीक्षा करनी पड़ी थी. लेकिन वो अमरीकी “पैटन टैंकों” के सामने केवल साधारण “गन माउनटेड जीप” जीप को ही देख कर समीक्षा कर रहे थे, उसको चलाने वाले “वीर अब्दुल हमीद” के हौसले को नहीं देख पा रहे थे.
कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद भारतीय सेना की 4 ग्रेनेडियर में एक सिपाही थे. जिन्होंने 1965 के भारत-पाक युद्ध में लड़ते हुए अद्भुत वीरता का प्रदर्शन कर वीरगति प्राप्त की.
राज्य उत्तर प्रदेश....जिला गाजीपुर....गांव धामपुर....साधारण से दर्जी परिवार के घर जन्मा एक बालक जिसने जवानी आते ही खुद को भारत की आन-बान-शान के लिए खुद को सेना के लिए समर्पित कर दिया। पिता लांस नायक उस्मान फारुखी भी ग्रेनेडियर में जवान थे। पिता से प्रेरणा मिली तो खुद भी कूद गए लड़ाई के मैदान में वीर अबदुल हमीद ने पाकिस्तान से सन् 1965 में हुई लड़ाई में 8 सितंबर की रात में, पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला करने पर, हमले का जवाव देने के लिए सबसे आगे खड़े हो गए।
आजीविका के लिए कपड़ों की सिलाई का काम करने वाले मोहम्मद उस्मान के पुत्र अब्दुल हमीद की रुचि अपने इस पारिवारिक कार्य में बिलकुल नहीं थी। कुश्ती के दाँव पेंचों में रुचि रखने वाले पिता का प्रभाव अब्दुल हमीद पर भी था। लाठी चलाना, कुश्ती का अभ्यास करना, पानी से उफनती नदी को पार करना, गुलेल से निशाना लगाना एक ग्रामीण बालक के रूप में इन सभी क्षेत्रों में हमीद पारंगत थे। उनका एक बड़ा गुण था सबकी यथासंभव सहायता करने को तत्पर रहना। किसी अन्याय को सहन करना उनको नहीं भाता था। यही कारण है कि एक बार जब किसी ग़रीब किसान की फसल बलपूर्वक काटकर ले जाने के लिए जमींदार के 50 के लगभग गुंडे उस किसान के खेत पर पहुंचे तो हमीद ने उनको ललकारा और उनको बिना अपना मन्तव्य पूरा किये ही लौटना पड़ा। इसी प्रकार बाढ़ प्रभावित गाँव की नदी में डूबती दो युवतियों के प्राण बचाकर अपने अदम्य साहस का परिचय दिया।
21 वर्ष के अब्दुल हमीद जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने के लिए गये परन्तु उनके संस्कार उन्हें प्रेरित कर रहे थे, सेना में भर्ती होकर देश सेवा के लिए। अतः उन्होंने एक सैनिक के रूप में 1954 में अपना कार्य प्रारम्भ किया। हमीद 27 दिसंबर, 1954 को ग्रेनेडियर्स इन्फैन्ट्री रेजिमेंट में शामिल किये गये थे। जम्मू काश्मीर में तैनात अब्दुल हमीद पाकिस्तान से आने वाले घुसपैठियों की खबर तो लेते हुए मजा चखाते रहते थे, ऐसे ही एक आतंकवादी डाकू इनायत अली को जब उन्होंने पकड़वाया तो प्रोत्साहन स्वरूप उनको प्रोन्नति देकर सेना में लांस नायक बना दिया गया। 1962 में जब चीन ने भारत की पीठ में छुरा भोंका तो अब्दुल हमीद उस समय नेफा में तैनात थे, उनको अपने अरमान पूरे करने का विशेष अवसर नहीं मिला। उनका अरमान था कोई विशेष पराक्रम दिखाते हुए शत्रु को मार गिराना।
एक दिन एक महिला भारत-पाकिस्तान सीमा पर आख़िरी सैन्य छावनी फ़िरोज़पुर के मॉल पर टहल रही थीं. उनकी नज़र 4 ग्रेनेडियर के क्वार्टर मास्टर हवलदार अब्दुल हमीद के पोस्टर पर पड़ी.
अब्दुल हमीद को 1965 की भारत-पाकिस्तान लड़ाई में खेमकरन सेक्टर में पाकिस्तान के कई पैटन टैंक नष्ट करने के लिए परमवीर चक्र मिला था. आश्चर्यजनक बात ये थी कि भारत के बहुत से लोगों को अब्दुल हमीद के कारनामों के बारे में कोई अंदाज़ा ही नहीं था.
उस महिला का नाम है रचना बिष्ट रावत. उन्होंने मन ही मन कहा- ''अब्दुल हमीद, मैं एक दिन तुम्हारी कहानी सारी दुनिया को सुनाउंगी'' और इस तरह एक किताब का जन्म हुआ 'द ब्रेव परमवीर स्टोरीज़'.
अब्दुल हमीद पूर्वी उत्तर प्रदेश के बहुत ही साधारण परिवार से आते थे लेकिन इसके बावजूद जब उन्हें मौक़ा मिला उन्होंने वीरता और साहस की असाधारण मिसाल क़ायम की.
अब्दुल हमीद की पत्नी रसूलन बीबी 85 वर्ष की हैं लेकिन अब वो सुन नहीं सकतीं हैं.
लेकिन वो दिन अभी तक नहीं भूली हैं जब राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने अब्दुल हमीद का जीता हुआ परमवीर चक्र उनके हाथों में दिया था.
रसूलन कहती हैं, ''मुझे बहुत दुख हुआ लेकिन ख़ुशी भी हुई, हमारा आदमी इतना नाम करके इस दुनिया से गया. दुनिया में बहुत से लोग मरते हैं, लेकिन उनका नाम नहीं होता लेकिन हमारे आदमी ने शहीद होकर न सिर्फ़ अपना बल्कि हमारा नाम भी दुनिया में फैला दिया.''