विश्व फोटोग्राफी डे: ..क्योंकि तस्वीरें हमेशा जिंदा रहती हैं ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

मैं इस विश्व के जीवन मंच पर अदना सा किरदार हूँ जो अपनी भूमिका न्यायपूर्वक और मन लगाकर निभाने का प्रयत्न कर रहा है। पढ़ाई लिखाई के हिसाब से विज्ञान के इंफोर्मेशन टेक्नॉलोजी में स्नातक हूँ और पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हूँ तथा मेरी कंपनी में मेरा पद मुझे लीड सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बताता है।

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विश्व फोटोग्राफी डे: ..क्योंकि तस्वीरें हमेशा जिंदा रहती हैं

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“गर पल को अमर करना होतो तस्वीरों में कैद कर लीजिए…. अली उवाच”
तस्वीरें हमेशा जिंदा रहती हैं। चूंकि हम लम्हों को कैद नहीं कर सकते। मगर ख्वाहिश होती है कि काश ये किसी किताब के पन्ने की तरह होते, जिन्हें जब चाहा उलट-पलट कर देख लेते। इंसान की इन्हीं इच्छाओं को मूर्त रूप देने के लिए फोटोग्राफी की तकनीक एक वरदान के रूप में सामने आई।

इंसान के पास जब इतने हाईटेक कैमरे नहीं थे, तब भी वह तस्वीरें बनाता था। प्राचीन गुफाओं में उसके बनाए भित्ति चित्र इस बात के गवाह हैं। इनके जरिये वह आने वाली पीढ़ियों के लिए कितनी बेश्कीमती सौगात छोड़ गए हैं। बाद में जब कैमरे का आविष्कार हुआ, तो फोटोग्राफी भी इंसान के लिए अपनी रचनात्मकता को प्रदर्शित करने का जरिया बन गया। आज विश्व फोटोग्राफी डे है। इस दिवस को मनाने के पीछे भी एक कहानी है। दरअसल फ्रांसीसी वैज्ञानिक लुईस जेक्स और मेंडे डाग्युरे ने सबसे पहले सन 1839 में फोटो तत्व की खोज की थी। ब्रिटिश वैज्ञानिक विलियम हेनरी फॉक्सटेल बोट ने निगेटिव-पॉजीटिव प्रोसेस का आविष्कार किया और सन 1834 में टेल बॉट ने लाइट सेंसेटिव पेपर की खोज करके खींची गई फोटो को स्थायी रूप में रखने में मदद की।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक आर्गो की फ्रेंच अकादमी ऑफ साइंस के लिए लिखी गई एक रिपोर्ट को तत्कालीन फ्रांस सरकार ने खरीदकर 19 अगस्त 1939 को आम लोगों के लिए फ्री घोषित कर दिया था। इसी उपलब्धि की याद में 19 अगस्त को विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
इस संसार में प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को जन्म के साथ भी एक कैमरा दिया है जिससे वह संसार की प्रत्येक वस्तु की छवि अपने दिमाग में अंकित करता है। वह कैमरा है उसकी आंख। इस दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक प्राणी एक फोटोग्राफर है।
वैज्ञानिक तरक्की के साथ-साथ मनुष्य ने अपने साधन बढ़ाना प्रारंभ किया और अनेक आविष्कारों के साथ ही साथ कृत्रिम लैंस का भी आविष्कार हुआ। समय के साथ आगे बढ़ते हुए उसने इस लैंस से प्राप्त छवि को स्थायी रूप से सहेजने का प्रयास किया। इसी प्रयास की सफलता वाले दिन को अब हम विश्व फोटोग्राफी दिवस के रूप में मनाते हैं।
फोटोग्राफी का आविष्कार जहां संसार को एक-दूसरे के करीब लाया, वहीं एक-दूसरे को जानने, उनकी संस्कृति को समझने तथा इतिहास को समृद्ध बनाने में भी उसने बहुत बड़ी मदद की है। आज हमें संसार के किसी दूरस्थ कोने में स्थित द्वीप के जनजीवन की सचित्र जानकारी बड़ी आसानी से प्राप्त होती है, तो इसमें फोटोग्रोफी के योगदान को कम नहीं किया जा सकता।
वैज्ञानिक तथा तकनीकी सफलता के साथ-साथ फोटोग्राफी ने भी आज बहुत तरक्की की है। आज व्यक्ति के पास ऐसे-ऐसे साधन मौजूद हैं जिसमें सिर्फ बटन दबाने की देर है और मिनटों में अच्छी से अच्छी तस्वीर उसके हाथों में होती है। किंतु सिर्फ अच्छे साधन ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने की ग्यारंटी दे सकते हैं, तो फिर मानव दिमाग का उपयोग क्यों करता?
तकनीक चाहे जैसी तरक्की करे, उसके पीछे कहीं न कहीं दिमाग ही काम करता है। यही फर्क मानव को अन्य प्राणियों में श्रेष्ठ बनाता है। फोटोग्राफी में भी अच्छा दिमाग ही अच्छी तस्वीर प्राप्त करने के लिए जरूरी है।
हमें आंखों से दिखाई देने वाले दृश्य को कैमरे की मदद से एक फ्रेम में बांधना, प्रकाश व छाया, कैमरे की स्थिति, ठीक एक्सपोजर तथा उचित विषय का चुनाव ही एक अच्छे फोटो को प्राप्त करने की पहली शर्त होती है। यही कारण है कि आज सभी के घरों में मोबाइल कैमरे हैं लेकिन सच तो यह है कि  अच्छे फोटोग्राफर गिनती के हैं।
अच्छा फोटो अच्छा क्यों होता है- इसी सूत्र का ज्ञान किसी भी फोटोग्राफर को सामान्य से विशिष्ट बनाने के लिए पर्याप्त होता है। वास्तव में ‘हमें फ्रेम में क्या लेना है, इससे ज्यादा इस बात का ज्ञान जरूरी है कि हमें क्या-क्या छोड़ना है।’
भारत के संभवतः सर्वश्रेष्ठ फोटोग्राफर रघुरायके शब्दों में चित्र खींचने के लिए पहले से कोई तैयारी नहीं करता। मैं उसे उसके वास्तविक रूप में अचानक कैंडिड रूप में ही लेना पसंद करता हूं। पर असल चित्र तकनीकी रूप में कितना ही अच्छा क्यों न हो, वह तब तक सर्वमान्य नहीं हो सकता जब तक उसमें विचार नहीं है। एक अच्छी पेंटिंग या अच्छा चित्र वही है, जो मानवीय संवेदना को झकझोर दे। कहा भी जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर है।
आज जब उपभोक्तावाद अपनी चरम सीमा पर है, तब ग्राहक को उत्पादन की ओर खींचने में फोटोग्राफी का भी बहुत बड़ा योगदान है। विज्ञापन को आकर्षक बनाने के लिए फोटोग्राफर जो सार्थक प्रयत्न कर रहा है, उसे हम अपने दैनिक जीवन में अच्छी तरह अनुभव कर सकते हैं। इसी प्रयास में फोटोग्राफी को आजीविका के रूप अपनाने वाले बहुत बड़े लोगों की संख्या खड़ी हो चुकी है। यह लोग न सिर्फ फोटोग्राफी से लाखों कमा रहे हैं बल्कि इस काम में कलात्मक तथा गुणात्मक उत्तमता का समावेश कर ‘जॉब सेटिस्फेक्शन’ की अनुभूति भी प्राप्त कर रहे हैं। अपने आविष्कार के लगभग 100 वर्ष लंबे सफर में फोटोग्राफी ने कई आयाम देखे हैं।
विश्व फोटोग्राफी का इतिहास
पहली तस्वीर की घोषणा 19 अगस्त, 1939 को फ्रांस में की गई थी। इस घोषणा के लिए प्रस्तावना यह थी कि 9 जनवरी, 1839 को फ्रांसीसी विज्ञान अकादमी ने डागुएरोटाइप (Daguerreotype) प्रक्रिया की घोषणा की थी।जो लुई डागुएरे द्वारा विकसित एक फोटोग्राफिक प्रक्रिया है। उसी वर्ष 19 अगस्त को, फ्रांस सरकार ने पेटेंट की प्राप्ति की और फ्रेंकोइस अरागो फ्रांस के प्रधानमंत्री ने फ्रेंच एकेडमी डेस साइंस और एकेडमी डेस बीक्स आर्ट्स में एक प्रस्तुति दी, जिसमें फोटोग्राफी की प्रक्रिया का वर्णन किया गया।
अरागो ने इसके मूल्यांकन पर चर्चा की और इसके शानदार भविष्य की कल्पना करते हुए दुनिया को इसके मुफ्त उपयोग का लाभ दिया। 19 अगस्त 2010 को पहली वैश्विक ऑनलाइन गैलरी की मेजबानी की गई थी। यह दिन ऐतिहासिक था क्योंकि भले ही यह अब तक की पहली ऑनलाइन गैलरी थी, लेकिन इस दिन 270 फोटोग्राफर्स ने तस्वीरों के माध्यम से अपने विचारों को साझा किया और 100 से अधिक देशों के लोगों ने वेबसाइट देखी।

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