अक्सर आपने लोगों से सूना होगा कि राम जैसा बेटा चाहिए लेकिन कभी किसी को ये कहते नहीं सूना होगा कि राम जैसा पति चाहिए. लेकिन रावण एक अच्छा पति था और एक ऐसा राजा था जो अपने समय का कुशल राजनीतिज्ञ, सेनापति, वास्तुकला, ब्रह्मज्ञानी, बहु-विधाओं का ज्ञानी था.
आज से वर्ष 7129 वर्ष पूर्व श्री राम का जन्म 5,114 ईस्वी पूर्व में हुआ था. उन्हीं के काल में हुआ था दशानन रावण. राम तो बहुत मिल जाएंगे, लेकिन रावण नाम का दूसरा कोई नहीं मिलेगा. उसे मायावी इसलिए कहा जाता था कि वह इंद्रजाल, तंत्र, सम्मोहन और तरह-तरह के जादू जानता था. उसके पास एक ऐसा विमान था, जो अन्य किसी के पास नहीं था.
ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि हुए. उनका पुत्र विश्रवा हुआ. विश्रवा की पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था. विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी जिसकी संतान रावण, कुंभकर्ण और विभीषण था.
शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित रक्ष समाज की स्थापना करने वाला रावण आज बुराई का प्रतीक माना जाता है इसलिए कि उसने दूसरे की स्त्री का हरण किया. लेकिन रावण के अंदर थी ये सब अच्छाइयां.
रावण महापंडित होने के साथ-साथ एक कुशल राजा था
कहा जाता है कि जब राम वानरों की सेना लेकर समुद्र तट पर पहुंचे, तब राम रामेश्वरम के पास गए और वहां उन्होंने विजय यज्ञ की तैयारी की। उसकी पूर्णाहुति के लिए देवताओं के गुरु बृहस्पति को बुलावा भेजा गया, मगर उन्होंने आने में अपनी असमर्थता व्यक्त की।
रावण पुष्पक विमान में माता सीता को साथ लेकर आया और सीता को राम के पास बैठने को कहा, फिर रावण ने यज्ञ पूर्ण किया और राम को विजय का आशीर्वाद दिया. फिर रावण सीता को लेकर लंका चला गया. लोगों ने रावण से पूछा, आपने राम को विजय होने का आशीर्वाद क्यों दिया ? तब रावण ने कहा- महापंडित रावण ने यह आशीर्वाद दिया है, राजा रावण ने नहीं.
शिवभक्त रावण
रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना करने के अलावा अन्य कई तंत्र ग्रंथों की रचना की. कुछ का मानना है कि लाल किताब (ज्योतिष का प्राचीन ग्रंथ) भी रावण संहिता का अंश है. रावण ने यह विद्या भगवान सूर्य से सीखी थी.
राजनीति का ज्ञाता
जब रावण मृत्युशैया पर पड़ा था, तब राम ने लक्ष्मण को राजनीति का ज्ञान लेने रावण के पास भेजा. जब लक्ष्मण रावण के सिर की ओर बैठ गए, तब रावण ने कहा- 'सीखने के लिए सिर की तरफ नहीं, पैरों की ओर बैठना चाहिए यह पहली सीख है. रावण ने राजनीति के कई गूढ़ रहस्य बताए.
कई शास्त्रों का रचयिता रावण
रावण बहुत बड़ा शिवभक्त था. उसने ही शिव की स्तुति में तांडव स्तोत्र लिखा था. रावण ने ही अंक प्रकाश, इंद्रजाल, कुमारतंत्र, प्राकृत कामधेनु, प्राकृत लंकेश्वर, ऋग्वेद भाष्य, रावणीयम, नाड़ी परीक्षा आदि पुस्तकों की रचना की थी.
परिवारवालों के लिए जान देता था रावण
भगवान श्रीराम के भाई लक्ष्मण ने रावण की बहन शूर्पणखा की नाक काट दी थी। पंचवटी में लक्ष्मण से अपमानित शूर्पणखा ने अपने भाई रावण से अपनी व्यथा सुनाई और उसके कान भरते कहा, 'सीता अत्यंत सुंदर है और वह तुम्हारी पत्नी बनने के सर्वथा योग्य है.
माता सीता को छुआ तक नहीं
भगवान राम की अर्धांगिनी मां सीता का पंचवटी के पास लंकाधिपति रावण ने अपहरण करके 2 वर्ष तक अपनी कैद में रखा था, लेकिन इस कैद के दौरान रावण ने माता सीता को छुआ तक नहीं था.
अच्छा शासक
रावण ने असंगठित राक्षस समाज को एकत्रित कर उनके कल्याण के लिए कई कार्य किए. रावण के शासनकाल में जनता सुखी और समृद्ध थी. सभी नियमों से चलते थे और किसी में भी किसी भी प्रकार का अपराध करने की हिम्मत नहीं होती थी.इसके बाद रावण ने लंका को अपना लक्ष्य बनाया. आज के युग के अनुसार रावण का राज्य विस्तार इंडोनेशिया, मलेशिया, बर्मा, दक्षिण भारत के कुछ राज्य और संपूर्ण श्रीलंका तक था.
रावण ने रचा था नया संप्रदाय
आचार्य चतुरसेन द्वारा रचित बहुचर्चित उपन्यास 'वयम् रक्षाम:' तथा पंडित मदन मोहन शर्मा शाही द्वारा तीन खंडों में रचित उपन्यास 'लंकेश्वर' के अनुसार रावण शिव का परम भक्त, यम और सूर्य तक को अपना प्रताप झेलने के लिए विवश कर देने वाला, प्रकांड विद्वान, सभी जातियों को समान मानते हुए भेदभावरहित समाज की स्थापना करने वाला था.
लक्ष्मण को बचाया था रावण ने?
रावण के राज्य में सुषेण नामक प्रसिद्ध वैद्य था. जब लक्ष्मण सहित कई वानर मूर्छित हो गए तब जामवंतजी ने सलाह दी की अब इन्हें सुषेण ही बचा सकते हैं. रावण की आज्ञा के बगैर उसके राज्य का कोई भी व्यक्ति कोई कार्य नहीं कर सकता. माना जाता है कि रावण की मौन स्वीकृति के बाद ही सुषेण ने लक्ष्मण को देखा था और हुनमानजी से संजीवनी बूटी लाने के लिए कहा था.
पंडित के साथ-साथ वैज्ञानिक भी था रावण
रावण अपने युग का प्रकांड पंडित ही नहीं, वैज्ञानिक भी था. आयुर्वेद, तंत्र और ज्योतिष के क्षेत्र में उसका योगदान महत्वपूर्ण है. इंद्रजाल जैसी अथर्ववेदमूलक विद्या का रावण ने ही अनुसंधान किया.
चिकित्सा और तंत्र के क्षेत्र में रावण के ये ग्रंथ चर्चित हैं-1. दस शतकात्मक अर्कप्रकाश, 2. दस पटलात्मक उड्डीशतंत्र, 3. कुमारतंत्र और 4. नाड़ी परीक्षा।
रावण के ये चारों ग्रंथ अद्भुत जानकारी से भरे हैं। रावण ने अंगूठे के मूल में चलने वाली धमनी को जीवन नाड़ी बताया है, जो सर्वांग-स्थिति व सुख-दु:ख को बताती है। रावण के अनुसार औरतों में वाम हाथ एवं पांव तथा पुरुषों में दक्षिण हाथ एवं पांव की नाड़ियों का परीक्षण करना चाहिए।
इसी प्रकार शिशु-स्वास्थ्य योजना का विचारक ‘अर्कप्रकाश’ को रावण ने मंदोदरी के प्रश्नों के उत्तर के रूप में लिखा है। इसमें गर्भस्थ शिशु को कष्ट, रोग, काल, राक्षस आदि व्याधियों से मुक्त रखने के उपाय बताए गए हैं।
इसी प्रकार ‘कुमारतंत्र’ में मातृकाओं को पूजा आदि देकर घर-परिवार को स्वस्थ रखने का वर्णन है। इसमें चेचक, छोटी माता, बड़ी माता जैसी मातृ व्याधियों के लक्षण व बचाव के उपाय बताए गए हैं।
रावण ने सीता का अपहरण जरूर किया किंतु उसकी पवित्रता पर आंच नहीं आने दी। वह ब्रह्माण्ड का सर्वशक्तिमान बलशाली शासक था। चाहता तो सीता के साथ दुर्व्यवहार कर सकता था। उसे कोई रोक नहीं सकता था किंतु वह आज के दौर के वासना पुरुषों की तरह नहीं था। उसने सीता की पवित्रता को अपमानित नहीं होने दिया। वह बहादुर था, आज के दौर के आतंकवादियों की तरह बेकसूरों को नहीं मारा करता था। उसकी भक्ति में शक्ति थी, आज की तरह धर्म का पाखंडी नहीं था। तभी भगवान शिव ने उसे कई वरदान दिए थे, उसकी मुक्ति के लिए स्वयं भगवान आए थे। उसके जो 10 सर थे वे 6 शास्त्र व 4 वेद के थे। सभी प्रकार का ज्ञान उसमें समाहित था, आज की तरह ज्ञानी होने का ढोंग कर ज्ञान को बेचने नहीं निकल पड़ा था। कुशल शासक था, न कि आज के दौर के नेताओं की तरह दंगे-फसाद, धर्म के नाम पर लोगों को बांटकर राज करता था। ऐसे महाज्ञानी को जलाकर हम ज्ञान को ही जला रहे हैं। अपनी कमजोरी का पूरा ठीकरा इस महाज्ञानी पर फोड़ रहे हैं।
जब तक हम इसे पूजने की बजाय जलाते रहेंगे, हमारी बुराइयां और बढ़ती रहेंगी। रावण को जलाना ब्रह्म हत्या मानी गई है। श्रीराम ने भी रावण का वध करने के बाद प्रायश्चित किया था। हमारे देश में ही आज कई स्थानों पर इनके मंदिर बने हुए हैं एवं इसे एक विद्वान के रूप में पूजा जाता है। हमें इस बात को विस्तृत संदर्भ में लेना चाहिए और सदियों से आंख मीचकर जो करते आ रहे हैं उसे समझकर, रोककर इसकी पूजा अर्चना की जानी चाहिए। ताकि हम इस ज्ञान की आग में अपने अंदर की बुराइयों को खत्म कर सकें और सही अर्थों मे राम राज्य की स्थापना कर सकें।