आजकल बलात्कार की जितनी घटनाएं घट रही है हैं , उनके मूल कारणों में एक बड़ा कारण शराब का सेवन है . वास्तव में शराब बीमारियों की जननी है । मेडिकल साइंस ने इधर जाकर इसकी पुष्टि की है कि इसके शरीर पर बहुत घातक प्रभाव पड़ते हैं । सम्राट जार्ज के पारिवारिक डॉक्टर सर फ्रेडरिक स्टीक्स वार्ट का कहना है, ‘‘शराब शरीर की पची हुई शक्तियों को भी उत्तेजित करके काम में लगा देती है, फिर उसके ख़र्च हो जाने पर शरीर काम के लायक़ नहीं रहता ।’’ इसी प्रकार सर एंड्रू क्लार्क वार्ट [ एम॰डी॰] का कथन है, ‘‘शरीर को अल्कोहल से कभी लाभ नहीं हो सकता ।’’
शराब ज़हर है
शराब एक ज़हरीला पदार्थ है । भोजन में यह गुण होना चाहिए कि वह शरीर का पोषण करे, नसों को बढ़ाये और शक्ति पैदा करे, लेकिन ज़हर में ये गुण नहीं होते । ज़हर को परिभाषित करते हुए डॉ॰ लेथवे लिखते हैं, ‘‘जो पदार्थ जीवित शरीर की नसों में चेतन शक्ति को नष्ट करता है अथवा जीवन का ह्रास करता है वह ज़हर है ।’’
शराब वह ज़हरीला पदार्थ है, जो आदमी को इतना मदहोश कर देता है कि वह होशोहवास खो बैठता है । उसकी बुद्धि पर परदा पड़ जाता है । शराब मस्तिष्क में उत्तेजना और व्याकुलता उत्पन्न करती है, मस्तिष्क के विकास को रोकती है, ज्ञान तंतुओं को समेटती है ।
डॉ॰ एस॰के ॰ वर्मा लिखते हैं, ‘‘मद्यपान से सबसे पहले प्रभावित होता है मस्तिष्क का उच्चतम कार्य । मदिरा सेवन से निर्णय की क्षमता घट जाती अथवा समाप्त हो जाती है, किन्तु भावनाएं फिर भी शोख रहती
हैं । प्रकारान्तर में आवाज़ बदलती है, ज़बान लड़खड़ाती है तथा मांसपेशियों का सकल संचालन उलझता है, जिससे व्यक्ति सीध चल पाने में अक्षम हो जाता है । भले-बुरे की समझ न रह जाने से मदिरा के कामोद्दीपक गुण को समझा जा सकता है । इससे काम शक्ति ही नहीं कामेच्छा भी घट जाती है ।’’
शराब का ज़हरीलापन इन्सान की ज़िन्दगी ख़त्म कर डालता है । एक बार मैरांडा पहाड़ियों की एक खान में चार आदमी और एक लड़का क़ैद करके बन्द कर दिये गये । उन्हें खाने को कुछ नहीं दिया गया । उसमें पानी का एक स्रोत बहता था। उनमें से एक आदमी के पास चोरी से शराब की एक बोतल छिपी रह गयी थी । दस दिन बाद जब उन्हें छोड़ देने के लिए निकाला गया, तो पता चला कि उस व्यक्ति ने पानी को छुआ भी नहीं, शराब ही पी, वह आठवें दिन ही मर चुका था । बाकी सबने पानी पिया और वे जीवित निकले । मेडिकल साइंस की दृष्टि से इसकी वजह यह थी कि शरीर में पानी की आपूर्ति होती रही । अतः जैविक तत्व तेज़ी से नहीं नष्ट हो सके । शरीर की हड्डी में 22 प्रतिशत, नसों में 76 प्रतिशत, रक्त में 70 प्रतिशत, अंतड़ियों के रस में 87 प्रतिशत पानी का अंश रहता है । शराब नसों और पुट्ठों की छोटी कोशिकाओं को नष्ट करके उनका बढ़ना रोक देती है । सर विक्टर होसल [ एफ॰आर॰एस॰] ने सच कहा है, ‘‘अल्कोहल [ शराब ] डॉक्टरी के लिए भी योग्य नहीं है । भोजन भी नहीं है ।’’
एक प्रयोग
समाज में कुछ शराब समर्थक ऐसे मिल जाएंगे, जो कहते हैं कि यह नशीली तो है, लेकिन ज़हरीली नहीं है । उनकी यह बात बिलकुल झूठी है । शराब का ज़हरीलापन वैज्ञानिक प्रयोग से स्पष्ट हो जाता है । यह प्रयोग आप ख़ुद कर सकते हैं ।
चार परखनलियां लीजिए । सब में बराबर मात्रा में कच्चे अंडे की सफ़ेदी डालिए । फिर एक परखनली में कार्बोलिक एसिड ,दूसरी में Nitric Acid Carrosive Sublimate Alchohal सबको हिला-हिलाकर थोड़ी देर के लिए रख दें । आप देखेंगे कि सबमें अंडे की सफेदी एक तरह से जम गयी है । ये चारों रासायनिक पदार्थ अलग-अलग गुण वाले हैं, लेकिन सबका रासायनिक प्रभाव एक है । इससे यह सिद्ध हुआ कि अल्कोहल भी शेष तीनों ज़हरों जैसा गुण रखता है । पशु-पक्षियों और पौधों पर अल्कोहल के जो प्रयोग किये गये हैं, उनसे यह प्रमाणित हुआ है कि अल्कोहल घातक ज़हर है ।
अमेरिका के डॉ॰ सर बी॰डब्ल्यू॰ रिचर्डसन ने एक बार मडूसा मछली पर अल्कोहल का परीक्षण किया । क्यू गार्डन्स स्थित विक्टोरिया रेजिया नामक तालाब में मडूसा मछली को पालने के लिए 80 डिग्री फारेनहाइट पानी का तापमान रखा जाता है ।
इस तापमान वाले पानी के दो बर्तन लिए गये । दोनों में एक हज़ार ग्रेन तालाब का पानी भरा गया । एक बर्तन में एक ग्रेन [0.0648 ग्राम ] अल्कोहल डालकर अच्छी तरह हिला-मिला दी गयी । फिर उसमें एक-एक मडूसा मछली डाली गयी। अल्कोहल का तत्काल प्रभाव देखने में आया। दो मिनट के भीतर ही मछली की हरकतें जो एक मिनट में 74 गिनी गयी, बन्द हो गयी । और वह नीचे बैठती गयी । वह बहुत अधिक सिकुड़ गयी और पांच मिनट के बाद वह बिलकुल पेंदी में बैठ गयी एवं जड़वत हो गयी । उसे तुरन्त निकालकर एक दूसरे बर्तन में जिसमें ख़ाली टैंक का पानी भरा था, डाला गया और वह 24 घंटे तक उसी में पड़ी रहने दी गयी, फिर भी वह अच्छी नहीं हुई । इससे यह मालूम हुआ कि 1000वें पानी में अल्कोहल का एकवां भाग भी जीवन के लिए कितना घातक और ख़तरनाक है । डॉ॰ रिचर्डसन कहते हैं कि ‘‘यह प्रयोग मैंने अनेक प्रकार से करके देखा, मनुष्यों पर भी करके देखा, प्रत्येक अवस्था में अल्कोहल का ज़हरीला प्रभाव सामने आया ।’’
‘ज़हर’ के कुप्रभाव
जैसा कि पहले उल्लेख किया जा चुका है कि शराब मन-मस्तिष्क को चौपट कर देती है । शराब नसों को जीर्ण-शीर्ण बनाकर शरीर को पिंजर में तब्दील कर देती है।
शराब के रसिया कुछ डॉक्टर यह कहते फिरते हैं कि शराब का हृदय पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता । यह बात सरासर ग़लत है । शराब शरीर में ऑक्सीजन के प्रसार को रोकती है, अतएव चर्बी बढ़ने लगती है । यद्यपि शराब का हृदय वाहनियों से सीधा संबंध् नहीं होता, लेकिन चर्बी की बृद्धि और मन-मस्तिष्क के प्रभाव होने का सीधा प्रभाव हृदय पर पड़ता है । यह अभिमत सही नहीं लगता कि कोलेस्ट्राल-एच॰डी॰एल॰ यानी उच्च घनत्व की लाइप्रोटींस संचार तंत्र में शराब कोलेस्ट्राल के हानिकारक तत्वों को दूर करने में मदद करता है । यह समाज के दुश्मन डॉक्टरों की फैलायी हुई अफवाह है । डॉक्टर पारकेस और डॉक्टर वूलोविज ने सबसे पहले हृदय पर शराब के क्या कुप्रभाव पड़ते हैं, इसका परीक्षण किया । उन्होंने अल्कोहल और पानी की अलग-अलग ख़ुराक पर एक स्वस्थ व्यक्ति को रखा । अल्कोहल के इस्तेमाल से हृदय की गति बहुत बढ़ गयी । सामान्य अवस्था में स्वस्थ व्यक्ति का हृदय चौबीस घंटे में एक लाख बार धड़कता है ।
हृदय में दो कोनेरिया [ प्रकोष्ठ ] होती हैं, जिनमें 6 औंस रक्त का प्रवाह रहता है । यह रक्त इतनी तेज़ी से आता-जाता है कि अगर खुली हवा में यह छूटे तो 5 अथवा 6 फुट की दूरी पर जाकर पड़े ।
हृदय को यह श्रम 116 टन बोझ एक फुट ऊपर उठाने के समान करना पड़ता है । परीक्षण से ज्ञात हुआ कि एक औंस अल्कोहल से हृदय की धड़कन 4300 बढ़ जाती है, दो औंस से 8600 और तीन औंस से 12900 । इसका तात्पर्य यह हुआ कि शराब हृदय के लिए इतना नुक़सानदेह है कि उसका कार्य बढ़ जाता है । उसकी शक्ति निरर्थक व्यय हो जाती है । गति के बढ़ जाने से रक्त के प्रवाह में कमी आ जाती है । इस प्रकार हृदय की संचित ऊर्जा नष्ट होने लगती है । शराबियों के हृदय में चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है, हृदय सिकुड़ कर मृतप्राय हो जाता है और रक्त का अभाव होते ही हृदय काम करना बंद कर देता है । दरअस्ल रक्त कोशिकाओं में और भी अत्यन्त सूक्ष्म कोशिकाएं होती हैं, जो ऑक्सीजन को खींचती हैं । अल्कोहल इन कोशिकाओं को सिकोड़ देती है । फिर वे निष्क्रिय हो जाती हैं और ऑक्सीजन ग्रहण करने में असमर्थ हो जाती हैं । ऑक्सीकरण की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाने से रक्त में दूषित पदार्थ एकत्र होते चले जाते हैं और शरीर विभिन्न रोगों से ग्रस्त हो जाता है । डॉ॰ फ्रेंक चेसायर ने मेंढ़कों पर अल्कोहल का परीक्षण करके देखा, तो मेंढ़कों के हृदय, पाचन अंगों, टांग, सिर सब प्रभावित हुए । इन सब अंगों की क्रियाएं बाधित हो गयीं ।
पाचन-क्रिया भी प्रभावित
शराब पाचन शक्ति को भी नष्ट कर डालती है । शराबी व्यक्ति के पेट में जो पाचक-रस बनता है, उसमें पेप्सिन बहुत कम होती है । नयी पेप्सिन के निर्माण में शराब रोड़ा अटकाती है । अतः पाचक-रस में भोजन पचाने वाले तत्वों का अभाव हो जाता है । जेनेवा यूनीवर्सिटी में प्रोफ़ेसर रह चुके डॉ॰ एल॰ रेविलियड और डॉ॰ पालबिनेट ने निष्कर्ष निकाला है कि शराबी का पेट अन्दर की ओर सिकुड़कर मोज़े की शक्ल का हो जाता है । उसमें चर्बी बढ़ जाती है । डॉ॰ बीयूमेंट का यह कहना बिलकुल सही है कि ‘‘शराबी लोगों को पेट की कोई न कोई बीमारी की मौजूदगी अवश्यंभावी है ।’’
शराब गुर्दों और लीवर को भी ख़राब कर डालती है । शराब गुर्दों का आकार बढ़ा देती है, उसकी क्रिया मद्धिम कर देती है । शराबी व्यक्ति के गुर्दे प्रायः झुरीदार, खुरदरे और पीले रंग के हो जाते हैं । तात्पर्य यह कि शराब शरीर के प्रत्येक अंग पर अपना कुप्रभाव डालती है । अमेरिका के डॉ॰ हार्वी वेले कहते हैं, ‘‘औषध तत्व सार के पारंगत सभी विद्वान जिन्होंने शराब के प्रभाव का अन्वेंषण किया है, एकमत से सहमत हैं कि शराब पौष्टिक पदार्थ नहीं है । यह एक निरा ज़हरीला पदार्थ है, इसलिए व्हिस्की और ब्रांडी दोनों ही औषधि की श्रेणी में से अलग कर दी गयी है ।’’
मानसिक संतुलन पर प्रभाव
मद्य-पान करने वाले का मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है । ‘ऐसा प्रायः होता है कि नशे में आदमी अपनी स्त्री और बहनों में तथा पिता और मित्रों में भेद नहीं रख पाता और अत्यंत अशिष्ट व्यवहार कर बैठता है ।’
‘अमेरिका में हुए एक ताज़ा शोध के अनुसार गर्भावस्था के दौरान शराब-सेवन से शिशु के दिमाग़ की कोशिकाओं को नुक़सान पहुंचता है| इससे उसके मानसिक व शारीरिक विकास दोनों में ही अवरोध पैदा होता है ।’
लोगों का ज़हर-प्रेम
अभी कुछ दिनों पूर्व एक अंग्रेज़ी दैनिक में शराब के इस्तेमाल पर एक सर्वेक्षणात्मक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी, जिसमें बताया गया कि भारतीय समाज के विशेषकर अभिजात्य वर्ग के युवक और युवतियां शराब के प्रति तेज़ी से आकर्षित हो रहे हैं । यह वर्ग फैशन के तौर पर भी शराब का इस्तेमाल करता है । कहने का मतलब यह कि इस ज़हरीले पदार्थ का इस्तेमाल पढ़े-लिखे मूर्ख तो पहले से करते रहे हैं, यह दुर्व्यसन अपनी पीढ़ी की ओर भी स्थानांतरित कर रहे हैं । आश्चर्य और चिन्ता का विषय है लोगों की यह बुद्धि -भ्रष्टता ।
हमारे देश में एक ओर मद्य-निषेध विभाग शराब से बचने के लिए लोगों को नसीहतें करता है, दूसरी ओर आबकारी विभाग शराब की ख़ुद की दुकानें खुलवाता और इसकी बिक्री के लिए लाइसेंस प्रदान करता है| इसका नतीजा यह है कि शराब दूर-दराज़ गांवों तक पहुंच गयी है और उन लोगों का भी जीवन तबाह कर रही है जो अभी तक शराब की पहुंच से बाहर थे । यह भी कम आश्चर्य और चिन्ता का विषय नहीं है ।
गांधी जी ने कहा था, ‘बैरिस्टरों को भी शराब पीकर नालियों में लोटते हुए पाया गया है । उच्च वर्गीय होने के कारण पुलिस उनको बचा लेती है, किन्तु इसी अपराध के लिए ग़रीब लोग दंडित किये जाते हैं ।’
यह बात भी नहीं है कि लोग शराब के नुक़सानों से पूर्णतः अपरिचित हों, लेकिन यह अवश्य है कि उन्हें इसके हर पहलू की जानकारी नहीं है| शराब पीने वाले लोगों को इतना अवश्य मालूम होता है कि वह अपनी लत को शांत करने के लिए जिस चीज़ का सेवन करते हैं, वह नुक़सानदेह है ।
हमारे देश में शराब से होने वाली मौतों की संख्या बहुत ज़्यादा है । अख़बार, पत्रिकाएं, आकाशवाणी और टी॰वी॰ आदि इसकी गवाह हैं, लेकिन ये इसके ख़िलाफ जनचेतना जगाने में असफल हैं, बल्कि यह बात ज़्यादा सही है कि इसके लिए मीडिया कोई गंभीर प्रयास ही नहीं करती | उल्टे टी॰वी॰, फिल्मों और कुछ पत्र-पत्रिकाओं में शराब के विज्ञापन भी प्रसारित-प्रकाशित होते रहते हैं । ऐसे लेख-आलेख आदि भी छपते रहते हैं जो शराब पीने के लिए जनता को उकसाते रहते हैं । मतलब यह कि संबंधित जन-माध्यम का उपकरण शराब-प्रबोधी उपकरण बन जाता है । इन हरकतों से शराबबंदी असंभव-सी लगती है| यह कुतर्क भी सामने आता है कि सर्दी से बचने के लिए मद्य-पान ज़रूरी है। जी॰ई॰जी॰ कैटलिन का कहना है, ‘जहां सर्दी से बचना आवश्यक हो जाता है, उन केसों में शराब का सेवन व्यर्थ ही नहीं, ख़तरनाक भी है ।’ धार्मिक ग्रंथों में शराबबंदी का आदेश मौजूद होने के बावजूद स्वार्थी तत्वों के हथकंडों में लोग आते रहते हैं और शराबी बनते रहते हैं ।
आइए देखें, धर्म -ग्रंथों में शराब के विरुद्ध क्या-क्या आदेश मौजूद हैं ।
धार्मिक शिक्षाओं में शराब का निषेध
इस्लाम की सद्क्रान्तियों में से एक है शराब और मादक पदार्थों के सेवन से मानवता को निजात दिलाना । अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद [ सल्ल॰] के समय में अरब समाज इतना पतित था कि जीवन में भोग-विलास की जो भी सामग्री प्राप्त हो सकती थी उससे आनन्द लेना और आज़ादी के साथ शराब पीना लोगों की दिनचर्या में शामिल हो गयी थी । लेकिन उन पर इस्लामी शिक्षाओं का इतना ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा कि शराब पीना बिलकुल बंद कर दिया और जब क़ुरआन की ये आयतें अवतरित हुईं, तो जिन लोगों के पास जो कुछ शराब थी, उसे मदीना की गलियों में बहा दी -
‘‘ऐ ईमान लाने वालो ! यह शराब, जुआ और ये थान एवं पांसे शैतान के गंदे कामों में से है । अतः इनसे बचो ताकि तुम सफल हो सको । शैतान तो यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच वैमनस्य व द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद और नमाज़ से रोक दे । फिर क्या तुम बाज़ आ जाओगे ? अल्लाह का आदेश मानो और रसूल का आदेश मानो और [ इन चीज़ों से ] बचते रहो । यदि तुमने [ हुक्म मानने से ] मुंह मोड़ा, तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्ट रूप से [ संदेश ] पहुंचा देने की ही ज़िम्मेदारी है ।’’ [ क़ुरआन , 5: 90-92 ]
क़ुरआन की इन आयतों में शराब के लिए ‘‘ख़म्र’’ शब्द प्रयुक्त हुआ है, जिसकी व्याख्या हज़रत उमर [ रज़ि॰] ने इन शब्दों में की है, ‘‘ख़म्र उस चीज़ को कहते हैं जो बुद्धि पर परदा डाल दे ।’’ शराब मन-मस्तिष्क को सर्वाधिक प्रभावित करती है और बुद्धि को नष्ट कर डालती है । डॉ॰ ई॰ मैक्डोवेल कासग्रेव [ एम॰डी॰, एफ़॰आर॰सी॰पी॰] के अनुसार,‘‘अल्कोहल मस्तिष्क को नष्ट कर देती है ।’’.
इस्लाम ने हर प्रकार की शराब ही को हराम नहीं किया है, बल्कि इसके अन्तर्गत हर वह चीज़ आ जाती है जो नशावर हो और मनुष्य की सोचने-समझने की शक्ति को नष्ट करे या उसे क्षति पहुंचाए ।
इस अवसर पर इस बात को भी ध्यान में रखने की ज़रूरत है कि मनुष्य का जिस चीज़ के कारण समस्त प्राणियों में विशिष्ट और प्रतिष्ठित एवं केन्द्रीय स्थान दिया गया है, वह वास्तव में उसकी सोचने-समझने और सत्य-असत्य और भले-बुरे में अन्तर करने की क्षमता है । अब यह स्वाभाविक बात है कि जिस चीज़ या काम से मनुष्य की इस क्षमता और योग्यता को आघात पहुंचा हो या उसके पूर्ण रूप से क्रियाशील होने में बाधा उत्पन्न होती हो, उसको मनुष्य का निकृष्टतम शत्रु समझा जाए । शराब चूंकि मस्तिष्क को स्वाभाविक रूप से कार्य करने में रुकावट डालती है और उसकी तर्कशक्ति को शिथिल करके मनुष्य को मानवता से ही वंचित कर देती है, इसलिए उसे मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु घोषित करना बिलकुल उचित ही है ।
क़ुरआन में शराब के विषय में जो कुछ कहा गया है उसका स्पष्टीकरण अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद [ सल्ल॰ ] के बहुत से कथनों से भी होता है । आपने कहा है , ‘प्रत्येक मादक चीज़ ‘ख़म्र’ है और प्रत्येक मादक चीज़ हराम है ।’
‘वह हर पेय जो नशा पैदा करे, हराम है और मैं हर मादक चीज़ से वर्जित करता हूं ।’
शराब की हानि और ख़राबी के सिलसिले में इस्लाम के दृष्टिकोण को इससे भी समझा जा सकता है कि अल्लाह
के रसूल [ सल्ल॰ ] ने कहा , ‘अल्लाह ने लानत की है शराब पर, उसके पीने वाले पर, पिलाने वाले पर, बेचने वाले पर, उसको ख़रीदने वाले पर और उसे निचोड़ने वाले पर और जिसके लिए वह निचोड़ी जाए उस पर, उसे उठाकर ले जाने वाले पर और उस पर भी जिसके पास वह ले जायी जाए ।’
शराब के सिलसिले में इस्लाम की सख़्ती का यह हाल है कि एक व्यक्ति ने नबी [ सल्ल॰ ] से पूछा कि ‘क्या दवा के रूप में उसे प्रयोग में लाने की इजाज़त है ? तो आपने कहा,‘शराब दवा नहीं बल्कि बीमारी है।’
एक सहाबी जो हिमियर के रहने वाले थे, कहते हैं कि मैंने नबी [सल्ल॰] से निवेदन किया कि ‘हम एक ऐसे क्षेत्र के रहने वाले हैं जो अत्यन्त ठंडा है और हमें मेहनत भी बहुत करनी पड़ती है । हम लोग एक प्रकार की शराब बनाते हैं और उसे पीकर थकावट और ठंडक का मुकाबला करते हैं ।’ आपने पूछा, जो चीज़ तुम पीते हो वह नशा करती है ?’ मैंने कहा हां, आपने कहा, ‘तो फिर उससे परहेज़ करो ।’ मैंने निवेदन किया, ‘किन्तु हमारे इलाक़े के लोग नहीं मानेंगे।’ तो आपने कहा, ‘यदि वे न मानें तो उनसे युद्ध करो ।’
शराब के सिलसिले में इस्लाम का एक नियम यह भी है कि नशीली चीज़ को कम से कम मात्रा में भी इस्तेमाल करने की इजाज़त नहीं है । और यह मानव दुर्बलता की दृष्टि से एक बुद्धिसंगत बात है, क्योंकि शराब के विषय में जहां यह बात सत्य है कि मुंह को लग जाए तो बड़ी मुश्किल से छूटती है, वहीं यह बात भी सत्य है कि इसमें किसी सीमा का निर्धरण बहुत मुश्किल है, क्योंकि सीमा का निर्धरण बुद्धि ही करेगी और वह शराब के प्रभाव से शिथिल हो जाती है ।
अल्लाह के नबी [ सल्ल॰ ] कहते हैं , ‘जिस चीज़ की अधिक मात्रा नशा पैदा करे, उसकी थोड़ी मात्रा भी हराम है ।’
बाद के काल में भी मुस्लिम शासकों ने शराब और मादक पदार्थों से समाज को पाक रखने के लिए आदेश और घोषणाएं जारी कीं । इसका व्यावहारिक रूप भी देखने को मिला । भारत में बादशाह जहांगीर ने शराबनोशी के ख़िलाफ राजाज्ञा जारी की । अलाउद्दीन ख़िलजी के शासनकाल में तो शराबियों को शिक्षाप्रद सज़ाएं दी गयीं, जिसके फलस्वरूप लोगों की यह लत जाती रही । अकबर ने भी इसके विरुद्ध घोषणाएं जारी कीं । औरंगज़ेब के शासनकाल में तो दिल्ली में शराब की एक भी दुकान न थी । बर्नियर [ फ़्रांसीसी डॉक्टर ] भारत आया था और औरंगज़ेब के दरबार में कई दिनों तक ठहरा रहा । वह लिखता है कि ‘‘शराब जो हमारे यहां भोजन का प्रधान अंग है, दिल्ली की किसी भी दुकान में नहीं मिलती ।’’
हिन्दू धर्म की शिक्षाएं
इस्लाम में शराब और मादक पदार्थों के इस्तेमाल के ख़िलाफ जिस प्रकार स्पष्ट और दो टूक अंदाज़ में शिक्षाएं मिलती हैं, अन्य धर्मों में नहीं मिलतीं । इस वजह से भी पूर्ण शराबबंदी के मार्ग में अवरोध उत्पन्न होता है और मादक पदार्थों का कारोबार फलता-फूलता रहता है ।
हिन्दू धर्म के बहुत से ग्रंथों में सोम और सुरा का उल्लेख मिलता है । डॉ॰ पी॰वी॰ काणे अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘‘धर्मशास्त्र का इतिहास '' [प्रथम भाग ] में लिखते हैं कि सोम मदमस्त करनेवाला पेय पदार्थ था और इसका प्रयोग केवल देवगण और पुरोहित लोग कर सकते थे | '' [पृ॰ 428 ]
इस पुस्तक में ‘‘मद्यपान’’ शीर्षक के अन्तर्गत डॉ॰ काणे लिखते हैं, ‘‘सुरा नामक मदिरा चावल के आटे से बनती थी [ पृ॰ 403] ’’ लेकिन सुरा का व्यापार ब्राह्मण के लिए वर्जित है | ''[ मनुस्मृति 10-89] , याज्ञवल्क्य स्मृति [ 3-27 ]
वैदिक साहित्य के अनुसार सौत्रामणी यज्ञ में ब्राह्मण को बुलाया जाता था । वह सुरा से भरे पात्र के निचले भाग वाली सुरा पीते थे।
कहते हैं, बाद में ब्राह्मणों ने सुरा पीनी छोड़ दी, लेकिन यह दूसरी जाति के लिए वैध ठहरा दी गयी । काठक संहिता में है, ‘‘अतः प्रौढ़, युवक, वधुएं और श्वसुर सुरा पीते हैं, साथ-साथ प्रलाप करते हैं, मूर्खता सचमुच अपराध है, अतः ब्राह्मण यह सोचकर कि यदि मैं पिऊंगा तो अपराध करूंगा, सुरा नहीं पीता, अतः यह क्षत्रिय के लिए है । ब्राह्मण से कहना चाहिए कि यदि क्षत्रिय सुरा पिये तो उसकी हानि नहीं होगी [ 12-12 ]।’’ ऐतरेय ब्राह्मण [ 37-4 ] में लिखा है कि अभिषेक के समय पुरोहित राजा के हाथ में सुरापात्र रखता था ।
मनुस्मृति [ 11-93,94 ] के अनुसार, सुरा तीन प्रकार की होती है: गुड़वाली, आटेवाली और महुए के फूलों वाली [ गौड़ी, पैष्टी, माध्वी ] - इनमें किसी को भी ब्राह्मण न पिये । ब्राह्मणों के लिए शराब का स्पर्श ही आत्महत्या के समान है । मनुस्मृति के इन श्लोकों और गौतम स्मृति [ 2-25 ] में ब्राह्मणों के लिए सभी प्रकार की सुरा वर्जित मानी गयी है, किन्तु क्षत्रियों और वैश्यों के लिए केवल पैष्टी वर्जित है। विष्णु धर्म सूत्र [ 22-83,84,25 ] में वर्णित है कि ब्राह्मणों के लिए दस प्रकार की शराबें वर्जित हैं - [1] साधूक [ महुआ वाली ] [ 2 ] ऐक्षव [ईखवाली] [3 ] टांक [4 ] कौल [ 5 ] खार्जूर [ खजूर वाली ] [ 6 ] पानस [ कटहल वाली ] [ 7] अंगूरी [ 8 ] माध्वी [ 9 ] मैरेय, और [10 ] नारिकेलज ।
डॉ॰ काणे लिखते हैं कि ‘‘किन्तु ये दसों क्षत्रियों एवं वैश्यों के लिए वर्जित नहीं है [ पृ॰ 430 ]।’’ पानस नामक शराब बनाने का तरीका ' मत्स्युक तंत्र ' नामक पुस्तक में इस प्रकार बताया गया है - कच्चे माल पानस [ कटहल ] को एक बर्तन में रखकर रोज़ाना कच्चे दूध् की धार उस पर डाला जाए, उसमें थोड़ा कच्चा मांस बारीक करके प्रति तीसरे दिन मिलाया जाए, फिर भांग और खाने का चूना बुरक कर उसे सड़ाया जाए । मालूम हुआ कि शराब के निर्माण में मांस भी प्रयुक्त होता था । शराब कुछ देवी-देवताओं के अर्पण-तर्पण के भी काम आती है ।
एक दूसरा पक्ष
उपर्युक्त विवरण से यह बात उभर कर सामने आयी कि शराब को एक विशिष्ट जाति को छोड़कर शेष के लिए विहित ठहरा दिया गया है । यहां पर यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि हिन्दू धर्मग्रंथों में शराब से परहेज़ करने की भी शिक्षाएं विद्यमान हैं । अब यहां इनका उल्लेख किया जाएगा -
ऋग्वेद [ 7-86-6 ] के अनुसार, वसिष्ठ ने वरुण से प्रार्थना भरे शब्दों में कहा है कि ‘‘मनुष्य स्वयं अपनी वृत्ति अथवा शक्ति से पाप नहीं करता, प्रत्युत भाग्य, सुरा, क्रोध्, जुआ और असावधानी के कारण वह ऐसा करता है ।’’
शतपथ ब्राह्मण [ 5-5-4-28 ] में सोम को सत्य, समृद्धि और प्रकाश एवं सुरा को असत्य क्लेश और अन्धकार कहा है। सुरा अथवा मद्य का सेवन एक महापातक कहा गया है [ वसिष्ठ धर्म सूत्र 1-20, विष्णु धर्म सूत्र 15-1, आपस्तम्ब धर्म सूत्र 1-7-21-8, याज्ञवल्क्य 3-227 ]। गौतम [ 2-25 ] , आपस्तम्ब धर्म सूत्र [ 1-5-17-21] और मनु [11-94] ने एक स्वर से ब्राह्मणों के लिए सभी अवस्थाओं से नशीली वस्तुओं को वर्जित ठहराया है । मनु [ 9-80 ] और याज्ञवल्क्य [ 1-73 ] के अनुसार ‘‘मद्यपान करने वाली पत्नी त्याज्य है ।’’ यदि ब्राह्मण पत्नी सुरा-पान करती है तो वह अपने पति के लोक को नहीं प्राप्त कर सकती, वह इसी लोक में जोंक, सीपी, घोंघा बनकर जल में घूमती रहती है । याज्ञवल्क्य स्मृति में है, ‘‘सुरापान करने वाली पत्नी अपने आगे के जन्मों में इस संसार में कुतिया, चील या सूअर होती है [ 3-256 ]।’’ यह भी सच है कि हिन्दू समाज में कुछ ऐसे त्योहार प्रचलित हैं, जिसमें शराब और जुआ को धर्म -विहित ठहरा दिया जाता है ।
बौद्ध धर्म की शिक्षाएं
मेगस्थनीज और स्ट्रैबो ने लिखा है कि यज्ञों के कालों को छोड़कर भारतीय कभी भी सुरापान नहीं करते [ ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के समय ] महात्मा बुद्ध ने यज्ञों के समय होने वाले अनाचारों के ख़िलाफ आवाज़ बुलंद की । उन्होंने मद्यपान [ शराबनोशी ] को बुरा और त्याज्य ठहराया ।
बौद्ध धर्मिक पुस्तकों में शराब के इस्तेमाल के ख़िलाफ जनता को सचेत करने वाली एक शिक्षाप्रद कथा का उल्लेख मिलता है ।
एक दिन की बात है कि प्रभु संसार के सब स्रष्ट जीवों पर दृष्टिपात कर रहे थे । सर्वमित्रा नामक एक राजा था । प्रभु ने देखा कि यह ख़ूब शराब पी रहा है । उसके साथ उसके मंत्री -गण ही नहीं उसकी प्रजा भी शराब की लत से ग्रस्त है । प्रभु ने सोचा, ‘‘यह तो महा पापाचार हो रहा है । हाय ! हाय !! इन इन्सानों पर यह कैसा अभिशाप है । शराब पीने में तो मधुर है, परन्तु इसका परिणाम बहुत भयानक है । इन सबका बुद्धि -विवेक नष्ट हो गया है । ये अनाचार क्यों कर रहे हैं ? यदि यह राजा सुधर जाए तो शेष प्रजाजन भी सुधर जाएंगे ।’’
ऐसा विचार कर प्रभु ने ब्राह्मण रूप धरण किया । एक सुराही में शराब भरकर अपने कंधे पर लटका ली और सर्वमित्रा के पास जा पहुंचे । राजा दरबारियों के साथ शराब पीने में मस्त था । प्रभु ने कहा कि मैं सुगंध्ति मधुर शराब लाया हूं । देखो! कितनी प्रिय चीज़ है बताओ ! तुममें से कौन इसकी कीमत दे सकता है ?
राजा की उत्सुकता को देखते हुए प्रभु ने कहा, ‘‘सुनो राजन इसमें न जल है, न मेद्यों की अमृत बूंदें हैं, न यह किसी पवित्र स्रोत की पुनीत धारा है, न इसमें सुगंध्ति पुष्पों का सार मधु है, न परदर्शी घृत [ घी ] है और न ही दूध् है जो शरद-किरणों की मधुरिमा से युक्त हो । नहीं, नहीं, इस सुराही में पिशाचिनी शराब है । इस शराब के गुण सुनो ! जो इसको पियेगा उसकी सुध-बुध न रहेगी, वह नशे में चूर होकर भोजन के बदले विष्ठा [ गंदगी ] भी खा सकेगा । ऐसी यह शराब है, इसे ख़रीद लो, इतनी निकृष्ट यह सुराही बिक्री ही के लिए है ।
इस पदार्थ में तुम्हारा समस्त ज्ञान और विवेक नष्ट कर देने की शक्ति है, जिससे तुम अपनी विचारधारा पर अधिकार न रखकर एक जंगली जानवर की तरह व्यवहार कर सकोगे ।
तुम्हारे शत्रु तुम्हारी दशा पर हंसी उड़ाएंगे । तुम इसे पीकर ख़ूब नाच सकते हो, गा भी सकते हो। यह शराब अवश्य तुम्हारे ख़रीदने योग्य है| इसमें एक भी अच्छा गुण नहीं है । इसके पीने से तुम्हारी लाज-भावना जाती रहेगी । तुम नंगे भी रह सकते हो । लोगों का समुदाय यदि तुम पर थूके , तब भी तुम्हें बुरा प्रतीत न होगा । लोग तुम पर गोबर, कीचड़, कंकर-पत्थर उछालें तब भी तुम न जान सकोगे । ऐसी शराब को मैं तुम्हारे पास बेचने के लिए लाया हूं ।
जो स्त्री इसका सेवन करेगी, वह नशे में चूर होकर अपने माता-पिता को रस्सियों से बांध्कर और कुबेर जैसे पति को ठुकराकर पतन के गढ़े में प्रसन्नता से जा गिरेगी । ऐसी यह शराब है ।
इसने अनेक सम्पन्न परिवारों को नष्ट किया है, सुन्दर स्वर्ण शरीर को पर जलाकर भस्म किया है, राजमहल और सम्राटों को धूल में मिलाकर पद दलित किया है, फिर भी इसकी प्यास नहीं बुझती ! ऐसी है प्रलयंकारी यह शराब !
इसे ज़बान पर रखते ही मन मलित हो जाता है, जी ऐंठ जाता है । ख़ूब हंसो, ख़ूब बको, कुछ भी ज्ञान नहीं रहता । उसमें झूठ बोलने का साहस आ जाता है, वह सच को झूठ और झूठ को सच समझने लगता है । नशा करने वाली इस वस्तु [ शराब ] के स्पर्श-मात्रा से ही पाप लगता है, बुद्धि मलिन होती, कष्ट और रोग बढ़ते हैं । यह समस्त अपराधों की जननी है, उज्ज्वल मन का भयानक अन्धकार है, जिसकी तीक्ष्ण ज्वाला शीतल हृदय पर सदैव धधककर दहकती रहती है । जो इसके प्रभाव में होकर अपने माता-पिता, स्त्री , बहन और बच्चों का हंसते-हंसते क़त्ल कर सकता है, ऐसी यह शराब है । हे प्रजा के राजा ! यह पेय तुम्हारे प्रतापी कंठ से नीचे उतरने योग्य है, तुम इसे ख़रीदकर सेवन करो ।
इस शराब को ज़रा देखो तो ! इसका माणिक की भांति हल्का लाल रंग है...इसे पीकर इन्सान जानवर बन जाता है, यह नरक की खान है । प्रभु ने यह बखान करके चारों ओर देखा । सब स्तब्ध् थे । अचानक राजा ने तेज़ी से उठकर अपने शराब के पात्रों-बर्तनों को दीवार से टकराकर चूर-चूर कर डाला । राजा यह कहकर प्रभु के चरणों में गिर पड़ा, ‘‘हाय ! पिशाचिनी, मायाविनी शराब, तू जा ! जा !! मुझे छोड़ !!!’’
महात्मा बुद्ध ने अपने अनुयायियों को नसीहत करते हुए कहा था, ‘‘मनुष्यो! तुम सिंह [ शेर ] के सामने जाते भयभीत न होना-यह पराक्रम की परीक्षा है, तुम तलवार के नीचे सिर झुकाने से भयभीत न होना-यह बलिदान की कसौटी है, तुम पर्वत शिखर से पाताल में पड़ने से भयभीत न होना-वह तप की साधना है, तुम दहकती ज्वालाओं से विचलित न होना-यह स्वर्ण-परीक्षा है, पर सुरा देवी से सदैव भयभीत रहना, क्योंकि यह पाप और अनाचारों की जननी है ।’’
अनेक बौद्ध राजाओं ने अपने शासनकाल में शराबबंदी की नीतियां अपनायीं । चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल में कौटिल्य ने शराब की दुकानों पर स्वादिष्ट भोजन रखवा दिये । जो व्यक्ति शराब पीने के लिए दुकान पर जाता, उसके सामने अच्छे भोजन पेश किये जाते । इनका मूल्य बहुत सस्ता होता था । भोजन में कुछ ऐसी औषधियाँ मिली होती थीं, जिनसे शराब की लत छूट जाती थी । इस सम्राट के काल में शराब पीने और पिलाने वाले दोनों दंडित किये जाते थे । सम्राट अशोक भी इस नीति पर चलता रहा ।
हमारे देश में इस समय शराब की 120 करोड़ लीटर वार्षिक क्षमता की 165 फैक्ट्रियां कार्यरत हैं । यहां महिला-दुर्व्यवहार और अपराध की अन्य घटनाओं में भारी वृद्धि होती जा रही है । एक अमेरिकी शोध के अनुसार , 95 फीसद हत्याओं, 24 फीसद आत्महत्याओं के लिए शराब सेवन ज़िम्मेदार है, जबकि 25 से 30 फीसद मानसिक विक्षिप्तता के शिकार हो जाते हैं । वास्तव में शराब-सेवन समाज के लिए कलंक है, अभिशाप है ।
हर व्यसन से जनता को दूर रखने के लिए व्यापक और प्रभावकारी क़दमों की आवश्यकता है ।