मोहम्मद बिन सलमान : सऊदी अरब के युवराज के सत्ता के शिखर तक पहुंचने की दास्तान ~ Shamsher ALI Siddiquee

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मोहम्मद बिन सलमान : सऊदी अरब के युवराज के सत्ता के शिखर तक पहुंचने की दास्तान

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मोहम्मद बिन सलमान

सऊदी अरब के युवराज के सत्ता के शिखर तक पहुंचने की दास्तान
Mohammed Bin Salman over a filtered photo of Riyadh


(क्राउन प्रिंस के बारे में बताने से पहले हम बीबीसी संवादाता फ्रेंक गार्डनर से सुनते हैं प्रिंस सलमान के बारे में उन्हीं की जुबानी)

MBS के नाम से मशहूर, सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान अपने बेहद रूढ़िवादी देश को बदल रहे हैं. उसे मॉर्डन और कुछ हद तक लिबरल दिखाने की कोशिश में लगे हैं. लेकिन, साथ ही साथ उन्होंने सऊदी अरब को यमन की जंग में भी फंसा दिया है.

उन्होंने महिला अधिकारों की मांग करने वाले प्रदर्शनकारियों, कई इस्लामिक धर्म गुरुओं और ब्लॉगर्स को क़ैद कर लिया है. सलमान पर इस बात का भी गहरा संदेह है कि साल भर पहले तुर्की के इस्तांबुल में सऊदी अरब के हुक्मरानों के आलोचक जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या उनके इशारे पर हुई थी.

कौन है ये शख़्स जिसे लोग MBS कहते हैं?

सुल्तान के वारिस

सऊदी अरब के शहर जेद्दा में लाल सागर के ऊपर तेज़ सूरज चमक रहा था. हमारी गाड़ी राजमहल के दरवाज़े पर पहुंची, तो वहां खड़े सुरक्षाकर्मी किनारे हो गए और हमारी कार गेट के अंदर चली गई. हम सऊदी अरब के वली अहद यानी युवराज प्रिंस सलमान बिन अब्दुल्लाज़ीज़ से मिलने जा रहे थे. प्रिंस अब्दुल्लाज़ीज, देश के रक्षा मंत्री भी थे. ये बात सितंबर 2013 की है.
कई साल पहले, 2004 में प्रिंस सलमान अब्दुल्लाज़ीज़ जब सऊदी अरब की राजधानी रियाद के गवर्नर थे तब हथियारबंद लोगों ने हमारी बीबीसी की टीम पर गोलियों की बरसात कर दी थी. हमलावरों ने आयरलैंड के रहने वाले मेरे कैमरामैन साइमन कम्बर्स को मार डाल था और मुझे मरा समझ कर छोड़ गए थे.
बताया जाता है कि तब प्रिंस सलमान अब्दुल्लाज़ीज़ मुझसे मिलने अस्पताल भी आए थे. लेकिन मुझे उसकी कोई याद नहीं क्योंकि, तब मुझे छह गोलियां लगी थीं. और डॉक्टरों ने मुझे दवा देकर कोमा में रखा हुआ था. आज वो प्रिंस सलमान बिन अब्दुल्लाज़ीज़, सऊदी अरब के बादशाह हैं. उनकी सेहत ठीक नहीं है.
उस वक़्त यानी 2013 में भी मैंने ग़ौर किया था कि जब हम महल के शानदार मेहमानख़ाने में सजी-धजी कुर्सियों पर बैठे बात कर रहे थे, तो उन्होंने अपना हाथ टहलने वाली छड़ी पर टिकाया हुआ था.
प्रिंस सलमान धीरे-धीरे अंग्रेज़ी बोल रहे थे. वो अपनी गहरी आवाज़ में मुझे बता रहे थे कि उन्हें लंदन किस क़दर पसंद था. बोलते वक़्त प्रिंस सलमान अब्दुल्लाज़ीज़ का लंबा चेहरा अक्सर मुस्कुराहट से भर उठता था.


सऊदी अरब की राजधानी रियाद

आज वो सऊदी अरब के बादशाह हैं. उन्होंने अपने जीवन में बहुत से बदलाव देखे हैं. वो पहले सऊदी अरब की राजधानी रियाद के पांच दशक तक गवर्नर रहे थे. एक दौर में रियाद दो लाख बाशिंदों वाला एक धूल भरा शहर था. लेकिन प्रिंस सलमान अब्दुल्लाज़ीज़ की निगरानी में आज रियाद आधुनिक और चमक-दमक से भरपूर शहर बन चुका है, जहां क़रीब 50 लाख लोग रहते हैं.
प्रिंस सलमान बिन अब्दुल्लाज़ीज़ से इस शाही मुलाक़ात के दौरान मुझे बिल्कुल भी ये एहसास नहीं हुआ कि कोई शख़्स मेरे पीछे बैठा हुआ, हमारी बातचीत को नोट कर रहा है. मेरा ये आकलन ग़लत था कि वो प्रिंस अब्दुल्लाज़ीज़ का निजी सचिव या फिर कोई अधिकारी होगा.
मैंने देखा कि वो एक लंबा और मज़बूत कद-काठी वाला इंसान था. जिसकी दाढ़ी करीने से कटी हुई थी. वो सऊदी अरब का पारंपरिक लिबास बिश्ट यानी चोगा पहने हुए था, जिस पर सोने की कशीदाकारी से साफ़ था कि वो किसी ऊंचे दर्ज़े से ताल्लुक़ रखता था. प्रिंस सलमान बिन अब्दुल्लाज़ीज़ से मुलाक़ात के बाद मैंने उस शख़्स को अपना तार्रुफ़ दिया.
हम दोनों ने हाथ मिलाया और मैंने इस ख़ामोशी से नोट लिख रहे शख़्स को ख़ुद का तार्रुफ़ दिया. फिर मैंने उस शख़्स से पूछा कि वो कौन है? उस ने जवाब दिया, "मैं प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान हूं. मैं एक वक़ील हूं. आप मेरे पिता से बात कर रहे थे."
जेद्दा की उस तपती दोपहरी में मुझे ये क़तई अंदाजा नहीं था, कि ये ख़ामोश तबीयत का, कम बोलने वाला 28 बरस का नामालूम इंसान, अरब देशों का सबसे ताक़तवर और इतनी विवादित शख़्सियत बन जाएगा, जैसा इससे पहले अरब मुल्कों में देखा नहीं गया था.

ख़ाशोज्जी

ख़ाशोज्जी को आख़िरी बार इस्तांबुल के सऊदी वाणिज्य दूतावास में दाखिल होते देखा गया था
अक्टूबर को एक बजकर 14 मिनट हो रहे थे, जब जमाल ख़ाशोज्जी तुर्की के इस्तांबुल शहर के लेवेंत इलाक़े की एक साधारण सी दिखने वाली इमारत में दाखिल हुए थे. ख़ाशोज्जी एक जाने-माने लेखक थे और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के कट्टर आलोचक भी थे.
वो इस्तांबुल स्थित सऊदी अरब के वाणिज्य दूतावास गए थे, ताकि अपने तलाक़ के दस्तावेज़ प्रमाणित करा सकें. लेकिन, एक बार कॉन्सुलेट के अंदर घुसने के बाद ख़ाशोज्जी पर रियाद से भेजी गई सुरक्षा और ख़ुफ़िया अधिकारियों की टीम ने हमला बोला और उन्हें अपने क़ाबू में ले लिया.
इन लोगों ने ख़ाशोज्जी की हत्या कर दी. इसके बाद उनके शव को काट कर ऐसे ठिकाने लगाया कि आज तक उसका निशान नहीं मिला.


जमाल ख़ाशोज्जी

यमन में चल रही जंग में अब तक हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. इन में से बहुत से लोगों की जान सऊदी अरब के हवाई हमलों में गई. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के सैकड़ों आलोचक सऊदी अरब के क़ैदख़ानों से लापता हो गए. लेकिन, इस एक पत्रकार के क़त्ल ने दुनिया के तमाम लोगों को सऊदी अरब के वली अहद के ख़िलाफ़ कर दिया.
हालांकि आधिकारिक रूप से सऊदी अरब के अधिकारियों ने लगातार इस बात से इनकार किया. लेकिन, कई पश्चिमी देशों की ख़ुफ़िया एजेंसियों को ये यक़ीन था कि मोहम्मद बिन सलमान को ख़ाशोज्जी को ख़ामोश करने के इस ख़ुफ़िया मिशन की पहले से ही ख़बर थी. ख़बरों के मुताबिक़, सीआईए का तो ये मानना है कि ख़ुद प्रिंस सलमान ने ही ख़ाशोज्जी की हत्या का आदेश दिया था.
CBS 60 मिनट पर 29 सितंबर को प्रसारित हुए एक इंटरव्यू में प्रिंस एमबीएस ने जो भी हुआ उसकी ज़िम्मेदारी ली थी. इससे पहले पीबीएस पर एक इंटरव्यू में मोहम्मद बिन सलमान ने ये भी माना था कि जो भी हुआ वो उनकी निगरानी में हुआ. लेकिन, ये ख़शोज्जी की हत्या की ज़िम्मेदारी लेना नहीं था.
ख़ुद प्रिंस सलमान और सऊदी सरकार इस बात से लगातार इनकार करते रहे हैं. इस बेहद संदिग्ध हत्या की महत्वपूर्ण कड़ी है, 41 बरस के पूर्व एयरफ़ोर्स अधिकारी सऊद-अल-क़हतानी, जो कभी प्रिंस सलमान के क़रीबी सलाहकारों में से एक थे. ख़ाशोज्जी की हत्या के फ़ौरन बाद सऊद-अल-क़हतानी को बादशाह सलमान के कहने बर्ख़ास्त कर दिया गया था.
लेकिन, इस बर्ख़ास्तगी से पहले तक सऊदी अरब के शाही दरबार में वो युवराज एमबीएस के सबसे करीबी फ़रमाबरदार थे. कहा जाता है कि सऊद-अल-क़हतानी ने सऊदी अरब के आम लोगों की साइबर निगरानी का दायरा बढ़ाने में बहुत अहम रोल निभाया है. सिर्फ़ देश ही नहीं, विदेशों में भी सऊदी नागरिकों की साइबर जासूसी की जाती है.
इसके लिए लोगों की निजता में दख़ल देने वाले सॉफ्टवेयर का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है. कुछ ख़बरें तो ये भी कहती हैं कि सऊदी अरब के नागरिकों के मोबाइल फ़ोन को ही जासूसी उपकरण में तब्दील कर दिया गया है. और ये सब मोबाइल इस्तेमाल करने वालों की जानकारी या इजाज़त के बग़ैर किया गया.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की नीतियों की आलोचना या विरोध करने वालों को सोशल मीडिया गाली-गलौज और धमकी भरे मैसेज का हमला झेलना पड़ता है. अल-क़हतानी के ट्विटर पर क़रीब दस लाख फॉलोवर हैं. क़हतानी ने सोशल मीडिया पर अपनी इस पहुंच का फ़ायदा उठाकर 'मक्खियों की फ़ौज' तैयार कर ली है. जो किसी भी इंसान को दुश्मन होने के शक में परेशान करते हैं और सार्वजनिक रूप से शर्मिंदा करते हैं.


सऊद अल-क़हतानी के ट्विटर प्रोफ़ाइल पर मौजूद तस्वीर

2017 की गर्मियां आते-आते सऊदी अरब के ब्लॉगर्स, लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए मुहिम चलाने वाले, मानव अधिकार कार्यकर्ता और प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की आलोचना करने वाले लोग जेल में ठूंसे जा रहे थे. ऐसे माहौल में जमाल ख़ाशोज्जी को भी ये एहसास हो रहा था कि उन्हें ख़तरा हो सकता है.
जून 2017 में जब प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को क्राउन प्रिंस या सऊदी अरब का वली अहद मुक़र्रर किया गया, तो ख़ाशोज्जी ने सऊदी अरब छोड़ने का फ़ैसला किया और उन्होंने अमरीका में पनाह ली. 59 बरस के जमाल ख़ाशोज्जी हमेशा ख़ुद को देशभक्त सऊदी नागरिक कहते थे.
2000 के दशक की शुरुआत में ख़ाशोज्जी लंदन में सऊदी अऱब के राजदूत के मीडिया सलाहकार हुआ करते थे. उस दौर में मैं अक्सर उनके साथ कॉफ़ी पर गप-शप किया करता था. लेकिन, अमरीका जाने के बाद ख़ाशोज्जी वॉशिंगटन पोस्ट में लगातार प्रिंस सलमान के तानाशाही रवैये के ख़िलाफ़ लेख लिखने लगे थे.
कहा जाता है कि ख़ाशोज्जी के लगातार हमलों से प्रिंस सलमान नाराज़ हो गए थे. इसके बाद पत्रकार ख़ाशोज्जी को सऊदी अरब से फ़ोन जाने लगे कि वो सऊदी अरब लौट आएं. उनसे वादा किया जाता था कि उनकी हिफ़ाज़त की पूरी गारंटी दी जाएगी और सरकार में नौकरी भी मिलेगी.
ख़ाशोज्जी को इन वादों पर बिल्कुल ऐतबार नहीं था. उन्होंने अपने दोस्तों को बताया कि अल-क़हतानी की टीम ने उनके ई-मेल और टेक्स्ट मैसेज को हैक कर लिया था और वो सऊदी हुकूमत के दूसरे आलोचकों के साथ उनकी बातचीत पढ़ लेते थे.
ख़ाशोज्जी और उनके जैसी सोच वाले लोगों ने अरब देशों में बोलने की आज़ादी का आंदोलन छेड़ने की योजना बनाई हुई थी. ट्विटर पर उनके 16 लाख फॉलोवर थे. वो मध्य-पूर्व के प्रसिद्ध पत्रकारों में से एक थे.
युवराज मोहम्मद बिन सलमान और उनके क़रीबी सलाहकारों की नज़र में ख़ाशोज्जी उनकी हुकूमत के लिए बड़ा ख़तरा थे. हालांकि मोहम्मद बिन सलमान ने सीबीएस पर अपने इंटरव्यू में इस बात से भी इनकार किया था.
ऐतिहासिक रूप से इस बात की कई मिसालें मिलती हैं, जब सऊदी अरब के हुक्मरान, 'रास्ता भटक गए' नागरिकों, यहां तक कि राजकुमारों को स्वदेश बुला कर, 'वापस सही रास्ते पर ले आए' थे. कम से कम सऊदी अरब के जानकार तो यही कहते हैं.
लेकिन, अब तक किसी 'भटके हुए शख़्स' को सऊदी अरब के शाही परिवार ने कभी क़त्ल नहीं कराया था. किसी दूसरे देश में अपने नागरिक का क़त्ल, सऊदी शाही परिवार के काम करने के तौर-तरीक़ों से बिल्कुल ही अलग था.



इस्तांबुल में सऊदी वाणिज्य दूतावास का दरवाज़ा


इसीलिए ख़ाशोज्जी की हत्या की ख़बर बड़ी तेज़ी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियां बटोरने लगी.
इस्तांबुल में ख़ाशोज्जी के साथ जो हुआ, इस पर शुरुआत में तो सऊदी अरब की सरकार की प्रतिक्रिया गोलमाल करने वाली थी. सऊदी अरब के अधिकारियों ने इस क़त्ल के साये तक से मोहम्मद बिन सलमान को दूर रखने की पुरज़ोर कोशिश की.
उन्होंने कहा कि ये कांड सऊदी सरकार के कहने पर नहीं किया गया. किसी ने ख़ुद ही ख़ाशोज्जी को मार डाला. लेकिन, सीआईए और दूसरी पश्चिमी ख़ुफ़िया एजेंसियों ने सऊदी अरब के इस्तांबुल स्थित वाणिज्य दूतावास की बातें सुनी थीं. इन्हें, तुर्की की एमआईटी ख़ुफ़िया एजेंसी ने छुप कर रिकॉर्ड किया था.
और जब अमरीकी सरकार ने ख़ाशोज्जी की हत्या में शामिल 17 संदिग्ध लोगों के ख़िलाफ़ प्रतिबंध लगाए, तो इस लिस्ट में पहला नाम सऊद-अल-क़हतानी का था. लेकिन, आज की तारीख़ तक प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को पक्के तौर पर इस हत्या से जोड़ने का एक भी 'सुराग' नहीं हाथ लगा है.
लेकिन, वॉल स्ट्रीट जर्नल के हाथ लगे सीआईए के एक दस्तावेज़ के मुताबिक़, प्रिंस एमबीएस ने अल-क़हतानी को ख़ाशोज्जी के क़त्ल से पहले, उस दौरान और उसके बाद कम से कम 11 मैसेज भेजे थे.


ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हुए

मैं लंबे समय तक खाड़ी के अरब देशों में रहा हूं. अपने तजुर्बे के आधार पर मैं बड़े ऐतबार से कह सकता हूं कि अरब देशों में ऐसे अभियान कभी भी ख़ुदमुख़्तारी से नहीं होते. किसी की ऐसी हिम्मत नहीं है कि वो बिना आदेश के ऐसे मिशन को अंजाम दे. ऐसे फ़रमान हमेशा 'ऊपर' से आते हैं.
अगस्त 2018 में, ख़ाशोज्जी की हत्या से पहले, सऊद अल-क़हतानी ने इशारों में एक बड़ा राज़दार ट्वीट किया था. जिस में क़हतानी ने लिखा था, "आप ये सोचते हैं कि मैं बिना निर्देश के फ़ैसले लेता हूं? मैं एक मुलाज़िम हूं. मेरा काम बादशाह और शहज़ादे के हुक्म बजाना है."
किसी ने अब तक ये नहीं कहा है कि ख़ाशोज्जी के क़त्ल में सऊदी अरब के बादशाह सलमान का कोई हाथ है या कोई रोल है. लेकिन, ये साफ़ है कि इस हत्या की साज़िश किंग सलमान के दुलारे शहज़ादे के क़रीबी लोगों ने ही रची थी.
एक पूर्व ब्रिटिश ख़ुफ़िया अधिकारी का कहना था, "ये नामुमकिन है कि शहज़ादे सलमान को इस हत्या की साज़िश की ख़बर ही न हो."

"ख़ाशोज्जी की हत्या हमारे मुल्क, हमारी सरकार और हमारी अवाम पर एक बदनुमा दाग़ है."


प्रिंस ख़ालिद बिन बांदर अल-सऊद, लंदन में सऊदी अरब के राजदूत

जब ऐसा है, तो सवाल ये है कि आख़िर सऊद अल-क़हतानी हैं कहां, और उन पर इस क़त्ल का मुक़दमा क्यों नहीं चलाया जा रहा है?
मैंने ये सवाल हाल ही में लंदन में सऊदी अरब के राजदूत नियुक्त किए गए, प्रिंस ख़ालिद बिन बांदर अल-सऊद से पूछा. राजदूत प्रिंस ख़ालिद ने मुझे भरोसा दिया कि अल-क़हतानी को उनके पद से बर्ख़ास्त कर दिया गया है और अब उनके ख़िलाफ़ जांच हो रही है. अगर जांच में ये बात सामने आती है कि ख़ाशोज्जी की हत्या में अल-क़हतानी का हाथ था, तो यक़ीनन उन पर केस चलेगा.
लेकिन, रियाद से आने वाली ख़बरों के मुताबिक़, अभी अल-क़हतानी ने भले ही अपनी गतिविधियां सीमित कर दी हों, मगर उन्हें हिरासत में नहीं लिया गया है.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के क़रीबी लोगों के बारे में जानकारी रखने वाले सऊदी अरब के एक व्यक्ति ने बताया, "अल-क़हतानी अभी शाही दरबार की बैठकों में नहीं आ रहे हैं. लेकिन, वो साइबर सुरक्षा और ऐसे ही दूसरे मसलों पर काम कर रहे हैं. वो भले ही कम दिख रहे हों, मगर, सऊदी सरकार उनके तजुर्बों का पूरा फ़ायदा उठा रही है."
इस जानकार का कहना था, "शहज़ादे सलमान के क़रीबी लोगों की नज़र में अल-क़हतानी ने प्रिंस की पूरी टीम के लिए अकेले क़ुर्बानी दी है. भले ही इस्तांबुल में हुआ ऑपरेशन नाकाम हो गया हो, मगर, क़हतानी ने शहज़ादे का हुक्म तामील किया."
सऊदी अरब की सरकार ख़ाशोज्जी के क़त्ल के सिलसिले में 11 लोगों पर मुक़दमा चला रही है. इसकी शुरुआत हत्या के 9 महीनों बाद यानी इस साल जनवरी में हुई थी. इस मुक़दमे के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है कि किसी को मुज़रिम ठहराया गया हो, सज़ा दी गई हो. न ही ये पता है कि ये मुक़दमा कब ख़त्म होगा.
सऊदी अरब की न्यायिक व्यवस्था बिलकुल भी पारदर्शी नहीं है. ऐसे में अक्सर फ़ैसले किसी दंड संहिता या पीनल कोड के हिसाब से नहीं जज की मर्ज़ी पर निर्भर करते हैं.
इस मामले के एक वरिष्ठ आरोपी मेजर जनरल अहमद अल-असीरी हैं. वो सऊदी अरब की ख़ुफ़िया एजेंसी के पूर्व उप-प्रमुख हैं. मेजर जनरल अहमद अल-असीरी, पहले यमन में सऊदी अरब के हवाई अभियान के प्रवक्ता रहे थे.


मेजर जनरल अहमद अल-असीरी

मेजर जनरल अल-असीरी ऐसे आदमी नहीं, जो ऐसी साज़िशों को बिना ऊपर से इजाज़त लिए ख़ुद से रच डालें.
अब, इस बापर्दा मुक़दमे का नतीजा कुछ भी हो, एक बात तो एकदम साफ़ है कि- ख़ाशोज्जी के क़त्ल ने प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान और सऊदी अरब की वैश्विक छवि पर बहुत बड़ा और दूरगामी असर वाला दाग़ लग गया है.
ब्रिटेन में सऊदी अरब के राजदूत प्रिंस ख़ालिद ने सितंबर में लंदन में एक मुलाक़ात के दौरान मुझ से कहा था, "मैं एक बात साफ़ कर दूं, ख़ाशोज्जी का क़त्ल हमारे मुल्क, हमारी हुकूमत और हमारी अवाम पर एक गहरा धब्बा था. काश! ये हादसा न पेश आया होता."
आम तौर पर सऊदी राज परिवार के लोग इतनी साफ़गोई से बात नही करते.

नरमपंथ की ओर सऊदी अरब?

24 जून, 2018 को आधी रात के बाद रियाद में कार चलाती एक महिला, सऊदी अरब में इसी तारीख़ से महिलाओं को ड्राइव करने की इजाजत मिली थी
मध्य दिसंबर की एक रात का वक़्त था. सऊदी अरब की राजधानी रियाद के उपनगरीय इलाक़े दिरिया में सऊदी युवाओं की विशाल भीड़ जमा थी. उनके हाथ में स्मार्टफ़ोन थे. वो संगीत की धुन पर दीवाने हुए जा रहे थे. इस भीड़ पर लेज़र की रोशनी की आवाजाही एक चकाचौंध पैदा कर रही थी.
फ्रेंच डीजे डेविड गुएटा मंच पर थे. उसी जगह पर सऊदी अरब की महिलाएं अपनी ताज़ा-ताज़ा मिली आज़ादी का आनंद ले रही थीं. वो अपनी शानदार स्पोर्ट्स कारों में आ रही थीं, ताकि रियाद की फॉर्मूला ई-रेस का लुत्फ़ ले सकें. रियाद में म्यूज़िक ग्रुप ब्लैक आईड पीज़ और एनरिक़ इग्लेसियास के कॉन्सर्ट भी हो रहे हैं.
ये नया सऊदी अरब है, जिसे ये रवानी आधुनिक मिज़ाज़ वाले शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान के फ़रमान से खुलापन हासिल हुआ है. अब रूढ़िवादी सऊदी अरब में ऐसे मनोरंजक कार्यक्रमों की आमद हो चुकी है. सांस्कृतिक मितव्ययिता अब फ़ैशन में नहीं है.
कोई भी शख़्स जो पिछले चालीस बरस में कभी भी सऊदी अरब गया हो, या वहां रहा हो, उसके लिए ये बदलाव बहुत असाधारण है.


जेद्दा में कार और बाइक रैली

सऊदी अरब में किसी पार्टी में महिलाओं और मर्दों का आपस में खुलकर मिलना, आज से कुछ वक़्त पहले तो सोच से भी परे की बात थी. यहां के कट्टरपंथी मुल्लाओं ने ऐसे मेल-मिलाप पर सख़्त पाबंदी लगा रखी थी.
और चूंकि सऊदी अरब का शाही ख़ानदान अपनी हुकूमत को वाजिब ठहराने के लिए इन कट्टरपंथी धार्मिक गुरुओं के ही भरोसे था, तो उन्हें ये मज़हबी पाबंदियां माननी पड़ती थीं.
जिस सऊदी अरब को मैं जानता था, वो हमेशा से ही एक नीरस और सादगी भरे सार्वजनिक जीवन वाला मुल्क था. जहां पर धार्मिक पुलिस यानी मुतावा ने शीशा नाम के बहुत लोकप्रिय कैफ़े को बंद कर दिया था.
फिर मुतावा ने तमाम दुकानों को फ़रमान जारी किया था कि वो संगीत न बजाएं क्योंकि इस्लामिक धार्मिक क़ानून यानी शरीयत के हिसाब से ये ग़ैर-इस्लामी है.
साल 2017 में सऊदी अरब का वली अहद बनने के बाद से बादशाह सलमान की शह पर प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, सऊदी अरब की नीरस मुल्क की छवि तोड़ने में जुटे हैं. आज सऊदी अरब में सिनेमा खुल रहे हैं. महिलाएं कार चला रही हैं. जनता के मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराए जा रहे हैं.
कभी इन सब पर सऊदी अरब में पाबंदी लगी थी. अब, जैसा कि प्रिंस सलमान ने कहा कि वो इस देश को नरमपंथी और दयालु देश बनाना चाहते हैं.


साल 2018 में सऊदी अरब ने सिनेमा से पाबंदी हटा ली थी

अक्टूबर 2017 में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने कहा, "पिछले तीस साल में जो कुछ हुआ, वो असली सऊदी अरब नहीं है. 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति के बाद बहुत से देश उसके मॉडल को अपने यहां लागू करना चाहते थे. उन में से एक देश सऊदी अरब भी था. हमें नहीं पता था कि इस बदले हुए हालात का सामना कैसे करें. और फिर ये समस्या पूरी दुनिया में फैल गई. अब इससे छुटाकारा पाने का वक़्त आ गया है."
हक़ीक़त ये है कि सऊदी अरब जो एक क़बायली और कट्टरपंथी मुल्क है, वहां कभी भी इस तरह के आनंद जनता के लिए उपलब्ध नहीं थे, जो काहिरा या बग़दाद जैसे शहरों में मौजूद थे. फिर भी मोहम्मद बिन सलमान के शब्द ठीक वही थे, जो अमरीका सुनना चाहता था.
तब तक नए वली अहद और अमरीकी सरकार के बीच ताल्लुक़ात क़रीबी हो चले थे. राष्ट्रपति बनने के बाद डोनाल्ड ट्रंप ने मई 2017 में पहली विदेश यात्रा के लिए सऊदी अरब को चुना था. ट्रंप के दामाद जेरार्ड कुशनर ने मोहम्मद बिन सलमान के साथ अच्छे कारोबारी ताल्लुक़ात बना लिए थे.


मार्च, 2018ः व्हॉइट हाउस में मोहम्मद बिन सलमान और राष्ट्रपति ट्रंप

'नरमपंथी इस्लाम' का रास्ता अपनाते हुए प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने देश में सार्वजनिक कॉन्सर्ट और यहां तक कि कॉप्टिक ईसाईयों को भी धार्मिक आयोजनों की इजाज़त देनी शुरू कर दी. घरेलू मोर्चे की बात करें, तो सऊदी अरब के युवाओं के बीच मोहम्मद बिन सलमान की लोकप्रियता तेज़ी से बढ़ी है.
क्योंकि ये युवा बुज़ुर्गों के शासन से उकता गए हैं. वहीं प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान केवल 34 बरस के हैं. तो, सऊदी शाही परिवार के वो वाहिद ऐसे शख़्स हैं, जिनसे आज की सऊदी युवा पीढ़ी जुड़ाव महसूस करती है.
नाम न बताने की शर्त पर खाड़ी देशों के एक कारोबारी कहते हैं, "प्रिंस सलमान को फास्ट फूड पसंद है. वो हॉट डॉग खाते हैं और ख़ूब डाइट कोक पीते हैं. वो 'कॉल ऑफ़ ड्यूटी' जैसे वीडियो गेम खेलते हुए बड़े हुए हैं. उन्हें नई-नई तकनीक का इस्तेमाल पसंद है."
रियाद में नवंबर 2018 में हुई एक निवेश बैठक में युवा सऊदी महिलाओं को प्रिंस सलमान के साथ सेल्फ़ी लेते देखा गया था. और शहज़ादे ने भी इन महिलाओं को ख़ुशी-ख़ुशी ये इजाज़त दे दी थी. उस वक़्त प्रिंस सलमान के सख़्त और न पढ़े जा सकने वाले चेहरे पर मुस्कान बिखर गई थी.
अंतरराष्ट्रीय वक़ील मलेक दाहलान कहते हैं, "वो ऐसे नेता हैं जिनका सऊदी अरब के लोगों को अर्से से इंतज़ार था. सऊदी अरब के लोगों ने उनके दादा किंग अब्दुल्लाज़ीज़ के बाद से कोई करिश्माई नेता नहीं देखा है."
साल 2006 से 2010 के बीच सऊदी अरब में ब्रिटेन के राजदूत रहे सर विलियम पेटे कहते हैं, "मेरा ख़याल है कि सऊदी अरब से ज़्यादातर लोग, ख़ास तौर से युवा, शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान का समर्थन करते हैं. उन्हें यक़ीन है कि प्रिंस सलमान देश को सही दिशा में ले जा रहे हैं."
प्रिंस सलमान के हाथों में सत्ता केंद्रित होने के आरोप पर सर विलियम पेटे कहते हैं, "सऊदी अरब के लोगों ने आम तौर पर अधिकारों का विकेंद्रीकरण देखा है. लेकिन, उन्हें इस बात का एहसास है कि बड़े बदलाव के लिए फ़ैसले लेने की प्रक्रिया ज़्यादा स्पष्ट होनी चाहिए."
एक और ब्रिटिश राजनयिक जो प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से कई बार मिल चुके हैं, वो नाम न बताने की शर्त पर कहते हैं, "शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान एक अलग तरह के आत्मविश्वास से लबरेज़ हैं. उनके ज़हन में नए विचारों का ख़ज़ाना है. उनमें ज़बरदस्त ऊर्जा है. हो सकता है कि वो अति-आत्मविश्वास के शिकार हों और उनके अंदर बचपना भी हो."
मगर उनके अंदर एक और डरावनी प्रवृत्ति के संकेत मिलते हैं.

विरोध से निपटने का तरीक़ा

पैरिस में सऊदी अरब के दूतावास के बाहर मानवाधिकार कार्यकर्ता
सलमान सऊदी अरब में जिस क़िस्म का इंक़लाबी सामाजिक और आर्थिक सुधार कर रहे हैं, उस बारे में उनके अपने विचार ऐसे हैं कि 'मेरी मर्ज़ी', सीधे शब्दों में कहें तो प्रिंस सलमान को विरोध क़तई बर्दाश्त नहीं है.
सऊदी अरब के बेहद सख़्त क़ानूनों की मदद से सऊदी अरब में प्रिंस सलमान के तमाम विरोधियों को गिरफ़्तार कर लिया जाता है. फिर चाहे वो तरक़्क़ीपसंद जमात से हों, या फिर कट्टरपंथियों के कुनबे से ताल्लुक़ रखते हों. सऊदी अरब में क़ानून हर तरह के विरोध और परिचर्चा का दम घोंटने की ताक़त रखते हैं.
मानवाधिकार संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच ने अपनी सालाना रिपोर्ट में बताया था, "सऊदी अधिकारियों ने 2018 में इकतरफ़ा गिरफ़्तारियों, मुक़दमों और सज़ा देने की रफ़्तार और तेज़ कर दी थी, ताकि वो शांतिपूर्ण तरीक़े से विरोध करने वालों को ख़ामोश कर सकें. सऊदी सरकार ने महिला अधिकारों के लिए चलाए जा रहे आंदोलन के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर लोगों की आवाज़ कुचल दी थी."


Two women in full headdress, in Jeddah

कुछ लोग ये भी कहते हैं क इल्ज़ाम लगाने से पहले ज़रा ये तो देखिए कि ये वही शख़्स है, जिसने सऊदी अरब की महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार दिया. बात तो सही है, लेकिन, जानकार कहते हैं कि प्रिंस सलमान चाहते हैं कि सऊदी अरब में बदलाव, ऊपर से, यानी शाही दरबार से ही आए.
कोई क़ानून बदलने का प्रस्ताव या सुझाव किसी विरोध-प्रदर्शन या जन आंदोलन से आने को सऊदी अरब की हुकूमत एक ख़तरनाक संकेत मानती है. क्योंकि सऊदी अरब में कोई सियासी दल या विपक्ष नाम की कोई चीज़ नहीं है. लुजैन अल-हथलोल की ही मिसाल लीजिए. वो तालीमयाफ़्ता हैं.
अक़्लमंद हैं और सोशल मीडिया पर ख़ूब सक्रिय हैं. लेकिन, पिछली जुलाई को उन्होंने अपनी तीसवीं सालगिरह जेद्दा के क़ैदख़ाने में मनाई. लुजैन का परिवार कहता है कि उनका इकलौता जुर्म ये था कि उन्होंने सऊदी महिलाओं को ड्राइविंग का अधिकार देने की मांग उठाई थी.
और वो सऊदी अरब में महिलाओं पर मर्दों के अधिकारों में कटौती चाहती थीं. क्योंकि अभिभावक के नाम पर मर्दों ने एक तरह से महिलाओं, फिर चाहे उनकी बीवियां हों या रिश्तदार, सब की ज़िंदगी अपनी मुट्ठी में बंद कर रखी है.


लुजैन अल-हथलोल

अब दोनों ही क़ानूनों में बदलाव किए जा चुके हैं. अब सऊदी अरब में महिलाओं को गाड़ी चलाने की आज़ादी हासिल है. और महिलाओं की निगरानी का मर्दों को मिला अधिकार भी सीमित किया गया है.
लेकिन, लुजैन और उनके जैसी दूसरी महिलाओं ने शायद सऊदी शाही परिवार और नेतृत्व को बहुत ख़फ़ा कर दिया है. इसकी वजह ये है कि उन्होंने उन सुधारों की मांग की, जिन्हें लागू करने का श्रेय प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान लेना पसंद करते.
आप सऊदी निज़ाम में बदलाव की रफ़्तार तेज़ करने का दबाव नहीं बना सकते हैं. लुजैन को सबसे पहले 2014 में संयुक्त अरब अमीरात से कार चलाते हुए सऊदी अरब में घुसते वक़्त गिरफ़्तार किया गया था.
मार्च 2018 में जब वो क़ानूनी रूप से वैध तरीक़े से संयुक्त अरब अमीरात में कार चला रही थीं, तो अचानक लुजैन को कुछ काली गाड़ियों ने घेर लिया था. फिर उन्हें गिरफ़्तार कर के रियाद भेज दिया गयया था. रियाद में उन्हें कुछ वक़्त के लिए हिरासत में रखा गया था.
मई 2018 में उन्हें उस वक़्त दोबारा गिरफ़्तार कर लिया गया था, जब विरोध को दबाने का व्यापक अभियान चलाया जा रहा था. लुजैन और दूसरी महिला अधिकार कार्यकर्ताओं का दावा है कि उन्हें टॉर्चर भी किया गया और जेल में अलग-थलग क़ैद कर के भी रखा गया था.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की लिन मालूफ़ कहती हैं, "पहले तीन महीनों में, तफ़्तीश के दौरान उनको टॉर्चर किया गया. उन्हें बिजली के झटके दिए गए और कोड़े मारे गए. यहां तक कि उनका यौन शोषण भी किया गया था."


सऊदी अरब में महिला कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिए जाने के मुद्दे पर फ्रांस में विरोध प्रदर्शन

सऊदी अधिकारियों ने इन आरोपों से इनकार किया है. उनका कहना है कि सऊदी अरब की जेल या पुलिस हिरासत में किसी का टॉर्चर नहीं होता. हालांकि वो इन आरोपों की जांच कराएंगे. लेकिन, हुआ इसके उलट. जिन पर आरोप थे, उनके बजाय जिन महिलाओं ने आरोप लगाए थे, उन्हीं पर चार्जशीट लगा दी गई.
लुजैन के भाई वालिद अल-हथलोल, देश से बाहर रहते हैं. वो कहते हैं कि जांच अधिकारियों ने टॉर्चर के आरोपों की कभी जांच नहीं की.
वालिद का कहना है, "हमने तीन बार शिकायतें कीं. मगर उनका कोई जवाब नहीं आया. जांच अधिकारी ने सऊदी मानवाधिकार आयोग के दावे पर अपनी जांच पूरी कर ली. उन्होंने अपनी कोई स्वतंत्र जांच की ही नहीं."
वालिद अल-हथलोल अब सऊद अल-क़हतानी के ख़िलाफ़ जांच की मांग कर रहे हैं. क्योंकि लुजैन का कहना है कि ख़ुद अल-क़हतानी ने हिरासत के दौरान उनका शोषण किया था.
अपने 60 मिनट के इंटरव्यू के दौरान जब मोहम्मद बिन सलमान से महिलाओं से बदसलूकी पर सवाल किए गए, तो उन्होंने ख़ुद इसकी जांच कराने का वादा किया था. 30 से ज़्यादा देशों ने सऊदी अरब से कहा है कि वो इन महिला कार्यकर्ताओं को रिहा कर दे. इन में से कुछ को बाद में ज़मानत पर रिहा कर दिया गया था.
अमरीकी और ब्रिटिश सरकार का कहना है कि उन्होंने इस बारे में सऊदी अरब के आला अधिकारियों से चर्चा की है. फिर भी, इस साल अगस्त में, लुजैन के परिवार ने दावा किया कि सुरक्षा अधिकारी, उनकी बेटी से जेल में मिले थे.
उन्होंने लुजैन पर इस बात का दबाव बनाया गया कि वो अपने टॉर्चर के परिवार के दावों से इनकार करने वाले बयान पर दस्तख़त कर दें. हालांकि लुजैन ने इस दबाव के आगे झुकने से इनकार कर दिया. फिलहाल जो महिलाएं हिरासत में हैं उनमें समर बदावी भी हैं.
जिन्होंने महिलाओं की हिफ़ाज़त के क़ानून को चुनौती दी थी. साथ ही ब्लॉगर और महिलाओं को गाड़ी चलाने का अधिकार देने की मांग करने वाली इमान अल-नफजान भी हैं. और रिटायर्ड यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर अज़ीज़ा अल-यूसुफ़ भी शामिल हैं, जिन्होंने घरेलू शोषण की शिकार महिलाओं की मदद की थी.


अज़ीज़ा अल-यूसुफ़

सऊदी सरकार ने कई ऐसे पुरुषों को भी गिरफ़्तार कर के रखा हुआ है, जो ज़्यादा अधिकारों की मांग कर रहे थे. इन में से कई लोगों को तो सज़ा भी दी गई.
सितंबर, 2018 में सऊदी जांच अधिकारियों ने ऐलान किया कि अगर कोई भी इंसान ऐसी सोशल मीडिया पोस्ट लिखेगा या शेयर करेगा, जो क़ानून और व्यवस्था या नैतिकता को बिगाड़ती हों, तो उसे पांच साल क़ैद और 30 लाख रियाल का जुर्माना भुगतना होगा.
प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, विरोध को दबाने के अपने तौर-तरीक़ों को लेकर क़तई शर्मिंदा नहीं हैं. तमाम इंटरव्यू में उन्होंने माना है कि बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ़्तार कर के रखा गया है.
लेकिन, शहज़ादे का कहना है कि जब आप इतने बड़े पैमाने पर सुधार अभियान चला रहे हों, तो आप को इसकी कुछ न कुछ क़ीमत तो चुकानी पड़ती है. फिर, आख़िर जिस शख़्स को आज से छह साल पहले दुनिया जानती तक नहीं थी, वो आज मध्य-पूर्व का सबसे ताक़तवर शासक कैसे बन गया?

धरतीपुत्र शहज़ादा

शहज़ादे सलमान सऊदी शाही परिवार के बाक़ी क़रीब पांच हज़ार राजकुमारों की तरह ही पले-बढ़े. 31 अगस्त, 1985 को पैदा हुए इस राजकुमार की परवरिश भी उसी तरह हुई, जैसे सऊदी अरब के शाही ख़ानदान की होती है. समाज से अलहदा, रईसाना मगर बंद माहौल और ऐश-ओ-आराम के हर सामान की मौजूदगी में.
वो अपने पिता की 13 संतानों में से एक थे. उनका बचपन रियाद के मधेर इलाक़े में स्थित राजमहल की चारदीवारों की क़ैद में गुज़रा. भले ही वो महल के भीतर ही रहते थे. लेकिन, नौकर-चाकर, ख़ानसामों, शोफ़र और विदेश से बुलाए गए दूसरे कर्मचारियों की लंबी-चौड़ी फ़ौज थी, जो उनका हुक्म बजा लाने को हमेशा तैयार रहती थी.
1990 के दशक के मध्य में उन्हें तालीम देने वाले लोगों में एक थे राशिद सेक्कई. राशिद अब बीबीसी के लिए काम करते हैं. राशिद बताते हैं कि रोज़ाना एक शानदार कार उन्हें घर से शहज़ादे को पढ़ाने के लिए राजमहल ले जाने आती थी.



उन्होंने बीबीसी अरबी को बताया था, "भारी सुरक्षा इंतज़ाम वाले राजमहल के भीतर घुसते ही क़तार से बने हुए शानदार विला नजर आते थे. जहां के करीने से कतरे हुए बाग़ बड़े दिलकश होते थे. इन बाग़ीचों में सफ़ेद पोशाक वाले माली हर वक़्त तैनात होते थे. राजमहल की कार पार्किंग में एक से एक शानदार कारें खड़ी रहती थीं."
कुछ लोगों का दावा है कि मोहम्मद बिन सलमान एक मेहनती और पढ़ाकू शागिर्द थे, जो हमेशा पढ़ाई के सबक़ नोट करने में दिलचस्पी लेते थे. लेकिन, राशिद सेक्कई का कहना है कि प्रिंस सलमान उनके पढ़ाए सबक़ याद करने से ज़्यादा सुरक्षा कर्मियों के साथ खेलने में दिलचस्पी रखते थे.
जब सऊदी शाही परिवार के बाक़ी शहज़ादों की तरह मोहम्मद बिन सलमान को उनके पिता ने अमरीका या ब्रिटेन या फिर किसी और पश्चिमी देश में पढ़ने के लिए जाने का प्रस्ताव दिया, तो प्रिंस सलमान ने इससे इनकार कर दिया. इसके बजाय प्रिंस सलमान ने किंग सऊद यूनिवर्सिटी से क़ानून की डिग्री ली.
सऊदी अरब के जानकार कहते हैं कि उनका ये असामान्य फ़ैसला था, जो प्रिंस के काम भी आया और उनके लिए बाधा भी बना. सऊदी अरब के नागरिकों में देशभक्ति की भावना ज़बरदस्त है. ऐसे मुल्क का राजकुमार अगर अपनी पढ़ाई अपने ही देश में पूरी करे, तो ज़ाहिर है उसे धरती-पुत्र कहकर जनता तो सम्मान ही करेगी.
सऊदी अरब के लोग उन्हें अपने बीच का शहज़ादा मानते हैं. लेकिन, विदेश में पढ़ाई न करने का नुक़सान ये हुआ कि बरसों तक शहज़ादे सलमान को अंग्रेज़ी ही नहीं समझ में आती थी. इस वजह से उन्हें पश्चिमी देशों की मानसिकता को समझने में वक़्त लगा.
जबकि उनके साथी शहज़ादे विदेश में पढ़ने की वजह से पश्चिमी सोच को अच्छे से जान जाते थे. सऊदी अरब ऐसा देश है, जहां मर्द अक्सर चार बीवियां रखते हैं. लेकिन, प्रिंस सलमान ने केवल एक शादी की है.
साल 2009 में उनका निकाह अपनी कज़िन राजकुमारी सारा बिंत मशूर बिन अब्दुल्लाज़ीज़ अल-सऊद से हुआ, जो कि सऊदी अरब में एक आम बात है. दोनों के दो बेटे और दो बेटियां हैं.
जब भी परिवार की बात आती है, तो प्रिंस सलमान इससे जुड़ी कोई भी बात सार्वजनिक रूप से नहीं करते. फिर ये कैसे हुआ कि सऊदी अरब के विशाल ख़ानदान के हज़ारों राजकुमारों में से एक, अनजाना सा लॉ ग्रैजुएट शहज़ादा आज के सऊदी अरब का सबसे ताक़तवर शख़्स और युवराज बन गया.
इस सवाल का जवाब, शाही परिवार की राजनीतिक चालें, पिता से मिलने वाला समर्थन और किरदार की मज़बूती है.


मोहम्मद बिन सलमान का निजी यॉट सेरेन जो उन्होंने 500 मिलियन यूरो में खरीदा था

जब प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान 23 बरस के थे और ताज़ा-ताज़ा ग्रैजुएशन में टॉप किया था, तभी से उनके पिता ने उन्हें सीनियर रोल के लिए तैयार करना शुरू कर दिया था.
प्रिंस सलमान के पिता उस वक़्त रियाद के गवर्नर थे. तब शहज़ादा सलमान ने राज-काज के हर काम में पिता के साथ साये की तरह लगे रहना शुरू कर दिया था.
वो देखते थे कि किस तरह उनके अब्बा विवाद सुलझाते थे और समझौते करते थे. इस तरह उन्होंने सऊदी अरब के निज़ाम का हर फ़न सीखा.
साल 2013 में केवल 27 बरस की उम्र में मोहम्मद बिन सलमान को अपने युवराज पिता के दरबार का वज़ीर-ए-आला मुक़र्रर किया गया. ये उनके लिए सत्ता और प्रभाव का रास्ता खुलने जैसा था.
अगले बरस उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया गया. 2015 में उनका करियर नई ऊंचाई पर पहुंच गया.
अब्दुल अज़ीज़ से लेकर क्राउन प्रिंस सलमान तक, सऊदी अरब का शाही खानदान
जनवरी 2015 में सऊदी अरब के बादशाह अब्दुल्ला का निधन हो गया. तो, उनके सौतेले भाई सलमान बादशाह बने. वो सऊदी शाही ख़ानदान की सुदैरी शाखा से ताल्लुक़ रखते हैं. नए बादशाह, जिनकी उम्र उस वक़्त 80 बरस थी, अब अपनी पसंद के शख़्स को आगे बढ़ाने के लिए आज़ाद थे.
किंग सलमान ने अपने सबसे दुलारे शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान को रक्षा मंत्री नियुक्त किया और शाही दरबार का वज़ीर-ए-आला भी मुक़र्रर कर दिया. उस वक़्त सऊदी अरब की दक्षिणी सीमा पर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया था.
पड़ोसी देश यमन की उत्तरी पहाड़ियों में रहने वाले हूती क़बायलियों ने राजधानी सना पर हमला बोल दिया. हूती विद्रोहियों ने चुने हुए राष्ट्रपति का तख़्ता पलट दिया. अब हूती विद्रोहियों के क़ब्ज़े में यमन का ज़्यादा आबादी वाला पूरा का पूरा पश्चिमी हिस्सा आ गया था.



हूती क़बायलियों का धार्मिक और वैचारिक जुड़ाव, सऊदी अरब के कट्टर दुश्मन ईरान से था. अब अपनी सीमा से लगे देश में ईरान समर्थित लड़ाकों के सत्ता पर क़ाबिज़ होने से सऊदी अरब बौखला गया था.
मार्च 2015 में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने अपने साथी राजकुमारों से मशविरा किए बग़ैर, 10 देशों का एक गठबंधन बनाया और यमन में हूती लड़ाकों पर हवाई हमला बोल दिया.
इस मिशन का आधिकारिक लक्ष्य तो, देश के चुने हुए और संयुक्त राष्ट्र से मान्यता प्राप्त शासक की सरकार को दोबारा बहाल करना था. लेकिन, यमन पर हवाई हमले का असल मक़सद ईरान को ये कड़ा संदेश देना था कि-सऊदी अरब अपने दक्षिणी पड़ोसी के यहां ईरान समर्थित बाग़ियों को सत्ता पर नहीं क़ाबिज़ होने देगा.
योजना बनाने वालों का आकलन था कि ये हवाई हमला यमन के हूती विद्रोहियों को जल्द ही घुटने टेकने पर मजबूर कर देगा. क्योंकि बाग़ियों की कोई स्थायी सेना तो थी नहीं. वो तो जैसे-तैसे जुटाए गए सोवियत संघ के ज़माने के हथियारों से जंग लड़ रहे थे.
मगर, सऊदी अरब का ये हवाई मिशन एक ऐसा दलदल साबित हुआ, जिस में फंस कर सऊदी अरब का ख़ून अब तक रिस रहा है. और यमन में तबाही का सबब बना हुआ है.


यमन की सरहद पर सऊदी अरब का एक सैनिक

यमन में सऊदी अरब की अगुवाई वाले सैन्य गठबंधन को ज़मीनी स्तर पर मामूली क़ामयाबी भी मयस्सर नहीं हो सकी है. लगातार बमबारी से यमन तबाह हो चुका है. हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं.
कुपोषण, हैजा और दूसरी बीमारियों की बाढ़ सी आई हुई है. एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ यमन की कुल क़रीब तीन करोड़ आबादी में से एक तिहाई लोगों को मदद की सख़्त दरकार है.
लेकिन, घरेलू मोर्चे पर जंग शुरू होते ही मोहम्मद बिन सलमान की लोकप्रियता में ज़बरदस्त इज़ाफ़ा हुआ. उनके पास कोई जंगी तजुर्बा नहीं है. लेकिन, सऊदी अरब के टीवी चैनल उन्हें जंगजू शहज़ादे के तौर पर पेश करते हैं, जिसने अपने मुल्क के हित में जंग छेड़ी.
शुरुआत में पश्चिमी देशों ने यमन में सऊदी अरब के अभियान का समर्थन किया था. अमरीका ने सऊदी अरब को न सिर्फ़ हथियारों की शक्ल में मदद दी. बल्कि ख़ुफ़िया जानकारियां भी मुहैया कराईं. ब्रिटेन ने तकनीकी और दूसरे सैन्य सहयोग और सलाह से मदद की.
ब्रिटेन की कंपनी बीएई से मिले हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी सऊदी सेनाओं को दी गई. ब्रिटेन की वायुसेना के दो स्क्वॉड्रन लीडर सऊदी अरब में तैनात किए गए ताकि वो सऊदी गठबंधन के हवाई हमलों की निगरानी करें और उनकी मदद करें.
वैसे, ब्रिटिश रक्षा मंत्रालय का कहना है कि उनके अधिकारियों ने टार्गेट चुनने का काम नहीं किया. लेकिन सऊदी अरब की शाही वायुसेना का निशाना बार-बार चूकता रहा.
यमन में अस्पतालों, जनाज़ों, रिहाइशी इलाक़ों और यहां तक कि स्कूल बसों तक को भी सऊदी हवाई हमलों में निशाना बनाया गया है. ये, वाजिब सैन्य निशानों के अलावा हैं, जिन पर सऊदी वायु सेना ने बम बरसाए.
संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि यमन में मारे गए ज़्यादातर आम नागरिक सऊदी अरब की हवाई बमबारी के शिकार हुए हैं. सऊदी अरब पर आरोप लगा है कि उन्होंने रिहाइशी बस्तियों में भी क्लस्टर बम का इस्तेमाल किया. वैसे हूती बाग़ियों पर भी युद्ध अपराधों के इल्ज़ाम लगे हैं.
आरोप है कि बाग़ियों ने अंधाधुंध बारूदी सुरंगें बिछाई हैं. बच्चों को सैनिक बनाया है. घरों को निशाना बनाया है और लोगो तक मदद पहुंचाने से रोका है.
सऊदी अरब के मुताबिक़, सितंबर 2019 तक, यमन के हूती बाग़ियों ने सीमा पार 260 मिसाइल हमले किए और 50 से ज़्यादा विस्फोटक ड्रोन से हमले किए. फिर भी हूतियों के ये हमले सऊदी अरब की अगुवाई वाले गठबंधन के हवाई हमलों के आगे बौने नज़र आते हैं.
एमनेस्टी इंटरनेशनल जैसे मानवाधिकार संगठनों की अगुवाई में पश्चिमी देशों के कई संगठन, यमन में हो रहे ख़ून-ख़राबे का विरोध कर रहे हैं.
केवल पांच बरस के भीतर, यमन दुनिया में मानवीय संकट का सबसे बड़ा केंद्र बन गया है.

 सत्ता और सोच

रियाद का रिट्ज़ कार्लटन होटल
मक्का के शाही राजमहल के बंद फाटकों के भीतर 20 जून 2017 को कुछ ऐसा हुआ, जिसने हमेशा के लिए सऊदी अरब का इतिहास बदल दिया. उस वक़्त के युवराज मोहम्मद बिन नएफ़ को बादशाह सलमान ने तलब किया और हुक्म दिया कि वो वली अहद का ओहदा अपने से बहुत छोटे शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान के लिए छोड़ दें.
बरसों से तजुर्बेकार प्रिंस मोहम्मद बिन नएफ़ के हाथ में देश की कमान थी. 2000 के दशक में वो आतंकवाद निरोधक अभियान के अगुवा और फिर देश के गृह मंत्री के तौर पर, अल क़ायदा के घातक ख़तरे से निपटने में क़ामयाबी हासिल की थी. अमरीकी भी उन्हें पसंद करते थे और भरोसा करते थे.
हालांकि प्रिंस नएफ़ में कमाल वाली कोई बात नहीं थी, फिर भी माना यही जाता था कि वो सऊदी अरब के अगले बादशाह होंगे. लेकिन, सऊदी अरब में इस बात की चर्चाएं आम थीं कि 2009 में हुए एक जानलेवा हमले से वो कभी भी पूरी तरह नहीं उबर पाए थे.
तब अल-क़ायदा का एक आत्मघाती हमलावर उस कमरे तक पहुंच गया था, जहां प्रिंस नएफ़ ठहरे हुए थे. बादशाह सलमान ने अब फ़ैसला कर लिया था कि उनके दुलारे शहज़ादे प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ही देश के अगले बादशाह होंगे.
सऊदी अरब में किंग की सत्ता सर्वोपरि होती है. उस के फ़ैसलों पर कोई चर्चा नहीं होती. कोई विरोध नहीं होता. युवराज पद से हटाए जाने के बाद से प्रिंस मोहम्मद बिन नएफ़ का कोई अता-पता नहीं है. वो सार्वजनिक जीवन से बिल्कुल ही ग़ायब हो चुके हैं.


प्रिंस मोहम्मद बिन नएफ़ सार्वजनिक जीवन से बिल्कुल ही ग़ायब हो चुके हैं

सऊदी अरब के बादशाह सलमान और उनके क़रीबी शहज़ादे ने मिलकर बिना किसी ख़ूनख़राबे के शाही तख़्तापलट कर दिया था. प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बेहद महत्वाकांक्षी हैं और देश में बदलाव लाने का उनका इरादा बहुत मज़बूत है.
युवराज बनने के बाद उन्होंने सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत करनी शुरू कर दी. शनिवार 4 सितंबर 2017 को देर शाम आदेश जारी हुआ और देश के अहम राजकुमारों, कारोबारी नेताओं और दूसरे लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया.
उन पर कोई इल्ज़ाम नहीं था. न ही उन्हें जेल की कोठरियों में रखा गया. बल्कि उन सब को रियाद के आलीशान रिट्ज़-कार्लटन होटल में ले जाकर ठहराया गया. जहां इन में से कई को तो महीनों तक रखा गया था. सऊदी सरकार ने इसे भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ अभियान बताया था.
होटल के इन नए मेहमानों को हुक्म दिया गया कि अगर वो अपनी आज़ादी चाहते हैं तो, अवैध तरीक़े से कमाए गए अरबों रियाल की संपत्ति हुकूमत के हवाले कर दें. लेकिन प्रिंस सलमान के आलोचक कहते हैं कि ये भ्रष्टाचार निरोधक अभियान तो एक बहाना था.
असल में तो ये हर उस शख़्स को ठिकाने लगाने का मिशन था, जो प्रिंस सलमान की सत्ता को चुनौती दे सकता था. इस अभियान के साथ ही प्रिंस सलमान ने सऊदी ख़ानदान की किंग अब्दुल्ला शाखा के राजकुमारों पर भी शिकंजा कस दिया.
उसके बाद से अब तक प्रिंस सलमान, देश की रक्षा और सुरक्षा बलों की तीनों अहम शाखाओं, नेशनल गार्ड, गृह मंत्रालय और सेना को अपने क़ब्ज़े में ले चुके हैं. अब सऊदी अरब की सत्ता पूरी तरह से प्रिंस सलमान के शिकंजे में है.
रिट्ज-कार्लटन की गिरफ़्तारियों से कारोबारी दुनिया को ज़बरदस्त झटका लगा था. वहीं विदेशी निवेशक भी इस क़दम से हैरान रह गए थे. अब ये अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि सऊदी अरब में किस के साथ कारोबार करना सुरक्षित होगा? हुकूमत का अगला निशाना कौन होगा?


जेद्दा का लाल सागर बंदरगाहः बहुत से सऊदी लोग ग़रीबी का जीवन जी रहे हैं

फिर भी सऊदी अरब में बहुत से लोगों ने इस अभियान का समर्थन किया था. सऊदी अरब भले ही दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश हो, लेकिन, अभी भी यहां बड़ी तादाद में लोग ग़रीबी में रहते हैं. ख़ास तौर से देश के दक्षिणी इलाक़े में.
अब तक जिन राजकुमारों और कारोबारियों तक पहुंचना भी नामुमकिन माना जाता था, उनके ख़िलाफ़ अभियान चलाकर प्रिंस सलमान ने अपने देश में समर्थकों और चाहने वालों की तादाद और भी बढ़ा ली थी. प्रिंस सलमान की लोकप्रियता की एक वजह और है.
उन्होंने सऊदी अरब की तेल आधारित अर्थव्यवस्था में बदलाव लाने की कोशिश की. निवेश जुटाया और इसकी मदद से लाखों बेरोज़गार सऊदी नागरिकों को रोज़गार मुहैया कराने में क़ामयाबी हासिल की. उनका विज़न 2030 बहुत महत्वाकांक्षी है.
इस में एक ऐसे भविष्य की कल्पना की गई है, जिस में सऊदी अरब, यूरोप, एशिया और अफ्रीका को जोड़ने वाला केंद्र बन जाएगा. और इस विज़न के मुताबिक़, सऊदी अरब के लिए ये लक्ष्य ज़्यादा दूर का नहीं है.
इस विज़न में 64 अरब अमरीकी डॉलर का फंड शामिल है, ताकि देश में मनोरंजन उद्योग विकसित कियया जा सके और पर्यटन सेक्टर में दस लाख नई नौकरियां पैदा हो सकें.


अप्रैल, 2016ः मोहम्मद बिन सलमान ने 2030 विज़न डॉक्युमेंट जारी किया

लेकिन, इस विज़न 2030 पर भी ख़ाशोज्जी के क़त्ल का काला साया मंडरा रहा है. कुछ विदेशी निवेशकों ने अपने निवेश कम कर लिए हैं या फिर उन्हें रद्द ही कर दिया है.
अब वो प्रिंस सलमान की योजनाओं का समर्थन नहीं कर रहे हैं. इन निवेशकों को ऐसे शख़्स से जुड़ने में परेशानी है, जिस पर एक क़त्ल में शामिल होने का अंतरराष्ट्रीय शक हो.
फिर भी, विज़न 2030 आगे बढ़ रहा है. इस में असाधारण और भविष्यद्रष्टा प्रोजेक्ट नियोम (NEOM) शामिल है, जिसका मतलब है नया मुस्तक़बिल या नया भविष्य.
सऊदी अरब के सुदूर उत्तरी-पूर्वी कोने में, जहां लाल सागर की लहरें मिस्र, जॉर्डन और इसराइल के तट से टकराती हैं, वहां 21वीं सदी का एक विशाल शहर बसाने की योजना पर काम चल रहा है.


The front page of the official NEOM website

वहां आज हवा से बिखर कर थोड़ी रेत पड़ी है और काली ज्वालामुखी वाली चट्टानें हैं. ये वही जगह है, जहां कभी टीई लॉरेंस और अरबों की सेना ने पहले विश्व युद्ध के दौरान तुर्की की सेना का सामना किया था.
वहीं पर 500 अरब अमरीकी डॉलर की मदद से 26 हज़ार वर्ग किलोमीटर में कई देशों के बीच फैले एक प्रोजेक्ट की योजना बनाई गई है.
इरादा है कि नियोम के तौर पर ऐसा शहर बनाया जाए, जहां ड्रोन की निगरानी हो, बिना ड्राइवर के कारें चलती हों, रोबोट वाले सहायक हों, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की भरमार हो, सौर ऊर्जा से बिजली की ज़रूरत पूरी हो, जहां सब कुछ इंटरनेट से चले और बायोटेक्नॉलॉजी पर आधारित जीवन हो.
आधिकारिक रूप से ये शहर 2025 तक तैयार हो जाना चाहिए. लेकिन, कुछ अर्थशास्त्रियों को इस पर आशंका है. इन में से एक का कहना है कि ये व्यवहारिक नहीं है. वो कहते हैं कि नियोम हमेशा ही एक फंतासी था. ये कल्पना और हक़ीक़त के फ़ासले की एक मिसाल है.
और इस फंतासी से हम समझ सकते हैं कि प्रिंस सलमान दुनिया को किस नज़र से देखते हैं. लेकिन, प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को इस पर इतना यक़ीन है कि एक रोज़ उनका नियोम शहर अमरीका के कैलिफ़ोर्निया स्थित टेक सिटी पालो आल्टो को भी पीछे छोड़ देगा.
अगर हम पहले से तय प्लानिंग के तहत शहर बसाने के अनुभव को देखें, तो सऊदी अरब का रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं है.
खाड़ी के एक और अर्थशास्त्री कहते हैं, "किंग अब्दुल्लाह इकोनॉमिक सिटी की ही मिसाल लीजिए. कहा गया था कि 2020 तक यहां 20 लाख लोग रह रहे होंगे. लेकिन, आज यहां की आबादी केवल 8 हजार है. यानी, अभी तो यही लगता है कि शायद प्रिंस सलमान, ये सपना पूरा कर के न दिखा सकें."


किंग अब्दुल्लाह इकोनॉमिक सिटी की प्रगति की स्थिति निराशाजनक है

पर अभी भी ऐसा लगता है कि नियोम को बनाया-बसाया जाएगा. हालांकि जो तय रफ़्तार है, उससे इसके बसने की रफ़्तार धीमी होगी. क्योंकि अब बहुत कुछ दांव पर लग चुका है.
लेकिन, बड़ा सवाल ये है कि ये शहर विदेशी निवेश जुटा सकेगा और घरेलू मोर्चे पर लोगों को नौकरियां दे सकेगा, ये सवालों के घेरे में है.

और आख़िर में...

2018 के सितंबर में ब्रिटेन के प्रमुख नेता बोरिस जॉनसन तीन दिन के लिए सऊदी अरब के दौरे पर आए, तब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री नहीं थे. इस यात्रा का पूरा क़रीब 14 हज़ार पाउंड का ख़र्च ब्रिटिश सरकार ने उठाया. इसकी जानकारी वहां की संसद को भी दी गई. जॉनसन का ये दौरा पत्रकार जमाल ख़ाशोज्जी के क़त्ल के दो हफ़्ते पहले हुए था.


2018ः मोहम्मद बिन सलमान ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश मंत्री बोरिस जॉनसन के साथ

बोरिस जॉनसन को एमबीएस की चालों के बारे में कितना पता था यह नहीं मालूम. इससे पहले विरोध-प्रदर्शन करने वालों की गिरफ़्तारी की ख़बरें सऊदी अरब से बाहर बहुत कम छपती थीं.
उस वक़्त पश्चिमी नेताओं के बीच प्रिंस सलमान की छवि ख़ूब चमक रही थी. लेकिन ख़ाशोज्जी की हत्या के बाद ऐसे किसी दौरे की कल्पना करना भी मुमकिन नहीं था.
उन पश्चिमी देशों में जहां अब तक प्रिंस सलमान को तरक़्क़ीपसंद और सुधारक शहज़ादे के तौर पर सम्मान की नज़रों से देखा जाता था, वहां अब उनसे किनारा कर लिया गया है.
नाम न बताने की शर्त पर खाड़ी देशों के एक जानकार कहते हैं, "ख़ाशोज्जी के क़त्ल से सऊदी अरब क़ातिल देशों की जमात में शामिल हो गया है. इस घटना ने प्रिंस सलमान को गद्दाफ़ी, सद्दाम और असद जैसे नेताओं की क़तार में खड़ा कर दिया है. ये वो दर्जा है, जिसका सऊदी अरब कभी हिस्सा नहीं रहा था."
वैसे, निजी तौर पर सऊदी अरब से पश्चिमी देशों का कारोबार बदस्तूर जारी है. सऊदी अरब की अर्थव्यवस्था इतनी विशाल है और यहां के ठेके इतने लुभावने हैं कि पश्चिमी देशों के कारोबारी इनकी अनदेखी नहीं कर सकते. आज अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सऊदी अरब के पक्के साथी हैं.
अमरीकी संसद, सऊदी अरब को लाखों डॉलर के हथियारों की फ़रोख़्त रोकने में नाकाम रही है क्योंकि राष्ट्रपति ट्रंप ने संसद के फ़ैसले को पलट दिया. इसकी वजह उन्होंने रणनीतिक भी बताई और सामरिक वजह भी करार दिया.
सऊदी अरब का विशाल बाज़ार और ईरान के विस्तारवादी रवैये के ख़िलाफ़ इसकी सामरिक अहमियत का मतलब ये है कि पश्चिमी देशों की सरकारें सऊदी अरब की आलोचना केवल ज़ुबानी तौर पर करती रहेंगी. फिर भी मानवाधिकारों को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना ने सऊदी अरब के निज़ाम को परेशान कर दिया है.
सऊदी बात बदलने की कोशिश कर रहे हैं. अमरीका में सऊदी अरब की नई दूत प्रिंसेस रीमा बिंत बांदर अल-सऊद देश की पहली महिला राजदूत हैं जो कारोबारी रही हैं, जिन्होंने अमरीका में कई साल बिताए हैं.
अमरीका में रीमा सऊदी कूटनीति का सार्वजनिक चेहरा होंगी जहां अमरीकी कांग्रेस के सदस्य और बाक़ी लोग दोनों देशों की साझेदारी पर सवाल खड़े कर रहे हैं.


अमरीका में सऊदी अरब की राजदूत राजकुमारी रीमा

आज सऊदी अरब की सरकार नए कारोबारी और सामरिक साझीदार तलाश रही है. रूस, चीन और पाकिस्तान से उसकी नज़दीकी बढ़ रही है. इन में से एक भी देश ने सऊदी अरब के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर परेशान करने वाले सवाल नहीं उठाए हैं.
पिछले 12 महीनों में कई ऐसे बयान और आरोप लगे हैं, जिनसे लगता है कि पश्चिमी देशों को अब भी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पर शक है कि उन्होंने ही जमाल ख़ाशोज्जी की हत्या का हुक्म दिया था. ये बयान अमरीकी ख़ुफ़िया अधिकारियों के अलावा संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत एग्ने कालामार्ड की तरफ़ से आए हैं.
एग्नेस इस बात पर अड़ी हुई हैं कि प्रिंस सलमान को इस क़त्ल के लिए ज़िम्मेदार माना जाना चाहिए. लेकिन अपने वतन में प्रिंस सलमान की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है. खाड़ी देश के एक जानकार कहते हैं, "आप 16 से 25 साल की उम्र के किसी भी शख़्स से बात कीजिए, और वो उन्हें अपना हीरो बताते हैं.
प्रिंस सलमान ने जो सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव किए हैं, वो उन्हें पसंद आ रहे हैं. क्योंकि इन क़दमों से प्रिंस सलमान ने मज़हबी कट्टरपंथियों की सऊदी समाज पर पकड़ कमज़ोर की है."
इस बात के संकेत न के बराबर हैं कि प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान की अगुवाई में सऊदी अरब लोकतांत्रिक निज़ाम की दिशा में ज़रा भी आगे बढ़ेगा. सार्वजनिक रूप से कोई आलोचना करना तो दूर, शाही परिवार और उसकी नीतियों पर सवाल उठाने पर भी जेल जाने का जोखिम होता है.
कई बरस से प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान को उनके पिता बादशाह सलमान का पूरा समर्थन हासिल है. आज उनकी सत्ता को कोई चुनौती कम से कम दिखाई तो नहीं देती. मोहम्मद बिन सलमान के अपने दरबार में सोचे ये है कि पश्चिमी देशों में ख़शोज्जी की हत्या से उठा तूफ़ान शांत हो चुका है.
और, जल्द ही इसके निशान भी ख़त्म हो जाएंगे. शायद वो सही हैं. कई मामलों में प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान सऊदी अरब हैं. वो लोकतांत्रिक नहीं हैं. वो सियासी सुधारक नहीं हैं.
कई लोगों के लिए वो बस एक तानाशाह हैं. लेकिन, इस में कोई दो राय नहीं कि प्रिंस सलमान आर्थिक और सामाजिक सुधारक हैं. और केवल 34 बरस की उम्र में उन्हें मालूम है कि जब बादशाह का निधन होगा तो तो वो मध्य पूर्व के सबसे बड़े देश के सुल्तान होंगे.
उनकी हुकूमत एक दशक के लिए नहीं बल्कि अगले कई दशकों के लिए होगी.