विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : बाबा-तांत्रिकों के सहारे 44 फीसदी पीड़ित ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : बाबा-तांत्रिकों के सहारे 44 फीसदी पीड़ित

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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस पूरे विश्व में मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से  प्रतिवर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस वर्ष विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस का विषय "मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा" हैं। इसके अनुसार मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा में सामाजिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों सहयोगों को शामिल किया गया है।
जैसे कि सामान्य स्वास्थ्य देखभाल कभी भी अकेले शारीरिक प्राथमिक उपचार के नहीं होती है, वैसे ही मानसिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली अकेले मनोवैज्ञानिक प्राथमिक उपचार के नहीं होती है। निस्संदेह, मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा के क्षेत्र में निवेश लंबी अवधि के प्रयास का हिस्सा है, जो कि यह सुनिश्चित करता है, कि संकट के कारण कोई भी गंभीर समस्या से पीड़ित व्यक्ति बुनियादी सहयोग प्राप्त करने में सक्षम होगा तथा जिन लोगों को मनोवैज्ञानिक प्राथमिक चिकित्सा से ज़्यादा सेवाओं की आवश्यकता होगी, उन्हें अतिरिक्त उन्नत सहयोग स्वास्थ्य, मानसिक स्वास्थ्य एवं सामाजिक सेवाओं से प्राप्त होगा।

मानसिक स्वास्थ्य विकार
मानसिक स्वास्थ्य विकार विश्व भर में होने वाली सामान्य बीमारियों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्तियों की अनुमानित संख्या 450 मिलियन हैं। भारत में लगभग 1.5 मिलियन व्यक्ति, जिनमें बच्चे एवं किशोर भी शामिल है, गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से प्रभावित हैं।
मानसिक बीमारी व्यक्ति के महसूस, सोचने एवं काम करने के तरीकें को प्रभावित करती हैं। यह रोग व्यक्ति के मनोयोग, स्वभाव, ध्यान और संयोजन एवं बातचीत करने की क्षमता में समस्या पैदा करता हैं। अंततः व्यक्ति असामान्य व्यवहार का शिकार हो जाता है। उसे दैनिक जीवन के कार्यकलापों के लिए भी संघर्ष करना पड़ता हैं, जिसके कारण यह गंभीर समस्या स्वास्थ्य चिंता का विषय बन गयी है, इसलिए भारत सरकार ने देश में मानसिक बीमारी के बढ़ते बोझ पर विचार करने के उद्देश्य से वर्ष 1982 में राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरूआत की थी।

मानसिक बीमारी के मूल कारण
मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए कई कारक उत्तरदायी हैं, जो इस प्रकार है :
1    परिवेश संबंधी तनाव जैसे कि चिंता, अकेलापन, साथियों का दबाव, आत्मसम्मान में कमी, परिवार में मृत्यु या तलाक।
2    दुर्घटना, चोट, हिंसा एवं बलात्कार से मनोवैज्ञानिक आघात होना।
3    आनुवंशिक असामान्यताएं।
4    मस्तिष्क की चोट/दोष।
5    अल्कोहल एवं ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन।
6   संक्रमण के कारण मस्तिष्क की क्षति।
5 ऐसे मानसिक विकार जिनके बारे में जानना ज़रूरी है:

1. मेजर डिप्रेसिव डिसऑर्डर (तनाव)
इसे आम भाषा में डिप्रेशन कहा जाता है, यह एक बेहद गंभीर मानसिक बीमारी है। यह बीमारी आप कैसा महसूस करते हैं, क्या सोचते हैं और कैसे पेश आते हैं इन सब पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इस बीमारी के दौरान एक इंसान महीनों, यहां तक ​​कि सालों तक उदास महसूस कर सकता है।
इस दौरान एक व्यक्ति, कभी जिस काम में मज़ा आता था उसमें रुचि खो देना, भूख न लगना, नींद के पैटर्न में बदलाव, ऊर्जा में कमी, हमेशा थकान महसूस करना, अपने आप को बेकार महसूस करना, एकाग्रता में मुश्किल का अनुभव और निर्णय न ले पाना जैसी चीज़ों का अनुभव करता है।
ऐसे में रोगी के दोस्त और परिवार इस बीमारी के उपचार में एक बड़ी भूमिका निभाते हैं। वो न सिर्फ ये पहचानने में मदद कर सकते हैं कि उनके परिवार का कोई सदस्य या दोस्त तनाव में है बल्कि समय पर इसका इलाज करवा सकते हैं। साथ ही वे उस व्यक्ति को प्रेरित कर उसे अवसाद से बाहर आने में भी मदद कर सकते हैं।

2. सिज़ोफ्रेनिया
सिज़ोफ्रेनिया भी एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इस दौरान एक व्यक्ति वास्तविकता की व्याख्या करने में असमर्थ होता है। वे भ्रम, मतिभ्रम और अव्यवस्थित सोच का अनुभव करते हैं। सिज़ोफ्रेनिया आम नहीं है लेकिन इसके लक्षण काफी गंभीर होते हैं। इसे युवा अवस्था में
किशोरों में सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को पहचानना मुश्किल हो सकता है क्योंकि दोस्तों और परिवार से दूरी, प्रेरणा की कमी और नींद की समस्या जैसे लक्षण किशोर अवस्था के आम लक्षण हैं। दवा, मनोवैज्ञानिक परामर्श और स्वयं सहायता संसाधन सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं।

3. Obsessive Compulsive Disorder
Obsessive compulsive disorder यानि OCD एक तरह का चिंता करने का डिसऑर्डर है, जिसमें जुनूनी विचार और चीजों को एक निश्चित तरीके से देखने की मजबूरी महसूस करने जैसे लक्षम शामिल हैं। जो OCD के शिकार होते हैं वह हर चीज़ को अलग तरह से देखते हैं। उन्हें ऐसे विचार आते हैं जो बेकाबू होते हैं और कुछ चीजें करने के लिए बेताब हो जाते हैं। जैसे कई बार या लगातार हाथ धोना, अपने शरीर को चेक करते रहना, रोज़ाना एक तरह का रूटीन फोलो करने जैसे कुछ चीज़ें OCD के लक्षण हैं।

4. लगातार अवसादग्रस्त रहना
इस बीमारी को डिस्थीमिया भी कहा जाता है। इस अवस्था में एक इंसान लगातार अवसाद में रहता है। उसे लगातार उदासी, उत्पादकता में कमी, कम ऊर्जा, निराशा, भूख में बदलाव, कम आत्मविश्वास और खराब आत्मसम्मान की भावना महसूस होती है। दर्दनाक जीवन की घटनाएं, निरंतर चिंता, बायपोलर डिसऑर्डर और यहां तक ​​कि मस्तिष्क में एक प्रकार का रासायनिक असंतुलन लगातार हो रही इस अवसादग्रस्तता विकार का एक प्रमुख कारण हो सकता है।

5. बायपोलर डिसऑर्डर
बायपोलर डिसऑर्डर एक प्रकार की मानसिक बीमारी है, जिसमें इचानक मूड में बदलाव होते हैं। बायपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति कई तरह की भावनाओं से गुज़रता है, कभी अत्यधिक उत्तेजना, गहरी उदासी, आत्मघाती विचार, ऊर्जा की कमी जैसे अनुभव होते हैं। अगर आप अत्यधिक तनाव, शारीरिक बीमारी, दर्दनाक अनुभव और आनुवांशिकी, बायपोलर डिसऑर्डर के विकास को बढ़ावा दे सकते हैं।

मानसिक रोग से संबंधित भ्रांतियां
यह सबसे बड़ी गलत धारणा है, कि मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्ति जनता के लिए हिंसक एवं खतरनाक होते हैं। इस तरह के नकारात्मक रवैया एवं ग़लतफ़हमी के परिणामस्वरूप मानसिक विकारों से पीड़ित व्यक्ति समाज से अधिक दूर हो जाते हैं। इसका परिणाम सामाजिक भ्रांतियां ही हैं। मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्तियों का प्रभावी ढंग से संवाद न करने की क्षमता के कारण, उनका संपूर्ण समाज के साथ-साथ सामान्य जनता पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, लेकिन मानसिक विकार से पीड़ित व्यक्ति जन-जागरूकता एवं सामाजिक सहयोग से इन भ्रांतियों को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर सकता हैं।

मानसिक रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ व्यवहार
1    उनकी भावनाओं एवं स्वभाव को समझें तथा उनके साथ प्रभावी ढ़ंग से संवाद करने का प्रयास करें।
2    उन्हें भावनात्मक एवं सामाजिक सहयोग दें।
3    उनके साथ धैर्यपूर्वक व्यवहार करें तथा उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा देने में सहयोग करें।
4    उन्हें रचनात्मक एवं मनोरंजक गतिविधियों जैसे कि पढ़ने, खेलने, घूमने, योग व ध्यान एवं यात्रा में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें।
5   उन्हें नया सीखने एवं नयी रुचियाँ विकसित करने में प्रेरित करें।
6    उनमें जीवन के प्रति सकारात्मक सोच एवं रवैया पैदा करें।
7    अपने दैनिक कामकाजों से क्षण निकालकर उनकी सहायता करें।

बाबा-तांत्रिकों के सहारे 44 फीसदी पीड़ित

मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता के लिए चल रहे कार्यक्रमों के बावजूद लगभग हर दूसरे व्यक्ति को अंधविश्वास पर भरोसा है। एक सर्वे के मुताबिक 44 फीसदी मानसिक रोगी इलाज की जगह तांत्रिक, बाबा और नीम-हकीम का सहारा ले रहे हैं जबकि 26 फीसदी ऐसे हैं जिन्हें चिकित्सकीय सुविधा नहीं मिलती।
विश्व मानसिक स्वास्थ्य कासमोस इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड बिहेवियरल साइंसेस (सीआईएमबीएस) के एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है। दिल्ली, यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और हरियाणा के करीब 10,233 लोगों को अध्ययन में शामिल किया गया था। इसके अनुसार 49% मरीजों को उनके घर के 20 किलोमीटर के दायरे में स्वास्थ्य सुविधाएं मिल पाती हैं। 48% ने माना कि परिजन या दोस्त नशे के आदी हैं लेकिन आसपास नशा मुक्ति केंद्र नहीं है।
सीआईएमबीएस के निदेशक डॉ. सुनील मित्तल ने बुधवार को रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि मानसिक रोगों को लेकर लोग बाबा और तांत्रिकों के पास इलाज के लिए चक्कर लगाते रहते हैं। इसकी वजह समाज में गलत धारणाएं, जागरूकता का अभाव व स्वास्थ्य सुविधाओं का सुलभ नहीं होना है।
अध्ययन में करीब 87% ने मोबाइल, एप्लीकेशन या फिर टेली मेडिसिन सुविधा के जरिए मानसिक रोगों के उपचार की मांग की है। डॉक्टरों के अनुसार, ऑनलाइन परामर्श से बेहतर परिणाम देखने को मिल सकते हैं।

राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम (एनएमएचपी)
भारत में राष्‍ट्रीय मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम (एनएमएचपी) की शुरूआत 1982 में हुई थी। इसका उद्देश्‍य सभी को न्‍यूनतम मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य देखभाल उपलब्‍ध और सुलभ कराना, मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी ज्ञान के बारे में जागरूकता लाना और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा के विकास में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना तथा समुदाय में स्‍वयं-सहायता को प्रोत्‍साहित करना है। धीरे-धीरे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं के दृष्टिकोण को अस्‍पताल आधारित देख-भाल (संस्‍थागत) को सामुदायिक आधारित देखभाल में बदल दिया गया है क्‍योंकि मनोरोगों के अधिकांश मामलों में अस्‍पताल की सेवाओं की ज़रूरत नहीं होती और इन्‍हें सामुदायिक स्‍तर पर ठीक किया जा सकता है।