INDIA is INDIRA: इमरजेंसी: शुरुआत से अंत तक ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

मैं इस विश्व के जीवन मंच पर अदना सा किरदार हूँ जो अपनी भूमिका न्यायपूर्वक और मन लगाकर निभाने का प्रयत्न कर रहा है। पढ़ाई लिखाई के हिसाब से विज्ञान के इंफोर्मेशन टेक्नॉलोजी में स्नातक हूँ और पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हूँ तथा मेरी कंपनी में मेरा पद मुझे लीड सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बताता है।

Shamsher ALI Siddiquee

Search

Type your search keyword, and press enter


ads

INDIA is INDIRA: इमरजेंसी: शुरुआत से अंत तक

    


इंदिरा गांधी ने 41 साल पहले भारतीय लोकतंत्र पर काला धब्बा लगाया, तो हिंदुस्तान हैरत में पड़ गया था. आज की पीढ़ी को उस दौर का इल्म नहीं, जब दो साल हमारा देश नर्क में बदल गया था. 1975 की इमरजेंसी को समझना है, तो ये 7 बिंदू काफी हैं...

इमरजेंसी की नींव

इलाहाबाद में इं‌दिरा गांधी पर चुनाव में धांधली का मुकदमा, जिसने उन्हें दोषी ठहराया. सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तो सशर्त स्‍थगन मिला. उन्हें सांसद बने रहने का अधिकार मिला, लेकिन संसदीय कार्यवाही से दूर रहने का आदेश भी. यह इमरजेंसी की तरफ पहला कदम माना जाता है

जेपी की क्रांति

दूसरा कदम जयप्रकाश नारायण रहे, जिन्होंने कोर्ट के आदेश के बाद इं‌दिरा गांधी के इस्तीफे की मांग की और 'संपूर्ण क्रांति' की पहल की. 25 जून को ही उन्होंने देश भर में अलग-अलग सूबों की राजधानी में प्रदर्शन करने आह्वान किया

गिरफ्तारियां

हालात काबू से बाहर होते देख इंदिरा गांधी ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 352 के तहत आपातकाल लगा दिया, जिससे उन्हें असीम ताक़त मिल गई. जेपी, मोरारजी देसाई, विजयराजे सिंधिया, जीवतराम कृपलानी, लालकृष्‍ण आडवाणी और कई दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया गया. यही नहीं, कई लोगों को हिरासत के दौरान प्रताड़ित कर मार डाला गया, हालांकि सरकारी आंकड़ा सिर्फ 22 लोगों की मौत मानता है

चुनाव

विरोध करने वाले नेताओं को जेल में डाल दिया गया, आम नागरिकों के सारे अधिकार रद्द कर दिए गए हैं, ऐसे में चुनावों का क्या मतलब? इंदिरा गांधी ने देश में होने वाले सभी संसदीय और विधानसभा चुनावों पर पाबंदी लगा दी. कुछ राज्य की सरकारें गिराकर वहां के नेताओं को हिरासत में ले लिया गया

नसबंदी

आपातकाल ने सिर्फ इंदिरा गांधी नहीं, बल्कि उनके बेटे संजय गांधी को भी असीम ताक़त दी. उन्होंने परिवार नियोजन के नाम पर जबरन नसबंदी करने का अभियान चलाया. ऐसा कहा जाता है कि करीब 9 लाख लोगों की नसबंदी की गई. इनमें वो लोग भी थे, जिनकी शादी तक नहीं हुई या जो बुजुर्ग थे

मीडिया

लोकतंत्र का चौथा स्तम्‍भ आपातकाल के दौरान खुद को बचाने के लिए जूझ रहा था. अखबारों, टेलीविज़न और रेडियो पर कई पाबंदियां लगा दी गईं. कुछ अखबार-पत्रिकाओं ने विरोध जताने के लिए पन्ने खाली छापे, कुछ ने रबींद्रनाथ टैगोर की कविता प्रकाशित की और कुछ ने 'लोकतंत्र की मौत' पर मर्सिया पढ़ा

कानून

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने अपनी मर्ज़ी से कानून लिखने शुरू कर दिए, क्योंकि उस वक्‍़त उनकी पार्टी के पास लोकसभा में दो-तिहाई बहुमत था. उन्होंने अपने खिलाफ लगे सभी आरोप नए कानून पास कर हटा दिए. 42वां संशोधन आपातकाल की सारी कहानी कहता है

आपातकाल का अंजाम

करीब 21 महीने बाद इमरजेंसी हटी, हालांकि संजय गांधी की योजना इसे कई साल लगाए रखने की थी. आपातकाल के बाद हुए आम चुनावों में कांग्रेस को इसका अंजाम भुगतना पड़ा और वो बुरी तरह हारी. सलमान रश्दी की मिडनाइट चिल्ड्रन, वी एस नायपॉल के इंडिया-ए वूंडड कंट्री जैसे किताबें छपीं. किस्सा कुर्सी का जैसी फिल्म में सियासी हथकंडों पर तंज़ कसा गया. नसबंदी जैसी फिल्मों ने देश के हालात बताए 

Related Posts: