आजाद हिंद फौज बदल देती भारत का नक्‍शा, इसलिए बोस कहे गए अनूठे नायक..! ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

मैं इस विश्व के जीवन मंच पर अदना सा किरदार हूँ जो अपनी भूमिका न्यायपूर्वक और मन लगाकर निभाने का प्रयत्न कर रहा है। पढ़ाई लिखाई के हिसाब से विज्ञान के इंफोर्मेशन टेक्नॉलोजी में स्नातक हूँ और पेशे से सॉफ़्टवेयर इंजीनियर हूँ तथा मेरी कंपनी में मेरा पद मुझे लीड सॉफ़्टवेयर इंजीनियर बताता है।

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आजाद हिंद फौज बदल देती भारत का नक्‍शा, इसलिए बोस कहे गए अनूठे नायक..!

    


‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आज़ादी दूंगा’। खून भी एक-दो बूंद नहीं, इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाए और मैं उसमें ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूं “ , ये नारा दिया था नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक, आजाद हिन्द फौज के संस्थापक और जय हिन्द का नारा देने वाले सुभाष चंद्र बोस (जन्म-23 जनवरी, 1897 कटकउड़ीसा) के अतिरिक्त हमारे देश के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ जो एक साथ महान सेनापति,वीर सैनिकराजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषोंनेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीतिज्ञ तथा चर्चा करने वाला हो।
भारत की स्वतंत्रता के लिए सुभाषचंद्र बोस ने क़रीब-क़रीब पूरे यूरोप में अलख जगाया। बोस प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे। महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह को नेपोलियन की पेरिस यात्रा की संज्ञा देने वाले सुभाष चंद्र बोस का एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसका मार्ग कभी भी स्वार्थों ने नहीं रोका, जिसके पांव लक्ष्य से पीछे नहीं हटे, जिसने जो भी स्वप्न देखे, उन्हें साधा और जिसमें सच्चाई के सामने खड़े होने की अद्भुत क्षमता थी। हालांकि गांधीजी से उनकी विचारधारा मेल नहीं खाती थीलेकिन गांधी जी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहा। उनका दिया नारा “जय हिंद” भारत का राष्ट्रीय नारा बना। दिल्ली चलो का नारा भी उन्होंने ही दिया। बोस ने ही गांधीजी को राष्‍ट्रपिता की संज्ञा दी।
जिस  नेता जी  उपनाम को सुभाष बाबू ने गरिमा दी। वही नेता जी  उपनाम आज भ्रष्ट तंत्र का पर्यायवाची हो गया है। आजादी के बाद देश के राजनीतिज्ञों ने नेता शब्द को इतना शर्मसार कर दिया कि आज कोई युवा नेता नहीं बनना चाहता। वह राजनीति की मुख्यधारा में शामिल होना ही नहीं चाहता। जबकि आजादी से पहले अधिकांश युवाओ में देश के लिए एक जज्बा थाएक सपना था, उम्मीदें थी, हर कोई नेता जी सुभाषचन्द्र बोस बनना चाहता था। नेता जी युवाओ के प्रेरणा स्रोत तब भी थे और आज भी हैं। लेकिन आजादी के बाद नेता शब्द ऐसा हो गया है कि अब शायद ही कोई युवा इसे अपने नाम के साथ लगाना चाहे। ये देन है हमारी राजनीतिक व्यवस्था की।
आजादी के पहले देश के नेता कहते थे, तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगाआजादी के बाद तथाकथित नेता कहते है कि तुम मुझे वोट दो मै तुम्हे घोटाले दूंगा
सुभाषचंद्र बोस एक महान नेता थे। महात्मा गांधी और सुभाष चंद्र बोस के विचार भिन्न-भिन्न थे। लेकिन वे यह अच्छी तरह जानते थे कि महात्मा गांधी और उनका मक़सद एक है, यानी देश की आज़ादी। वे यह भी जानते थे कि महात्मा गांधी ही देश के राष्ट्रपिता कहलाने के सचमुच हक़दार हैं। 1938 में गांधीजी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सुभाष बाबू को चुना तो था, मगर गांधीजी को सुभाष बाबू की कार्यपद्धति पसंद नहीं आई। इसी दौरान यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध के बादल छा गए थे। सुभाषबाबू चाहते थे कि इंग्लैंड की इस कठिनाई का लाभ उठाकर, भारत का स्वतंत्रता संग्राम अधिक तीव्र किया जाए। हालांकि, गांधीजी उनके इस विचार से सहमत नहीं थे।
आज़ादी की लड़ाई लड़ते बोस 11 बार जेल गए। अंग्रेज समझ चुके थे कि यदि बोस आज़ाद रहे तो भारत से उनके पलायन का समय बहुत करीब है। अंग्रेज चाहते थे कि वे भारत से बाहर रहें, इसलिए उन्हें जेल में डाले रखा। तबीयत बिगड़ने के बाद वे 1933 से 1938 तक यूरोप में रहे। यूरोप में रहते हुए सुभाषचन्द्र बोस ने ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, फ्रांस, जर्मनी, हंगरी, आयरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, रूमानिया, स्वीजरलैण्ड, तुर्की और युगोस्लाविया की यात्राएं कर के यूरोप की राजनीतिक हलचल का गहन अध्ययन किया और उसके बाद भारत को स्वतन्त्र कराने के उद्देश्य से आजाद हिन्द फौज का गठन किया।
यूरोप में वे इटली के नेता मुसोलिनी से मिले। बर्लिन में जर्मनी के तत्कालीन तानाशाह हिटलर से मुलाकात की और भारत को स्वतंत्र कराने के लिए जर्मनी व जापान से सहायता मांगी। जर्मनी में भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की। इसी दौरान सुभाषबाबू, नेताजी नाम से जाने जाने लगे। जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिन्द फौज का विस्तार करना शुरू किया। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहां स्थानीय भारतीय लोगों से आज़ाद हिन्द फौज में भरती होने का और आर्थिक मदद करने का आह्वान किया। उन्होंने अपने आह्वान में संदेश दिया “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूंगा।”
द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान आज़ाद हिन्द फौज ने जापानी सेना के सहयोग से भारत पर आक्रमण किया। अपनी फौज को प्रेरित करने के लिए नेताजी ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया। दोनों फौजों ने अंग्रेजों से अंडमान और निकोबार द्वीप जीत लिए।
6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गांधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आज़ाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गांधी जी को राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी जंग के लिए उनका आशीर्वाद मांगा। इस प्रकार, नेताजी ने गांधी जी को सर्वप्रथम राष्ट्रपिता बुलाया।
दूसरे विश्वयुद्ध में जापान की हार के बाद नेता जी ने रूस से मदद मांगनी चाही। 18 अगस्त 1945 को उन्होंने विमान से मांचुरिया के लिए उड़ान तो भरी, लेकिन इसके बाद क्या हुआ, कोई नहीं जानता। खबर आई कि वह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। हालांकि उनकी मौत पर संदेह है। कहा यह भी जाता है कि अंग्रेज सरकार उन्हें जीवित देखना नहीं चाहती थी, इसलिए वह हादसा कराया गया। लेकिन 2005 में ताइवान सरकार ने नेताजी की कथित मौत पर गठित मुखर्जी आयोग को बताया कि 1945 में ताइवान में कोई विमान दुर्घटनाग्रस्त नहीं हुआ। भारत सरकार ने मुखर्जी आयोग की इस रिपोर्ट को अस्वीकार कर दिया।
भारत के सबसे बड़े स्वतंत्रता सेनानी और इतने बड़े नायक की मृत्यु के बारे में आज तक रहस्य बना हुआ है, जो देश की सरकार के लिए एक शर्म की बात है। देश की आजादी में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले वीर योद्धा का अस्तित्व कहां खो गया, यह आजाद भारत के सात दशक से भी ज्यादा समय में नहीं पता लगाया जा सका। किसी भी राष्ट्र के स्वतंत्रता सेनानियों की जीवनी ऐतिहासिक धरोहर होती है। आने वाली पीढ़ियां इन्हीं के आदर्शों से प्रेरणा लेते हुए एक अपने देश के लिए सोचती हैं।
अब जापान में रखी नेताजी की अस्थियों की असलियत पर संदेह उठने लगा है, तो सरकार नेता जी की अस्थियों की डीएनए डेस्ट करार उसका मिलान उनकी बेटी से करने का विचार क्यों नहीं करती है? क्योंकि नेताजी की रहस्यमई मौते से पर्दा उठाने पर ही देश की आजादी के इतिहास से नेता जी और उनकी भारतीय राष्ट्रीय सेना के योगदान को और गौरव दिलाया जा सकता है। नेताजी का योगदान और प्रभाव इतना बडा था कि कहा जाता हैं कि अगर आजादी के समय नेताजी भारत में उपस्थित रहते, तो शायद भारत एक संघ राष्ट्र बना रहता और भारत का विभाजन न होता।
नेताजी ने उग्रधारा और क्रांतिकारी स्वभाव में लड़ते हुए देश को आजाद कराने का सपना देखा था। अगर उन्हें भारतीय नेताओं का भी भरपूर सहयोग मिला होता तो देश की तस्वीर यकीकन आज कुछ अलग होती। आज जब देश में नेता शब्द की गरिमा घटी है, समाज में नेता का मतलब भ्रष्ट समझा जाता है। ऐसे में देश के असली नेता, नेता जी सुभाष चंद्र बोस का स्मरण होता है, जो देश के वास्तविक नेता थे, आज देश को ऐसे ही नेता की जरूरत है, जो देश को नई दिशा दिखा सके।

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