"सफल फ़िल्मों की बात करें तो ये तीन तरह की होती हैं-
हिट, सुपरहिट और तीसरी कैटेगरी होती है ''शोले''.
लेखक-गीतकार जावेद अख़्तर की ये बात 'शोले' की सफलता की
दास्तान कहने के लिए काफ़ी है.
आइए जानते हैं 'शोले' से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें-
शूटिंग का पहला दिन
'शोले' 40 साल पहले 15 अगस्त 1975 को रिलीज़ हुई. शूटिंग इससे
करीब दो साल पहले दो अक्तूबर 1973 में शुरु हुई हालांकि पहला
दिन बारिश के नाम रहा.
आमतौर पर डाकुओं पर बनी फ़िल्में चंबल में शूट होती थीं, लेकिन
निर्देशक रमेश सिप्पी कुछ अलग दिखाना चाहते थे.
उनके आर्ट डायरेक्टर ने बंगलौर के पास रामनगरम की सलाह दी.
पूरा का पूरा गाँव, ठाकुर का घर, गब्बर का अड्डा, मस्जिद सब
असली नहीं बल्कि सेट था.
हाईवे से गाँव तक सड़क बनवाई गई और फ़ोन कनेक्शन लगवाया गया.
पहला सीन जो शूट किया गया था वो था जब जय राधा को
तिजोरी की चाबी देता है.
ज़िंदा बचा गब्बर
'शोले' जो सेंसर बोर्ड के सामने पेश की गई थी उसमें फ़िल्म का अंत
कुछ और है.
उसमें ठाकुर गब्बर को कील वाले जूतों से ठोकर मार-मार कर एक
कील लगे पिलर के पास ले जाता है.
वो कील गब्बर के शरीर में घुस जाती है और गब्बर मर जाता है.
तब धर्मेंद्र ठाकुर को शॉल ओढ़ाते हैं और पूरी फ़िल्म में चेहरे पर
गुमसुम सा भाव लिया ठाकुर बिलख कर रोने लगता है.
लेकिन उस समय इमरजेंसी का माहौल था और सेंसर के ऐतराज़ के
बाद रमेश सिप्पी को क्लाइमेक्स बदलकर दिखाना पड़ा कि
ठाकुर गब्बर को पुलिस के हवाले कर देता है.
अमिताभ-जया और धर्मेंद-हेमा
'शोले' की शूटिंग से पहले ही अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी
की शादी हो गई थी.
जब 'शोले' की शूटिंग शुरु हुई तो जया गर्भवती थीं. एक इंटरव्यू में
अमिताभ बच्चन ने कहा था कि वो अक्सर श्वेता बच्चन के साथ
मज़ाक करते हैं कि 'शोले' में एक तरह से श्वेता ने भी काम किया है.
फ़िल्म के प्रीमियर के वक़्त जया अभिषेक के साथ गर्भवती थीं.
'शोले' की शूटिंग वो समय था जब धर्मेंद्र हेमा मालिनी को
ख़ासा पंसद करते थे. बाद में दोनों ने शादी की.
अनुपमा चोपड़ा की किताब ''शोले' द मेकिंग ऑफ ए क्लासिक' के
मुताबिक़, मौसी के पास वीरू की शादी का प्रस्ताव ले जाने
वाला सीन सलीम-जावेद की असल ज़िंदगी से लिया गया था.
जावेद अख़्तर ने हनी ईरानी से शादी करने का प्रस्ताव सलीम
खान के हाथों भिजवाया था.
किताब के मुताबिक़, सलीम ख़ान ने जाकर हनी ईरानी की माँ से
कहा, "वो मेरा पार्टनर है और मैं किसी के साथ काम नहीं करता
अगर वो मुझे पसंद न हो. लेकिन दारू बहुत पीता है. आजकल ज़्यादा
तो नहीं पीता बस एक दो पैग. और इसमें कोई खराबी नहीं है. वैसे
दारू पीने के बाद रेड लाइट एरिया भी जाता है."
शुरु में फ़्लॉप थी 'शोले'
पहले तीन हफ़्ते तक 'शोले' देखने लोग नहीं आए. कहते हैं कि एक ट्रेड
मैगज़ीन ने लेख भी छापा था कि क्यों 'शोले' फ़्लॉप हुई.
जुमला मशहूर हुआ- तीन महारथी और एक चूहा (संजीव, अमिताभ,
धर्मेंद्र और अमजद).
अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि पूरी यूनिट बहुत
निराश थी और तय किया गया कि जय को ज़िंदा रखने के लिए
सीन दोबारा शूट किया जाए.
अमिताभ के मुताबिक़, उस दिन शनिवार था तो रविवार को
शूटिंग की तैयारी हुई ताकि सोमवार को फ़िल्म में बदलाव
शामिल हो जाएँ.
लेकिन फिर रमेश सिप्पी ने कहा कि दोबारा शूटिंग से पहले कुछ
और इंतज़ार कर लेते हैं. ज़ाहिर है कुछ बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ी.
गब्बर का रोल
गब्बर का रोल कई अभिनेताओं को ऑफ़र किया गया. ये रोल डैनी
को मिला और स्क्रीन मैगज़ीन के कवर पर डैनी समेत 'शोले' के
स्टारकास्ट की फ़ोटो भी छप गई थी.
लेकिन डैनी को उसी दौरान अफ़ग़ानिस्तान में फिरोज़ खान की
'धर्मात्मा' शूट करनी थी और उन्हें ''शोले'' छोड़नी पड़ी.
तब सलीम ख़ान ने जावेद अख़्तर को अमजद ख़ान के बारे में याद
दिलाया.
जावेद अख़्तर ने अमजद ख़ान को कई साल पहले दिल्ली में एक
नाटक में देखा था और सलीम ख़ान से उनकी तारीफ़ की थी.
जब गब्बर के रोल के लिए सलीम-जावेद को किसी एक्टर की
तलाश थी तो सलीम ख़ान ने अमजद ख़ान का नाम याद दिलाया
जो चरित्र अभिनेता जयंत के बेटे थे.
हालांकि शूटिंग के दौरान ऐसी आवाज़ें भी उठीं कि अमजद की
जगह किसी और को लिया जाए या उनकी आवाज़ डब की जाए.
एक फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड
1976 में 'शोले' को नौ वर्गों में नामांकन मिला था लेकिन
फ़िल्मफ़ेयर अवॉर्ड में ज़्यादातर अवॉर्ड 'दीवार' को मिले.
'शोले' को एकमात्र पुरस्कार एडिटिंग के लिए मिला.
सूरमा भोपाली पर गाना
फ़िल्म में एक गाना था जो रिकॉर्ड तो हुआ पर शूटिंग नहीं हुई. इसे
भोपाल के चार भांड स्टाइल में रिकॉर्ड किया गया जिसके
गायकों में आनंद बख़्शी भी थे.
इसे सूरमा भोपाली पर फ़िल्माया जाना था. जगदीप का ये
किरदार काफ़ी मशहूर हुआ था.
बाद में उन्होंने सूरमा भोपाली नाम से एक फ़िल्म भी बनाई जिसमें
उनकी प्रेम कहानी दिखाई गई थी.
गानों की बात करें तो 'महबूबा ओ महबूबा' भी काफ़ी चर्चित था.
उसी दौरान एक अंग्रेज़ी गाना आया था 'से यू लव मी' जिसे डेमी
नाम के ग्रीक गायक ने गाया था.अगर आप सुनेंगे तो महबूबा की
धुन इस अंग्रेज़ी गाने से बहुत मिलती-जुलती है.
'मजबूर' ठुकरा 'शोले' चुनी
सिप्पी प्रोडक्शन्स की स्टोरी डिपार्टमेंट में कोई 750 रुपए की
तनख्वाह पर काम करने वाले सलीम-जावेद ने रमेश सिप्पी को दो
आइडिया सुनाए थे.
पहली स्क्रिप्ट मजबूर की थी जो संवादों के साथ पूरी तरह तैयार
थी और दूसरा आइडिया था 'शोले' का.
रमेश सिप्पी ने मजबूर की तैयार स्क्रिप्ट ठुकराकर सलीम जावेद
को 'शोले' की कहानी पर काम करने को कहा जो उस वक़्त सिर्फ़
चंद लाइन की थी.
'शोले' की कहानी सिप्पी से पहले कुछ निर्माता ठुकरा चुके थे.
जय-वीरू
वीरू के रोल के लिए धर्मेंद्र का नाम तय था जो उस समय बड़े स्टार
थे. जय के लिए किसी एक्टर की तलाश थी.
इसमें शत्रुघ्न सिन्हा का नाम आया जिनकी 'रामपुर का लक्ष्मण'
जैसी फ़िल्में हिट हुई थीं और डिस्ट्रिब्यूटरों को भी वे पसंद थे.
उस समय अमिताभ बच्चन 10 फ़्लॉप फ़िल्में दे चुके थे.
सलीम-जावेद की लिखी जंजीर में अमिताभ काम कर रहे थे और
उन्होंने अमिताभ के नाम की वकालत की.
हालांकि शुरू में अमिताभ गब्बर का रोल निभाना चाहते थे.
'शोले' के दौरान अमजद खान ने अमिताभ बच्चन को निक नेम
दिया थ शॉर्टी.
फ़िल्म में सचिन ने भी काम किया जिन्हें फ़ीस में एयर कंडिशनर
दिया गया था.
sorce- bbc