गर्मियां इन दिनों पूरे जोरों पर हैं। घर से बाहर निकलो तो शरीर झुलसने लगता है और कब हीट स्ट्रोक के लपेटे में आ जाएं , पता ही नहीं लगता। अंदर रहकर पसीना आए तो स्किन की प्रॉब्लम शुरू हो जाती हैं। कुछ उलटा - सीधा खा लिया तो डायरिया हो सकता है। दरअसल , कई ऐसी बीमारियां हैं , जो गर्मियों या बढ़ते तापमान से सीधे जुड़ी हैं।

1. गर्मियों में पसीना निकलने से स्किन में ज्यादा मॉइस्चर रहता है , जिसमें कीटाणु ( माइक्रोब्स ) आसानी से पनपते हैं। इस दौरान ज्यादा काम करने से स्वेट ग्लैंड्स ( पसीने की ग्रंथियां ) ब्लॉक हो जाते हैं और पसीना स्किन की अंदरूनी परत के अंदर जमा रह जाता है। यह रैशेज और घमौरियों का रूप ले लेता है।
2. घमौरियां और रैशेज होने पर स्किन लाल पड़ जाती है और उसमें खुजली व जलन होती है। रैशेज से स्किन में दरारें - सी नजर आती हैं और स्किन सख्त हो जाती है , वहीं घमौरियों में लाल - लाल दाने निकल आते हैं। बच्चों में बुखार के दौरान आमतौर पर दानेवाली घमौरियां निकलती हैं। इसके लिए किसी दवा की जरूरत नहीं होती।
क्या करें : मोटे और सिंथेटिक कपड़ों की बजाय खुले , हल्के और हवादार कपड़े पहनें। ऐसे कपड़े न पहनें , जिनमें रंग निकलता हो। ध्यान रहे कि कपड़े धोते हुए उनमें साबुन न रहने पाए। खूब पानी पीएं। हवादार और ठंडी जगह में रहें। घमौरियों वाले हिस्से की दिन में एक - दो बार बर्फ से सिकाई करें और कैलेमाइन (Calamine) लोशन लगाएं। मॉइस्चराइजर वाला कैलेमाइन लोशन (Calosoft, Efatop-C आदि ) लगाना बेहतर है। ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर लगाएं। खुजली ज्यादा है तो डॉक्टर की सलाह पर खुजली की दवा ले सकते हैं।
सनबर्न और टैनिंग:
1. गर्मियों में अक्सर लोगों को सनबर्न ( स्किन का झुलसना ) और टैनिंग ( स्किन का रंग गहरा होना ) हो जाती है। एक्सपर्ट्स के मुताबिक टैनिंग खराब चीज नहीं है इसलिए उसके लिए किसी तरह का उपाय करने की जरूरत नहीं है। लेकिन सनबर्न और पिग्मेंटेशन ( जगह - जगह धब्बे पड़ना ) होने पर स्किन में जलन और खुजली होती है। जो लोग सनबर्न होने के बाद भी धूप में घूमते रहते हैं , अगर वे पानी न पिएं तो उन्हें हीट स्ट्रोक होने का खतरा बढ़ जाता है।
क्या करें : एसपीएफ 30 तक का नॉन - ऑइली सनस्क्रीन लगाएं। ढीले , पूरी बाजू के , हल्के रंग के कॉटन के कपड़े पहनें। बाहर जाते हुए छाते का इस्तेमाल जरूर करें। सुबह 10 बजे से शाम 3 बजे तक धूप में निकलने से बचें। बाहर निकलें तो काले रंग की छतरी लेकर जाएं। खूब पानी पिएं।
1. कैलेमाइन लोशन या ऐंटि - इन्फ्लेमेट्री यानी सूजन और जलन से राहत दिलाने वाले लोशन हाइड्रोकॉर्टिसोन (Hydrocortisone) लगा सकते हैं। यह जेनरिक नेम है और मार्केट में अलग - अलग ब्रैंड नेम से मिलता है।
2. ज्यादा खुजली हो तो डॉक्टर ऐंटि - अलर्जिक गोली सिट्रिजिन (Cetirizine) खाने की सलाह देते हैं। यह भी जेनरिक नाम है। जब तक सनबर्न ठीक न हो , धूप से बचें।
3. घरेलू उपाय भी आजमा सकते हैं। आधा कप दही में आधा नीबू निचोड़ कर अच्छी तरह मिला लें। फ्रिज में रख लें और रात को सोने से पहले क्रीम की तरह लगा लें। पांच मिनट बाद इसके ऊपर से हल्का मॉइस्चराइजर भी लगा सकते हैं। राहत मिलेगी। मुल्तानी मिट्टी में गुलाब जल मिलाकर भी लगा सकते हैं।
शरीर में बदबू:
1. पसीने में मॉइस्चर की वजह से गर्मियों में हमारे शरीर में बदबू आने लगती है। शरीर में मौजूद बैक्टीरिया हाइड्रोजन सल्फाइड बनाने लगते हैं , जिससे बदबू या पीलापन पैदा होता है।
क्या करें : लहसुन - प्याज आदि का इस्तेमाल कम करें। दिन में दो - तीन बार पानी में नीबू डालकर नहाएं। बॉडी पर बर्फ लगा सकते हैं , जिससे पसीना कम निकलेगा। रोजाना साफ अंडरगार्मेंट और जुराबें पहनें। डियो या परफ्यूम इस्तेमाल करें।
1. कूलिंग , ऐंटि - बैक्टीरियल पाउडर (Nysil आदि ) या ऐंटि - फंगल पाउडर यूज करें या कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - फंगल पाउडर मार्केट में माइकोडर्म (Mycoderm), अब्जॉर्ब (Abzorb), जिएजॉर्ब (Zeasorb) आदि ब्रैंड नेम से मिलता है।
2. दिन में दो बार फिटकरी को हल्का गीला कर बॉडी फोल्ड्स में लगा लें। इससे पसीना कम आता है , लेकिन इसे जोर से रगड़े नहीं , वरना स्किन कट जाएगी। ऐंटि - प्रॉस्पैरंट लोशन या पाउडर लगा सकते हैं। इसका जेनरिक नाम ऐल्युमिनियम हाइड्रॉक्साइड (Aluminium Hydroxide) है। इससे पसीना कम आएगा और बैक्टीरिया भी कम पनपेंगे।
नुकीले दाने:
गर्मियों में आमतौर पर नुकीले या तीखे दाने निकलते हैं। वाइटहेड , ब्लैकहेड के अलावा पस वाले दाने भी हो सकते हैं। फोड़े - फुंसी और बाल तोड़ भी हो सकते हैं। बाल तोड़ शुगर के मरीजों में काफी होते हैं। असल में , जब कीटाणु स्किन के नीचे पहुंच जाते हैं और पस बनाना शुरू कर देते हैं तो यह समस्या हो जाती है। आम धारणा है कि ऐसा आम खाने से होता है , लेकिन यह सही नहीं है। यह मॉइस्चर में पनपने वाले बैक्टीरिया की वजह से होता है।
क्या करें : ऐंटि बैक्टीरियल साबुन से दिन में दो बार नहाएं। शरीर को जितना मुमकिन हो , सूखा और फ्रेश रखें। हवा में रहें।
1. सेलिसायलिक (Salicylic) बेस्ड क्लींजर या फेशवॉश इस्तेमाल करें। इससे ऑइल कम हो जाता है।
2. ऐंटि - बायॉटिक क्रीम लगाएं , जिनके जेनरिक नाम फ्यूसिडिक ऐसिड (Fusidic Acid) और म्यूपिरोसिन (Mupirocin) हैं।
3. गर्म तासीर वाली चीजें जैसे अदरक , लहसुन , अजवाइन , मेथी , चाय - कॉफी आदि कम खाएं - पिएं। इनसे ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं , जिससे कीटाणु जल्दी आ जाते हैं।
4. ग्रंथियां ज्यादा काम कर रही हैं तो क्लिंडेमाइसिन (Clindamycin) लोशन लगा सकते हैं। यह मुहासों की भी रोकथाम करता है और मार्केट में कई ब्रैंड नेम से मिलता है। ऐंटि ऐक्ने साबुन ऐक्ने - एड (Acne-Aid), ऐक्नेक्स (Acnex), मेडसॉप (Medsop) आदि भी यूज कर सकते हैं। ये ब्रैंड नेम हैं।
फंगल इन्फेक्शन:
रिंग वॉर्म यानी दाद - खाज की समस्या गर्मियों में बढ़ जाती है। यह शरीर के उन हिस्सों में होता है , जिनमें पसीना ज्यादा आता है। इसमें गोल - गोल टेढ़े - मेढ़े रैशेज जैसे नजर आते हैं , रिंग की तरह। ये अंदर से साफ होते जाते हैं और बाहर की तरफ फैलते जाते हैं। इनमें खुजली होती है और एक से दूसरे में फैल जाते हैं।
क्या करें : नहाने के बाद बॉडी को अच्छी तरह सुखाएं। कहीं पानी रहने से इन्फेक्शन हो सकता है। ऐंटि - फंगल क्रीम क्लोट्रिमाजोल (Clotrimazol) लगाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर की सलाह से ग्राइसोफुलविन (Griseofulvin) टैब्लेट ले सकते हैं। ये दोनों जेनरिक नेम हैं।
छपाकी:
ज्यादा गरम चीजें ( नॉनवेज , नट्स , लहसुन आदि ) खाने से कई बार स्किन पर अचानक लाल - लाल चकत्ते पड़ जाते हैं। इनमें हल्की खुजली होती है। इस स्थिति को अर्टिकेरिया या हाइव्स भी कहा जाता है।
क्या करें : कैलेमाइन लोशन लगाएं। ऐंटि - अलजिर्क पाउडर या लोशन लगाएं।
ऐथलीट्स फुट:
जो लोग लगातार जूते पहने रहते हैं , उनके पैरों की उंगलियों के बीच की स्किन गल जाती है। समस्या बढ़ जाए तो इन्फेक्शन नाखून तक फैल जाता है और वह मोटा और भद्दा हो जाता है।
क्या करें : जूते उतार कर रखें और पैरों को हवा लगाएं। जूते पहनना जरूरी हो तो पहले पैरों को साबुन से साफ करें। फिर फिटकरी लगा लें। पैरों पर पाउडर भी डाल सकते हैं। क्लोट्राइमाजोल क्रीम या पाउडर लगाएं।
कॉन्टैक्ट अलर्जी:
आर्टिफिशल जूलरी , बेल्ट , जूते आदि के अलावा जिन कपड़ों से रंग निकलता है , उनसे कई बार अलर्जी हो जाती है , जिसे कॉन्टैक्ट अलर्जी कहा जाता है। जहां ये चीजें टच होती हैं , वहां एक लाल लाइन बन जाती है और दाने बन जाते हैं। इनमें काफी जलन होती है। अगर जूलरी आदि को लगातार पहनते रहेंगे तो बीमारी बढ़ जाएगी और उस जगह से पानी निकलना ( एक्जिमा ) शुरू हो जाएगा।
क्या करें : सबसे पहले उस चीज को हटा दें , जिससे अलर्जी है। गर्मियों में आर्टिफिशल जूलरी से बचें। उस पर हाइड्रोकोर्टिसोन लगाएं।
सनस्क्रीन और डिओ:
1. सनस्क्रीन दो तरह के होते हैं : एक जो सूरज की किरणों को ब्लॉक करते हैं। ये तभी तक काम करते हैं , जब तक स्किन पर मौजूद रहते हैं। दूसरी तरह के सनस्क्रीन केमिकल आधारित होते हैं और स्किन में समाकर अंदर से सुरक्षा देते हैं। इन्हें बेहतर माना जाता है। हालांकि आजकल दोनों फैक्टरों को मिलाकर तैयार किए गए सनस्क्रीन मार्केट में ज्यादा मिलते हैं। सनस्क्रीन वॉटर बेस्ड लगाना चाहिए और सूरज में निकलने से कम - से - कम 10-15 मिनट पहले लगाना जरूरी है। अगर धूप में रहना है तो हर दो घंटे बाद फिर से लगाना चाहिए। यह झुर्रियां आने की रफ्तार कम करता है। घर में ही रहना है तो सनस्क्रीन लगाना जरूरी नहीं है।
2. एसपीएफ यानी सन प्रोटेक्शन फैक्टर को लेकर अक्सर लोगों को गलतफहमी होती है , मसलन ज्यादा - से - ज्यादा एसपीएफ का सनस्क्रीन लगना बेहतर है। असल में , हम भारतीयों की स्किन टाइप 3 और टाइप 4 कैटिगरी में आती है। बहुत गोरे लोगों की स्किन टाइप 1 व टाइप 2 होती है और बेहद काले ( नीग्रो आदि ) की टाइप 5 व 6 कैटिगरी में आती है। ऐसे में हम लोगों के लिए 30 एसपीएफ काफी है। सांवली स्किन वाले लोगों को भी 15-30 एसपीएफ का सनस्क्रीन यूज करना चाहिए। यह धारणा गलत है कि सांवले लोगों को सनस्क्रीन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। बच्चों को पांच साल की उम्र के बाद ही सनस्क्रीन लगाएं।
3. डिओ लगाने से कोई नुकसान नहीं है। यह शरीर को ताजगी और खुशबू देते हैं। लेकिन डिओ को सीधे बॉडी पर लगाने की बजाय कपड़ों पर लगाना बेहतर है , ताकि उसके केमिकल शरीर में कम जाएं। जब भी पसीना आए , डिओ लगा सकते हैं। आमतौर पर डिओ अलर्जी नहीं करते लेकिन जिन्हें अलर्जी है , उन्हें डिओ नहीं लगाना चाहिए।
ध्यान दें:
1. गर्मियों में अक्सर लोग बॉडी की मॉइस्चराइजिंग को लेकर लापरवाह हो जाते हैं , लेकिन गमिर्यों में भी शरीर को मॉइस्चर करना जरूरी है।
2. दिन में दो बार चेहरे और बॉडी को माइल्ड क्लींजर से साफ करें। फिर चेहरे पर अल्कोहल - फ्री टोनर लगाएं और इसके बाद 30 तक एसपीएफ वाला वॉटर बेस्ड मॉइस्चराइजर लगाएं। बॉडी पर भी अच्छी क्वॉलिटी का लोशन यूज करें।
3. जिनकी स्किन सेंसटिव हैं , वे सेलिसायलिक (Celisylic) बेस्ड फेशवॉश यूज करें।
लू लगना ( हीट स्ट्रोक )
1. गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से शरीर में पानी और नमक की ज्यादा कमी होने पर लू लगने की आशंका होती है। धूप में घूमने वालों , बच्चों , बूढ़े और बीमारों को लू लगने का डर ज्यादा होता है।
1. गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से शरीर में पानी और नमक की ज्यादा कमी होने पर लू लगने की आशंका होती है। धूप में घूमने वालों , बच्चों , बूढ़े और बीमारों को लू लगने का डर ज्यादा होता है।
बचाव है बेहतर
एक्सर्पट्स का मानना है कि लू के इलाज से बेहतर है बचाव। बचाव इस तरह कर सकते हैं :
1. तेज गर्म हवाओं में बाहर जाने से बचें। नंगे बदन और नंगे पैर धूप में न निकलें। धूप से बचने के लिए छाते का इस्तेमाल करें। इसके अलावा , सिर पर गीला या सादा कपड़ा रखकर चलें। चश्मा पहनकर बाहर जाएं। चेहरे को कपड़े से ढक लें।
2. घर से बाहर पूरे और ढीले कपड़े पहनकर निकलें , ताकि उनमें हवा लगती रहे। ज्यादा टाइट और गहरे रंग के कपड़े न पहनें। सूती कपड़े पहनें। सिंथेटिक , नायलॉन और पॉलिएस्टर के कपड़े न पहनें।
3. खाली पेट बाहर न जाएं और ज्यादा देर भूखे रहने से बचें। घर से पानी या कोई ठंडा शरबत पीकर निकलें , जैसे आम पना , शिकंजी , खस का शर्बत आदि। साथ में भी पानी लेकर चलें।
4. बहुत ज्यादा पसीना आया हो तो फौरन ठंडा पानी न पीएं। सादा पानी भी धीरे - धीरे करके पीएं।
5. रोजाना नहाएं और शरीर को ठंडा रखें। घर को ठंडा रखने की कोशिश करें। खस के पर्दे , कूलर आदि का इस्तेमाल करें।
क्या होता है लू लगने पर:
1. लू लगने पर शरीर में गर्मी , खुश्की , सिरदर्द , कमजोरी , शरीर टूटना , बार - बार मुंह सूखना , उलटी , चक्कर , तेज बुखार , सांस लेने में तकलीफ , दस्त और कई बार निढाल या बेहोशी जैसे लक्षण नजर आते हैं। लू लगने पर पसीना नहीं आता।
2. शरीर में गर्मी , खुश्की और थकावट महसूस होती है , शरीर टूटने लगता है और शरीर का तापमान एकदम बढ़ जाता है। अक्सर बुखार बहुत ज्यादा मसलन 105 या 106 डिग्री फॉरनहाइट तक पहुंच जाता है। यह इमरजेंसी की हालत होती है , जिसमें ब्लडप्रेशर भी लो हो जाता है और लिवर - किडनी में सोडियम पोटैशियम का संतुलन बिगड़ जाता है। ऐसे में बेहोशी भी आ सकती है। इसके अलावा , लो बीपी , ब्रेन या हार्ट स्ट्रोक की स्थिति भी बन सकती है। ठीक वक्त पर इलाज न कराया जाए तो मौत भी हो सकती है।
क्या करें:
1. बुखार 104 डिग्री से ज्यादा है तो रेक्टल ( गुदा से ) टेंपरेचर लें। इसके लिए अलग थर्मोमीटर आते हैं। इससे बॉडी के अंदरूनी तापमान का सही आकलन हो पाता है। लू लगने पर अक्सर बाहर के तापमान से ज्यादा होता है अंदरूनी तापमान।
2. इतने तेज बुखार में पैरासिटामोल ( क्रोसिन , कालपोल आदि ) टैब्लेट्स असरदार नहीं होतीं। सबसे पहले शरीर का तापमान कम करना जरूरी है। मरीज को बहते पानी के नीचे बिठा दें या उसके पूरे शरीर पर बर्फ के पानी की पट्टियां रखें। आसपास का माहौल ठंडा रखें। पंखा , कूलर और एसी चला दें। बॉडी की स्पॉन्जिंग करें , जब तक तापमान कम न जो जाए।
3. लगातार तरल और ठंडी चीजें दें , जैसे कि नीबू पानी , नारियल पानी , सत्तू का घोल , बेल का शर्बत , आम पना , राई का पानी आदि। शरीर में पानी की कमी न होने दें और ठंडी चीजें खिलाकर अंदरूनी तापमान को कम करें।
4. उसके हाथ - पैरों की हल्के हाथों से मालिश करें। तेल न लगाएं। गुलाब जल में रुई भिगोकर आंखों पर रखें। फिर भी आराम न आए तो फौरन मरीज को डॉक्टर के पास ले जाएं।
5. मरीज को बाहर का खाना न खिलाएं। घर में भी परांठा , पूड़ी - कचौड़ी आदि तला - भुना न खिलाएं। पतली खिचड़ी , दलिया जैसा हल्का खाना दे सकते हैं। जितना हो सके , ठंडी चीजें खिलाएं।
नोट : गर्मियों के बुखार को नजरअंदाज न करें। सामान्य बुखार के अलावा , हीट स्ट्रोक की आशंका तो होती है , साथ ही मच्छरों का सीजन होने की वजह से कई बार मलेरिया होने के भी चांस होते हैं।
पेट की बीमारियां:
गर्मियों में दूषित खाने और पानी के इस्तेमाल से पेट में इन्फेक्शन हो जाता है। इसे गैस्ट्रोइंटराइटिस या समर फ्लू कहते हैं। ऐसा होने पर मरीज को बार - बार उलटी , दस्त , पेट दर्द , शरीर में दर्द या बुखार हो सकता है। अगर स्टमक में इन्फेक्शन हो तो उलटी और पेट दर्द होगा। इंटेस्टाइन ( आंत ) में इन्फेक्शन हो तो दस्त और पेट दर्द होगा। इन दोनों ही स्थिति में बुखार भी हो सकता है।
डायरिया गैस्ट्रोइंटराइटिस का ही रूप है। इसमें अक्सर उलटी और दस्त दोनों होते हैं , लेकिन ऐसा भी मुमकिन है कि उलटियां न हों , पर दस्त खूब हो रहे हों। यह स्थिति खतरनाक है। आम बोल-चाल में कहें तो एक बार दस्त का मतलब है करीब एक गिलास पानी की कमी। इस तरह डीहाइट्रेशन यानी शरीर में पानी की कमी हो सकती है।
कितनी तरह का
डायरिया आमतौर पर तीन तरह का होता है : वायरल , बैक्टीरियल और प्रोटोजोअल। पहला वायरस से होता है और ज्यादातर छोटे बच्चों में होता है। यह सबसे कम खतरनाक होता है , जबकि दूसरा बैक्टीरिया और तीसरा अमीबा से होता है। ये दोनों ज्यादा खतरनाक हैं और इनमें डॉक्टर की देखरेख के बिना इलाज नहीं करना चाहिए।
1. अगर तेज बुखार हो , पेशाब कम हो रहा हो और मल के साथ खून या पस आ रहा है तो बैक्टीरियल या प्रोटोजोअल डायरिया हो सकता है। बैक्टीरियल इन्फेक्शन में ऐंटि - बायॉटिक और प्रोटोजोअल इन्फेक्शन में ऐंटि - अमेबिक दवा दी जाती है। अगर किसी बहुत ज्यादा ऐंटि - बायोटिक खाई हैं , तो उसे साथ में प्रोबायोटिक्स भी देते हैं। वैसे , दही प्रोबायोटिक्स का बेहतरीन सोर्स है।
2. वायरल डायरिया है तो आमतौर पर डरने की बात नहीं होती। मरीज को ओआरएस का घोल या नमक और चीनी की शिकंजी लगातार देते रहें। उलटी रोकने के लिए Domperidone टैब्लेट ले सकते हैं। ये मार्केट में Domstal, Dom DT आदि नाम से मिलती हैं। लूज मोशंस के लिए Racecadotril ले सकते हैं। ये Imodium, Loperamide आदि ब्रैंड नेम से मिलती हैं। पेट में मरोड़ हैं तो Maftal Spas ले सकते हैं। एक दिन में उलटी या दस्त न रुके तो डॉक्टर के पास ले जाएं। जरूरत पड़ने पर डॉक्टर आईवी ( इंट्रा - वीनस ) फ्लुइड भी देते हैं , क्योंकि पानी की ज्यादा कमी से किडनी पर भी असर पड़ सकता है।
3. लोगों में गलत धारणा है कि डायरिया के मरीज को खाना - पानी नहीं देना चाहिए क्योंकि उलटी - दस्त के जरिए सब कुछ निकल जाता है। लेकिन यह बिल्कुल गलत है। इससे खतरा बढ़ जाता है। मरीज को लगातार पतली और हल्की चीजें देते रहें , जैसे कि नारियल पानी , नींबू पानी ( हल्का नमक और चीनी मिला ), छाछ , लस्सी , दाल का पानी , ओआरएस का घोल , पतली खिचड़ी , दलिया आदि देते रहें। मरीज को सिर्फ तली - भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए।
बरतें ये सावधानियां:
1. पानी खूब पिएं लेकिन बाहर का पानी पीने से बचें। घर का साफ और उबला पानी पिएं। हैंडपंप का पानी न पिएं।
2. बासी खाने से परहेज करें। हमेशा घर की बनी ताजा खाने की चीजें इस्तेमाल करें।
3. खाने की चीजों को अच्छी तरह धोएं और अच्छी तरह पकाएं। सलाद आदि से परहेज करें या खूब अच्छी तरह धोकर खाएं।
4. खाने से पहले और बाद में साबुन से हाथ धोएं।
5. बाहर बिकने वाले कटे फल , दही भल्ले , गोल गप्पे व चटनी , सलाद , गन्ने का रस , शेक आदि पीने से बचें।
6. फ्रूट - जूस भी बाहर का तभी पिएं , जब सफाई की गारंटी हो।
7. खाने में दही का इस्तेमाल ज्यादा से ज्यादा करें , क्योंकि यह पेट को ठंडा रखने के साथ स्किन आदि के लिए भी फायदेमंद है।
8. गोभी , आलू जैसी सब्जियों के बजाय तोरी , भिंडी , लौकी आदि मौसमी सब्जियां खाएं।
9. संतरा , अंगूर , तरबूज , ककड़ी जैसे मौसमी फल खाएं।
10. नीबू पानी , आम पना , बेल या गुड़ का शरबत काफी फायदेमंद होता है।
11. गर्मी में कच्ची प्याज खाना भी लाभदायक होता है।