
सरकार व समाज की और से इस अनदेखी का शिकार हुए वर्ग प्रति अकसर बेरूखी दिखाई जाती है। अपाहिजों के प्रति लोगों का अवेसलापन तो है ही, सरकार को भी कम जिम्मेवार नही कहा जा सकता। हैरानी की बात है कि आजादी के 68 वर्ष बीत जाने के बावजूद सरकार ने अपाहिजों के आंकड़े एकत्र करने के लिए कोई ठोस कार्रवाई नही की, यहां तक कि जनगणना के समय इस संबंध में सरकार ने विकलांगों के प्रति कोई दिलचस्पी नही दिखाई दी, आखिर कुछ गैर सरकारी संस्थाओं की मांग पर वर्ष 2001 में जनगणना यह व्यवस्था की गई, लेकिन उस में भी काफी कमी पाई। निष्कर्ष के तौर पर इन आकड़ों से अनुसार देश में अंगहीनों की संख्या सिफऱ् 2.13 प्रतिशत भाव 2 करोड़ के लगभग ही है जबकि विश्व बैंक की एक टीम अनुसार भारत में अंगहीनों की संख्या 4 से 8 प्रतिशत के दरमियान है जो कि 4 से 9 करोड़ के लगभग बनती है। अंगहीनों सम्बन्धित सही आकडे़ प्राप्त नही होने के कारण इनके लिए ज़रूरी भलाई स्कीमों और योजनाएं बनाने जाने के रास्ते में रुकावट बनती है। इसी कारण इस वर्ग की भलाई के लिए उचित बजट नहीं रखा जा रहा और नियमों की व्यवस्था नहीं हो रही। निष्कर्ष के तौर पर देश के अंगहीनों को अनेकों मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। वह नौकरियों और स्वै रोज़गार स्कीमों से वंचित है और तरस के पात्र बनने को मजबूर हैं। भारत सरकार द्वारा अंगहीनों की भलाई के लिए एक व्यापक कानून अपंग व्यक्तियों के लिए (बराबर मौके, हकों की सुरक्षा और पूरी हिस्सेदारी) एक्ट 1995, 7 फरवरी 96 से लागू किया जा चुका है। इसे सख्ती से अमल में लाया जाना चाहिए।
उनको मिलने वाली पैंशन की राशि 250 रुपए से बढ़ाकर आज की महंगाई के अनुसार 3 हज़ार
रुपए समेत अन्य जरूरी सहूलीयतें उनका हक मानते हुए जारी की जाए, तो निश्चित रूप से अपंग व्यक्ति भी अन्य व्यक्तियों की तरह प्रतिभा का प्रयोग मानव जाति के कल्याण के लिए कर सकते हैं। उनको तरस की नही, सहयोग की जरूरत है।
आज अंतरराष्ट्रीय विकलांग दिवस पर अंगहीनों को दीं जा रही सहूलतों का मुलाकन कर अधिक से अधिक सहूलतें दीं जाएं, जिससे अपंग व्यक्ति सफलता पूर्वक सन्मानयोग जीवन व्यतीत कर सकें। अंगहीनों को भी अपनी, समस्याओं के हल के लिए किसी अन्य के रहमो कर्म पर निर्भर होने की बजाय खुद प्रयास कर आगे आना पड़ेगा।