क्या होती है वसीयत: मौत के बाद अपनी जायदाद के इस्तेमाल का हक किसी को सौंपने का फैसला जीते जी लेना ही वसीयत कहलाता है। दरअसल वसीयत में वसीयत करने वाला ये बताता है कि उसकी मौत के बाद उसकी जायदाद का कितना हिस्सा किसे मिलेगा।
क्यों जरूरी है वसीयत: अगर किसी ने वसीयत नहीं कराई है और उसकी मौत हो जाए तो जायदाद के बंटवारे को लेकर पारिवारिक झगड़ा होने का डर रहता है। इसलिए अपने जीते जी वसीयत करवा देनी चाहिए ताकि कोई झगड़े की गुंजाइश न रहे। साथ ही वसीयत न करवाने से प्रॉपर्टी पर किसी अनजान आदमी के कब्जा करने का अंदेशा रहता है।
किस-किस चीज की कर सकतें हैं वसीयत: आप अपनी चल संपत्ति, जैसे कैश, घरेलू सामान, गहने, बैंक में जमा रकम, पीएफ, शेयर्स, किसी कंपनी की हिस्सेदारी आदि की वसीयत कर सकते हैं। साथ ही खुद की कमाई हुई अचल संपत्ति, जैसे जमीन, मकान, दुकान, खेत आदि की भी वसीयत कर सकते हैं। वहीं जो संपति आपके नाम है, उसी की ही वसीयत की जा सकती है, अगर कोई संपति साझेदारी में है तो इसकी वसीयत नहीं हो सकती।
कब करवाएं वसीयत: अपनी नौकरी से रिटायरमेंट लेने के बाद या अपने कामों से मुक्त होने के बाद ही वसीयत करा देना अच्छा होता है। वैसे वसीयत करवाने का सबसे अच्छा वक्त 60 साल की उम्र को माना जाता है। अगर कोई शख्स कम उम्र में किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त है, तो वसीयत पहले भी कराई जा सकती है।
क्या है वसीयत करवाने का तरीका: वसीयत का कोई तय फॉर्म नहीं होता। यह सादे कागज पर भी लिख सकते हैं। अपने हाथ से लिखी वसीयत ज्यादा अच्छी रहती है। लेकिन समझने की दृष्टि से आप इसे टाइप भी करवा सकते हैं। इस दौरान जायदाद जिसके नाम कर रहे हैं, उसके बारे में साफ तौर से लिखें। उसका नाम, पिता का नाम, पता और उसके साथ अपना रिश्ता जरूर बताएं। ये किसी भी भाषा में की जा सकती है। इसमें कई बार बदलाव किया जा सकता है।
वसीयत करवाते समय क्या ध्यान रखें: कोशिश करें कि वसीयत छोटी हो और एक पेज में आ जाए। इससे बार-बार विटनेस की जरूरत नहीं पड़ेगी। एक से ज्यादा पेज में आए तो हर पेज पर दोनों गवाहों के दस्तखत करवाएं। साथ ही हर पेज पर अपने हस्ताक्षर जरुर करें। वहीं दो ऐसे लोगों को गवाह बनाएं, जो आपकी हैंडराइटिंग या आपके दस्तखत पहचानते हों। इस वसीयत को सब-रजिस्ट्रार ऑफिस जाकर रजिस्टर्ड कराएं और रजिस्ट्रार के रजिस्टर में इसकी एंट्री भी करवाएं और हो सकते तो वीडियो रिकॉर्डिंग भी करवा लें।
गवाह या वसीयत करने वाली की मौत होने पर क्या करें?: अगर वसीयत करने वाले से पहले किसी गवाह की मौत हो जाए तो वसीयत दोबारा बनवानी चाहिए। दोबारा वसीयत बनवाते समय पहली वसीयत को कैंसल करने का जिक्र जरूर करें। वहीं अगर वसीयत खो जाए तो भी दोबारा वसीयत करवाएं और बेहतर है कि उसमें थोड़ा फेरबदल करें, ताकि पहली वसीयत कैंसल मान ली जाए।
वैसे तो वसीयत आप स्वयं, वकील या सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर की मदद से बना सकते हैं, लेकिन यदि वसीयत को चुनौती देने की संभावना है या वारिसों की टैक्स प्लानिंग करना चाहते हैं तो एस्टेट प्लानिंग में महारथ हासिल सर्टिफाइड फाइनेंशियल प्लानर से सलाह जरूर लेना चाहिए।