महात्मा गांधी को क्या वाक़ई ग़लत आंकते थे भीम राव आंबेडकर? ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

Search

Type your search keyword, and press enter


ads

महात्मा गांधी को क्या वाक़ई ग़लत आंकते थे भीम राव आंबेडकर?

    


26 फ़रवरी, 1955 को बाबा साहब भीम राव आंबेडकर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में महात्मा गांधी के व्यक्तित्व की तीखी आलोचना की थी.
आंबेडकर का महात्मा गांधी के प्रति नज़रिया तब और अब, दोनों वक़्तों में बहस का विषय रहा है. इंटरनेट की वजह से आज हम उस इंटरव्यू को सुन पा रहे हैं.
डॉक्टर आंबेडकर की रिकॉर्डिंग बहुत कम है, ऐसे में बीबीसी का इंटरव्यू एक महत्वपूर्ण आर्काइव है.
इस इंटरव्यू में डॉक्टर आंबेडकर ने गांधी के बारे में कई तीखी बातें कही हैं. गांधी को ख़ारिज करने वालों के लिए ये इंटरव्यू एक संगीत की तरह है, जो उनके कानों को अच्छा लगेगा. हालांकि ये उन लोगों को चकित नहीं करेगा जो गांधी-आंबेडकर के रिश्तों के बारे में जानते हैं.
इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने अपनी नई किताब 'गांधीः द इयर्स दैट चेंज्ड द वर्ल्ड' ने इस इंटरव्यू का यह कहते हुए जिक्र किया है कि "1930 और 1940 के दशक में लिखे उनकी विवादित रचनाओं में भी उन्होंने (डॉक्टर आंबेडकर) गांधी की निंदा की है."
63 साल पहले की गई उनकी आलोचनाओं में उन्होंने अपनी राय, ऐतिहासिक दावों और विश्लेषण को शामिल किया था.

गांधी को ऐतिहासिक शख़्सियत के रूप में याद किया जाता है

छह दशक बाद कड़वाहट और ख़ारिज करने के दृष्टिकोण भरे उस इंटरव्यू को दोबारा पढ़ना ज़रूरी है.
आंबेडकर के मुताबिक, "गांधी भारत के इतिहास में एक प्रकरण थे, वो कभी एक युग-निर्माता नहीं थे. गांधी पहले से ही इस देश के लोगों के ज़ेहन से ग़ायब हो चुके हैं. उनकी याद इसी कारण आती है कि कांग्रेस पार्टी उनके जन्मदिन या उनके जीवन से जुड़े किसी अन्य दिन सालाना छुट्टी देती है. हर साल सप्ताह में सात दिनों तक एक उत्सव मनाया जाता है. स्वाभाविक रूप से लोगों की स्मृति को पुनर्जीवित किया जाता है."
गांधी एक युग निर्माता थे या नहीं, यह एक खुला सवाल है और इसका सही जवाब पाना और उसे सभी के लिए स्वीकार करना मुश्किल है.
यह तब और मुश्किल है जब गांधी को इस दुनिया से गए हुए महज सात दशक हुए हैं. और जहां तक बात रही छुट्टियों के जरिए उन्हें लोगों की स्मृति में बनाए रखने का तो यह कल की बात है. गांधी आज भी जिंदा हैं और हम उन्हें आने वाले समय में भी याद रखेंगे.( हम गांधी को एक ऐतिहासिक शख़्सियत की बात कर रहे हैं न कि उनके विचारों की)

एक ही दृष्टिकोण से गांधी को देखा

आंबेडकर ने कहा कि वो गांधी से हमेशा एक प्रतिद्वंद्वी की हैसियत से मिलते थे. इसलिए वो गांधी को अन्य लोगों की तुलना में बेहतर जानते थे.
आंबेडकर ने इंटरव्यू मे कहा था, "आमतौर पर भक्तों के रूप में उनके पास जाने पर कुछ नहीं दिखता, सिवाय बाहरी आवरण के, जो उन्होंने महात्मा के रूप में ओढ़ रखा था. लेकिन मैंने उन्हें एक इंसान की हैसियत से देखा, उनके अंदर के नंगे आदमी को देखा, लिहाज़ा मैं कह सकता हूं कि जो लोग उनसे जुड़े थे, मैं उनके मुक़ाबले गांधी को बेहतर समझता हूं."
आंबेडकर के नज़रिए से ये दावे शायद सही हों, पर उनके बयान से यह स्पष्ट है कि उन्होंने गांधी को केवल एक दृष्टिकोण और एक तरह के नज़रिए से ही देखा था और इसी की बदौलत उन्होंने गांधी के बारे में अपनी राय बनाई थी.
राजनीतिक ज़रूरतों के लिए उन्होंने गांधी के लिए शालीनता और कोमलता का भी प्रदर्शन कई बार किया. जैसे, 6 सितंबर 1954 को डॉक्टर आंबेडकर ने नमक पर टैक्स लगाने की सलाह दी और इसका नाम 'गांधी निधि' रखने का सुझाव दिया. वो चाहते थे कि इसमें जमा राशि का खर्च दलितों के उत्थान के लिए किया जाए.
उन्होंने कहा था, "मेरे मन में गांधीजी के प्रति आदर है. आप जानते हैं कि चाहे कुछ भी हो जाए, गांधीजी को पिछड़ी जाति के लोग अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारे थे. इसलिए वह स्वर्ग में से भी आशीर्वाद देंगे."

गांधी की 'दोहरी भूमिका' एक ग़लतफहमी

आंबेडकर ने इंटरव्यू में गांधी पर आरोप लगाया है, "गांधी हर समय दोहरी भूमिका निभाते थे. उन्होंने युवा भारत के सामने दो अख़बार निकाले. पहला 'हरिजन' अंग्रेज़ी में, और गुजरात में उन्होंने एक और अख़बार निकाला जिसे आप 'दीनबंधु' या इसी प्रकार का कुछ कहते हैं. अंग्रेज़ी समाचार पत्र में उन्होंने ख़ुद को जाति व्यवस्था और अस्पृश्यता का विरोधी और ख़ुद को लोकतांत्रिक बताया. लेकिन अगर आप गुजराती पत्रिका को पढ़ते हैं तो आप उन्हें अधिक रूढ़िवादी व्यक्ति के रूप में देखेंगे. वो जाति व्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म या सभी रूढ़िवादी सिद्धांतों के समर्थक थे. दरअसल किसी को गांधी के 'हरिजन' में दिए गए बयान और गुजराती अख़बार में दिए उनके बयानों का तुलनात्मक अध्ययन करके उनकी जीवनी लिखनी चाहिए."
इस इंटरव्यू के बाद के सालों में बहुत कुछ हुआ. गांधी के सभी लेख मूल रूप में आज उपलब्ध हैं. इनके अनुवाद भी किए गए हैं, जो 100 खंडों में हमारे बीच मौजूद हैं.
किसी के लिए आज गांधी के गुजराती लेखों को अंग्रेज़ी में प्राप्त करना आसान है. गांधी की विरासत को समेटे वेबसाइट पोर्टल ( gandhiheritageportal.com) पर भी हरिजन (अंग्रेजी), 'हरिजन सेवक' (हिंदी) और 'हरिजन बंधु' (गुजरात) के लगभग सभी अंक उपलब्ध हैं.
कोई भी आसानी से उनके गुजराती और अंग्रेज़ी के लेखों की तुलना कर सकता है और अपनी ग़लतफहमी को दूर कर सकता है.
इन लेखों के अध्ययन से यह स्पष्ट है कि गांधी ने अपने अंग्रेज़ी लेखों में जाति-व्यवस्था का जोरदार समर्थन किया और गुजराती लेखों में सख्त शब्दों में छूआछूत का विरोध किया है.
गांधी को ख़ारिज नहीं किया जा सकता
डॉक्टर आंबेडकर ने छूआछूत के उन्मूलन के साथ समान अवसर और गरिमा पर जोर दिया था और दावा किया कि गांधी इसके विरोधी थे.
उनके मुताबिक गांधी छूआछूत की बात सिर्फ़ इसलिए करते थे ताकि अस्पृश्यों को कांग्रेस के साथ जोड़ सकें. वो चाहते थे कि अस्पृश्य स्वराज की उनकी अवधारणा का विरोध न करें.
गांधी एक कट्टरपंथी सुधारक नहीं थे और उन्होंने ज्योतिराव फूले या फिर डॉक्टर आंबेडकर के तरीके से जाति व्यवस्था को खत्म करने का प्रयास नहीं किया.
फिर भी, कांग्रेस या राष्ट्रीय राजनीति में उतरने से पहले गांधी ने 1915 में अपने आश्रम में एक दलित परिवार को रहने दिया. उनके इस फ़ैसले का काफी विरोध हुआ और आश्रम बंद होने की संभावना बढ़ने लगी थी, लेकिन वो अपने फैसले से पलटे नहीं.
ऐसे कई उदाहरण हैं. और अगर बात की जाए दलित अधिकारियों की तो उन्होंने अपने कैबिनेट में जगजीवन राम और खुद डॉक्टर आंबेडकर को जगह दी थी.
डॉक्टर आंबेडकर ने सही कहा था कि अंग्रेजों ने भारत को आज़ादी देने पर सहमति गांधी के आंदोलनों की वजह से नहीं बल्कि अन्य दूसरे कारणों से दी थी.
गांधी और आंबेडकर के बीच दलितों के लिए अलग मतदाता सूची और पूना पैक्ट विवाद का मुद्दा था. आंबेडकर का दावा भी सही था. मुंबई इलाक़े में डॉक्टर आंबेडकर की पार्टी के समर्थित 17 में से 15 उम्मीदवारों ने आरक्षित सीट पर जीत हासिल की थी. बाकी अन्य 151 आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने आधी से ज्यादा सीटों पर जीत हासिल की थी.
डॉक्टर आंबेडकर ने जो कुछ भी इंटरव्यू में कहा है, उसके आधार पर वर्तमान समय में गांधी को खारिज नहीं किया जा सकता है और यह सही भी नहीं है.