छह दिसंबर 1992- शौर्य दिवस या काला दिन? उस दिन सिर्फ मस्ज़िद ही नहीं और भी बहुत कुछ टूटा था! ~ Shamsher ALI Siddiquee

Shamsher ALI Siddiquee

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छह दिसंबर 1992- शौर्य दिवस या काला दिन? उस दिन सिर्फ मस्ज़िद ही नहीं और भी बहुत कुछ टूटा था!

    


छ: दिसंबर 1992 शौर्य दिवस या काला दिन? अयोध्या में तहजीब के मर जाने की कहानी?

 एक आम इंसाफ और अमन पसंद हिन्दुस्तानी की हैसियत से जब इस सवाल का जवाब ढूँढने की कोशिश करता हूँ तो कुछ और सवाल ज़ेहन में उठते हैं, जैसे:
1- हमारी जानकारी के अनुसार गोस्वामी तुलसीदास जी ने महाराजा अकबर के काल में राम चरित्र मानस (रामायण) की रचना की। उनके इस पुनीत कार्य में बादशाह द्वारा विघ्न डाले जाने का कहीं कोई वर्णन नहीं मिलता। आज भारत में तुलसीदास जी की रामायण ही ज्यादा लोकप्रिय है।
2- अब तो तुलसी भी गलत लगने लगे हैं जो 1528 के आसपास ही जन्मे थे। लोग कहते हैं कि 1528 में ही बाबर ने राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनवाई। तुलसी ने तो देखा या सुना होगा उस बात को? बाबर राम के जन्म स्थल को तोड़ रहा था और तुलसी लिख रहे थे “मांग के खाइबो मसीत (मस्जिद) में सोइबो”। और फिर उन्होंने रामायण लिखा डाली। राम मंदिर के टूटने का और बाबरी मस्जिद बनने का क्या तुलसी को जरा भी अफसोस न रहा होगा? मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जीवन की हर छोटी बड़ी घटना को लिपिबध्द करने वाले तुलसी दास जी ने रामायण में रामजन्म भूमि पर आक्रमण(?) की इतनी बड़ी घटना को लिपिबध्द क्यों नहीं किया?
3- क्या अयोध्या सिर्फ हमारे हिन्दु भाईयों के लिये ही आस्था का केन्द्र है? मुसलमानों के लिये “हज़रत शीश पैगम्बर की समाधि” के कारण आस्था केन्द्र नहीं ?
4- कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे, वहीं खेले कूदे बड़े हुए। बनवास भेजे गए। लौट कर आए तो वहां राज भी किया। उनकी जिंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया। जहां खेले, वहां गुलेला मंदिर है। जहां पढ़ाई की वहां वशिष्ठ मंदिर हैं। जहां बैठकर राज किया वहां मंदिर है। जहां खाना खाया वहां सीता रसोई है। जहां भरत रहे वहां मंदिर है। हनुमान मंदिर है। कोप भवन है। सुमित्रा मंदिर है। दशरथ भवन है। ऐसे बीसीयों मंदिर हैं और इन सबकी उम्र 400-500 साल है। यानी ये मंदिर तब बने जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा। अजीब है न! कैसे बनने दिए होंगे मुसलमानों ने ये मंदिर! उन्हें तो मंदिर तोड़ने के लिए याद किया जाता है? उनके रहते एक पूरा शहर मंदिरों में तब्दील होता रहा और उन्होंने कुछ नहीं किया। कैसे अताताई थे वे, जो मंदिरों के लिए जमीन दे रहे थे?
5- शायद वे लोग झूठे होंगे जो बताते हैं कि जहां गुलेला मंदिर बनना था उसके लिए जमीन मुसलमान शासकों ने ही दी? दिगंबर अखाड़े में रखा वह दस्तावेज भी गलत ही होगा जिसमें लिखा है कि मुसलमान राजाओं ने मंदिरों के बनाने के लिए 500 बीघा जमीन दी? निर्मोही अखाड़े के लिए नवाब सिराजुदौला के जमीन देने की बात भी सच नहीं ही होगी? सच तो बस बाबर है और उसकी बनवाई बाबरी मस्जिद?
6- अयोध्या में सच और झूठ अपने मायने खो चुके हैं। मुसलमान पांच पीढ़ी से वहां फूलों की खेती कर रहे हैं। उनके फूल सब मंदिरों पर उनमें बसे देवताओं पर, राम पर चढ़ते रहे। मुसलमान वहां खड़ाऊं बनाने के पेशे में जाने कब से हैं। ऋषि मुनि, संन्यासी, राम भक्त सब मुसलमानों की बनाई खड़ाऊं पहनते रहे। सुंदर भवन मंदिर का सारा प्रबंध चार दशक तक एक मुसलमान के हाथों में रहा। 1949 में इसकी कमान संभालने वाले मुन्नू मियां 23 दिसंबर 1992 तक इसके मैनेजर रहे। जब कभी लोग कम होते और आरती के वक्त मुन्नू मियां खुद खड़ताल बजाने खड़े हो जाते तब क्या वह सोचते होंगे कि अयोध्या का सच क्या है और झूठ क्या?
7- अग्रवालों के बनवाए एक मंदिर की हर ईंट पर 786 लिखा है। उसके लिए सारी ईंटें राजा हुसैन अली खां ने दीं. किसे सच मानें? क्या मंदिर बनवाने वाले वे अग्रवाल सनकी थे या दीवाना था वह हुसैन अली खां जो मंदिर के लिए ईंटें दे रहा था? इस मंदिर में दुआ के लिए उठने वाले हाथ हिंदू या मुसलमान किसके हों, पहचाना ही नहीं जाता। सब आते हैं। एक नंबर 786 ने इस मंदिर को सबका बना दिया।
8- शाश्वत सत्य है कि सुबूत मुजरिम मिटाता है, इस विवाद के सुबूत किसने और क्यों मिटाए?
9- देश के लोकतंत्र, संविधान, न्यायपालिका, कार्यपालिका आदि संस्थानों के साथ विश्वास्घात किसने किया? इनकी धज्जियाँ उड़ाना "काला दिन" क्यों नहीं?
10- एक खस्ताहाल इमारत को शासन और प्रशासन के संरक्षण ज़मींदोज़ कर देना,किस प्रकार के शौर्य की श्रेणी में आता है?
11- पिछले तैइस वर्षों से तथाकथित रामज़ादों की करतूत के कारण ही मर्यादा पुरुषोत्तम राम तम्बू में विराजमान हैं और खराब तम्बू को बदलने का निर्णय भी न्यायालय द्वारा लिया जा रहा है। आस्था के नाम पर देश के संविधान, न्यायपालिका तथा अन्य संवैधानिक संस्थाओं को नकारने वालों की आस्था अब कहाँ चली गयी है?
12- राम जी की इस बदहाली के ज़िम्मेदार और सत्ता प्राप्त कर उनसे विश्वासघात करने वाले क्या हैं?
13- क्या बस छह दिसंबर 1992 ही सच है, कौन जाने? छह दिसंबर 1992 के बाद सरकार ने अयोध्या के ज्यादातर मंदिरों को अधिग्रहण में ले लिया। वहां ताले पड़ गए। आरती बंद हो गई। लोगों का आना जाना बंद हो गया। बंद दरवाजों के पीछे बैठे देवी देवता क्या कोसते नहीं होंगे, कभी उन्हें जो एक गुंबद पर चढ़कर राम को छू लेने की कोशिश कर रहे थे? सूने पड़े हनुमान मंदिर या सीता रसोई में उस खून की गंध नहीं आती होगी, जो राम के नाम पर अयोध्या और भारत में बहाया गया? अयोध्या एक शहर के मसले में बदल जाने की कहानी है. अयोध्या एक तहजीब के मर जाने की कहानी है।
14- प्यारे देश वासियो, राममन्दिर अयोध्या में नहीं तो कहाँ बनेगा? लेकिन "लत्ते को सांप" बनाकर देश और समाज के सामने जो गंभीर प्रश्न खड़े कर दिए गये हैं, उनके सही उत्तर तो ढूँढने ही होंगे। तभी तथाकथित रामज़ादों और (ह)रामज़ादों का सही चेहरा सामने आयेगा। 
शीर्षस्थ उपन्यासकार स्वर्गीय कमलेश्वर के सन् 2000 में प्रकाशित बहुचर्चित उपन्यास ‘कितने पाकिस्तान’ की चर्चा करना समीचीन होगा,  जिसमें तथ्यों के हवाला देते हुए बताया गया है कि अयोध्या में न कभी बाबरी मस्जिद नाम की मस्जिद थी और न ही राम मंदिर।
कहने का मतलब अयोध्या में जिस विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद को लेकर सन् 1949 से देश में विवाद और दंगे-फ़साद हो रहे हैं, जिसके चलते लाखों हिंदू और मुसलमान आज भी एक दूसरे के दुश्मन बने हुए हैं, वहां न बाबरी मस्जिद थी और न ही राम मंदिर। क़िताब का सारांश यह है कि भारत में हिंदू और मुसलमानों में विवाद की बीज अंग्रेज़ों ने एक साज़िश के तहत बोया था, जिसकी परिणति सन् 1947 में देश के विभाजन के रूप में हुई थी।
कमलेश्वर ने इस उपन्यास पर काम रामजन्मभूमि आंदोलन शुरू होने के बाद किया था और 10-12 साल के रिसर्च, स्टडी और ऐतिहासिक तथ्यों की छनबीन के बाद ‘कितने पाकिस्तान’ को लिखा है। उन्होंने क़िताब में बताने की कोशिश की है कि वहां बाबरी मस्जिद या राम मंदिर नहीं था।
उपन्यास को नामवर सिंह, विष्णु प्रभाकर, अमृता प्रीतम, राजेंद्र यादव, हिमांशु जोशी और अभिमन्यु अनत जैसे साहित्यकारों-लेखकों ने विश्व-उपन्यास कहते हुए उसकी जमकर तारीफ की थी। उस समय क़रीब-क़रीब हर प्रमुख हिंदी ही नहीं अंग्रेज़ी अख़बार में इसकी समीक्षा भी छपी थी।
अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में क़िताब को साहित्य अकादमी पुरस्कार दिया गया था। उस समय एचआरडी मिनिस्टर हिंदुत्व और राम मंदिर आंदोलन के पैरोकार डॉ. मुरली मनोहर जोशी थे। ज़ाहिर है अगर कमलेश्वर के निष्कर्ष से सरकार को किसी भी तरह की आपत्ति होती, तो कम से कम क़िताब को सरकारी पुरस्कार नहीं दिया जाता। अमूमन यह माना जाता है कि कोई सरकार किसी क़िताब को पुरस्कृत तब करती है जब वह सरकार क़िताब में लिखी हर बात से सहमत होती है।
कमलेश्वर ने बड़ी ख़ूबसूरती से समय और किरदार की सीमाओं से परे ‘कितने पाकिस्तान’ की रचना की है। मुख्य किरदार अदीब यानी लेखक ‘समय की अदालत’ लगाता है, जिसमें महात्मा गांधी, मोहम्मद अली जिन्ना, जवाहरलाल नेहरू, अली बंधु, लार्ड माउंटबेटन, बाबर, हुमायूं, औरंगजेब, कबीर जैसे सैकड़ों ऐतिहासिक किरदारों ने ख़ुद अपने-अपने बयान दर्ज कराए हैं।
यही नहीं अदालत में कई दर्जन विश्व-प्रसिद्ध इतिहासकारों ने भी हर विवादास्पद घटनाओं पर अपना बयान दिया है। सभी बयानात इतिहास, अंग्रेज़ों द्वारा तैयार गजेटियर, पुरातात्विक दस्तावेज़ों और नामचीन हस्तियों की आत्मकथाओं में उपलब्ध जानकारियों पर आधारित हैं। इनकी प्रमाणिकता पर संदेह नहीं किया जा सकता।
‘कितने पाकिस्तान’ में कई चैप्टर अयोध्या विवाद को समर्पित हैं। उपन्यास के मुताबिक अयोध्या में मस्जिद बाबर के भारत पर आक्रमण करने से पहले ही मौजूद थी। बाबर 20 अप्रैल 1526 को इब्राहिम का सिर क़लम करके आगरा की गद्दी पर बैठा था और हफ़्ते भर बाद 27 अप्रैल 1526 को उसके नाम का ख़ुतबा पढ़ा गया।
क़िताब के मुताबिक, अयोध्या की मस्जिद (बाबरी मस्जिद नहीं)  में एक शिलालेख बनाया गया था, जिसका जिक्र ब्रिटिश अफ़सर ए फ़्यूहरर ने कई जगह किया है। फ़्यूहरर ने 1889 में आख़िरी बार उस शिलालेख को पढ़ा था, जिसे बाद में अंग्रेज़ों ने नष्ट करवा दिया। शिलालेख के मुताबिक अयोध्या में मस्जिद का निर्माण इब्राहिम लोदी के शासन में उसी के आदेश पर 1523 में शुरू हुआ और 1524 में मस्जिद पूरी हुई।
इतना ही नहीं, शिलालेख के मुताबिक, मस्जिद किसी मंदिर को तोड़कर नहीं, बल्क़ि ख़ाली जगह पर बनाई गई थी। इसका यह भी मतलब होता है कि अगर विवादित स्थल पर राम या किसी दूसरे देवता का मंदिर था, जिसके अवशेष खुदाई करने वालों को मिले हैं, तो वह 14वीं सदी से पहले नेस्तनाबूद कर दिया गया होगा या ख़ुद ही नष्ट हो गया होगा। उसे कम से कम बाबर या मीरबाक़ी ने नहीं तोड़वाया जैसा कि इतिहासकारों का एक बड़ा तबक़ा और हिंदूवादी नेता दावा करते आ रहे हैं।
दरअसल, ‘कितने पाकिस्तान’ के मुताबिक लोदी के शिलालेख को नष्ट करने में अंग्रेज़ अफ़सर एचआर नेविल ने अहम भूमिका निभाई। सारी ख़ुराफ़ात और साज़िश का सूत्राधार नेविल ही था। बाद में उसने ही आधिकारिक तौर पर फ़ैज़ाबाद का गजेटियर तैयार किया था। नेविल की साज़िश में एक और दूसरा गोरा अफ़सर कनिंघम भी शामिल था, जिसे ब्रिटिश हुक़ूमत ने हिंदुस्तान की पुरानी इमारतों की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी दी थी। कनिंघम ने बाद में लखनऊ का गजेटियर तैयार किया था।
क़िताब के मुताबिक दोनों अफ़सरों ने धोखा और साज़िश के तहत गजेटियर में दर्ज किया कि 1528 में अप्रैल से सितंबर के बीच एक हफ़्ते के लिए बाबर अयोध्या आया और राम मंदिर को तोड़कर वहां बाबरी मस्जिद नींव रखी। यह भी लिखा कि अयोध्या पर हमले के दौरान लड़ाई में बाबर की सेना ने एक लाख चौहत्तर हज़ार हिंदुओं को मार दिया।
फ़ैज़ाबाद के गजेटियर में आज देखें तो मिलेगा कि 1869 में, बाबर के कथित आक्रमण के क़रीब साढ़े तीन सौ साल बाद, अयोध्या-फ़ैज़ाबाद की आबादी महज़ दस हज़ार थी, जो 1881 में बढ़कर साढ़े ग्यारह हज़ार हो गई। सवाल उठता है कि जिस शहर की आबादी इतनी कम थी वहां बाबर या उसकी सेना ने इतने लोगों की हत्या कैसे की या फिर इतने मरने वाले कहां से आ गए? यहीं तथ्य बाबरी मस्जिद के बारे में देश में बनी मौजूदा धारणा पर गंभीर संदेह होता है।
हैरान करने वाली बात है कि दोनों अफ़सरों नेविल और कनिंघम ने सोची-समझी नीति के तहत बाबर की डायरी बाबरनामा, जिसमें वह रोज़ाना अपनी गतिविधियां दर्ज करता था, के 3 अप्रैल 1528 से 17 सितंबर 1528 के बीच 20 से ज़्यादा पन्ने ग़ायब कर दिए और बाबरनामा में लिखे ‘अवध’ यानी‘औध’ को ‘अयोध्या’ कर दिया। मगर मस्जिद के शिलालेख के फ़्यूहरर के अनुवाद को ग़ायब करना ये दोनों अफ़सर भूल गए। वह अनुवाद आज भी आर्कियोलॉजीकल इंडिया की फ़ाइल में महफ़ूज़ है और ब्रितानी साज़िश को बेनकाब करता है।
इतना ही नहीं बाबर के मूवमेंट की जानकारी बाबरनामा की तरह हुमायूंनामा में भी दर्ज है। लिहाज़ा, बाबरनामा के ग़ायब किए गए पन्ने से नष्ट सूचनाएं हुमायूंनामा से ली जा सकती हैं। हुमायूंनामा के मुताबिक 1528 में बाबर अफ़गान हमलावरों का पीछा करता हुआ सरयू नदी तक ज़रूर गया था,  लेकिन उसी समय उसे अपनी बीवी बेग़म मेहम और अन्य खातूनों और बेटी बेग़म ग़ुलबदन समेत पूरे परिवार के काबुल से अलीगढ़ पहुंचने की इत्तिला मिली।
लंबे समय से युद्ध में उलझने की वजह से बाबर अपने परिवार से मिल नहीं पाया था, इसलिए वह फौरन अलीगढ़ रवाना हो गया और पत्नी-बेटी और परिवार के बाक़ी सदस्यों को लेकर आगरा आया। 10 जुलाई तक बाबर उनके साथ आगरा में ही रहा। उसके बाद बाबर परिवार के साथ धौलपुर चला गया। वहां से सिकरी पहुंचा, जहां सितंबर के दूसरे हफ़्ते तक रहा।
क़िताब के मुताबिक, गोस्वामी तुलसीदास से पहले जंबूद्वीप (तब भारत या हिंदुस्तान था ही नहीं सो इस भूखंड को जंबूद्वीप कहा जाता था) के हिंदू धर्म के अनुयायी नटखट कृष्ण, शंकर जी और हनुमान जी की पूजा किया करते थे। कहीं-कहीं गणेश की पूजा होती थी। तब राम का उतना क्रेज नहीं था। तुलसीदास सन् 1498 में पैदा हुए थे और बाबर के कार्यकाल तक वह किशोर ही थे।
वहीं पत्नी के दीवाने तुलसीदास अपनी मायावी दुनिया में मशगूल थे। उन्‍होंने रामचरित मानस की रचना बुढापे में की, जो हुमायूं और अकबर का दौर था। राम का महिमामंडन तो तुलसीदास ने किया और हिंदी (अवधी) में रामचरित मानस रचकर राम को हिंदुओं के घर-घर स्थापित कर दिया। रामचरित मानस के प्रचलन में आने के बाद ही राम हिंदुओं आराध्‍य हुए।
‘कितने पाकिस्तान’ में कमलेश्वर ने ऐतिहासिक तथ्यों का सहारा लेकर दावा किया है कि 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ चौकन्ने हो गए थे और ब्रिटिश इंडिया की नई पॉलिसी बनी, जिसके मुताबिक अंग्रेज़ों ने तय किया कि अगर इस उपमहाद्वीप पर लंबे समय तक शासन करना है, तो इसे धर्म के आधार पर विभाजित करना होगा। ताकि हिंदू और मुसलमान एक दूसरे से ही लड़ते रहें और उनका ध्यान आज़ादी जैसे मुद्दों पर न जाए। इसी नीति के तहत लोदी की मस्जिद ‘बाबरी मस्जिद’ बना दी गई और उसे ‘राम मंदिर’ से जोड़कर ऐसा विवाद खड़ा कर दिया जो कभी हल ही नहीं हो। अंग्रेज़ निश्चित रूप से सफल रहे क्योंकि उस वक़्त पैदा की गई नफ़रत ही अंततः देश के विभाजन की मुख्य वजह बनी।

बाबरी मस्जिद विध्वंस के पांच 'सूत्रधार'

लाल कृष्ण आडवाणी

सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी नेता लाल कृष्ण आडवाणी अयोध्या में विवादित बाबरी मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' के मुख्य सूत्रधार हैं जो अक्टूबर 1990 में शुरू होकर दिसंबर 1992 तक चला बताया गया है.
अभियोजन पक्ष का तर्क है कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि ढांचे का विवाद काफी समय से चला आ रहा है, जो अदालत में लंबित है. हिंदुओं के अनुसार राम जन्मभूमि पर मीर बाकी ने मस्जिद का निर्माण किया था.
विश्व हिंदू परिषद ने अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिरों को मुक्त करने का अभियान चलाया और इसके अंतर्गत लाल कृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा की.
शिव सेना नेता बाल ठाकरे ने मुंबई के दादर में आडवाणी का स्वागत किया. उसी दिन लाल कृष्ण आडवाणी ने पंचवटी में घोषणा की थी कि बाबरी मस्जिद कभी भी मस्जिद नही रही और हिंदू संगठन प्रत्येक दशा में अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए दृढ संकल्प हैं. ठाकरे ने इस कार्य में साथ देने का वादा किया.
चार्जशीट के अनुसार 1991 में उत्तर प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस योजना मे सक्रिय साथ दिया.
पांच दिसंबर 1992 को अयोध्या मे भाजपा नेता विनय कटियार के घर पर एक गोपनीय बैठक हुई, जिसमें विवादित ढांचे को गिराने का अंतिम निर्णय लिया गया.
आडवाणी ने छह दिसंबर को कहा था, "आज कारसेवा का आखिरी दिन है. कारसेवक आज आखिरी बार कारसेवा करेंगे."
जब उन्हें पता चला कि केन्द्रीय बल फैजाबाद से अयोध्या आ रहा है तब उन्होंने जनता से राष्ट्रीय राजमार्ग रोकने को कहा. अभियोजन पक्ष का यह भी कहना है कि आडवाणी ने कल्याण सिंह को फोन पर कहा कि वे विवादित ढांचा पूर्ण रूप से गिराए जाने तक अपना त्यागपत्र न दें.
आडवाणी ने राम कथा अकुंज के मंच से चिल्लाकर कहा कि "जो कार सेवक शहीद होने आए हैं, उन्हें शहीद होने दिया जाए."
आडवाणी पर आरोप है कि उन्होंने यह भी कहा कि, “मंदिर बनाना है, मंदिर बनाकर जाएंगे. हिंदू राष्ट्र बनाएंगे.”
स्थानीय प्रशासन ने विवादित ढांचा गिराए जाने से रोकने का कोई प्रयास नही किया इसलिए अभियोजन के अनुसार तत्कालीन जिला जिला मजिस्ट्रेट आरएन श्रीवास्तव और पुलिस अधीक्षक डीबी राय इस 'षड्यंत्र' में शामिल थे. इनमें से राय का अब निधन हो चुका है.
लेकिन हाई कोर्ट के आदेश के तहत आडवाणी पर फिलहाल बाबरी मस्जिद गिराने के षड्यंत्र में शामिल होने का पहला मुकदमा नही चल रहा है.
आडवाणी तथा उनके सात अन्य सहयोगियों पर रायबरेली की अदालत में केवल मुस्लिम समुदाय के खिलाफ विद्वेष भड़काने वाल भाषण देकर कारसेवकों को उकसाने का आरोप है, जिसके फलस्वरूप मस्जिद गिरा दी गई.
आडवाणी और उनके साथियों ने अदालत में सभी आरोपों से इनकार किया है.

कल्याण सिंह

कल्याण सिंह उन तेरह लोगों में हैं, जिन पर मूल चार्जशीट में मस्जिद गिराने के 'षड्यंत्र' में शामिल होने का आरोप है, लेकिन कुछ तकनीकी कारणों से अभी मुकदमा नही चल रहा है.
सीबीआई की मूल चार्जशीट के मुताबिक़ 1991 में मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद कल्याण सिंह ने डॉ. मुरली मनोहर जोशी और अन्य नेताओं के साथ अयोध्या जाकर शपथ ली थी कि विवादित स्थान पर ही मंदिर का निर्माण होगा. उन्होंने नारा लगाया , “राम लला हम आए हैं, मंदिर यहीं बनाएंगे.”
केंद्र सरकार ने 195 कंपनी केन्द्रीय पैरा मिलिटरी फ़ोर्स कानून व्यवस्था में मदद के लिए भेजी, लेकिन भाजपा सरकार ने उसका उपयोग नही किया. पांच दिसंबर को उत्तर प्रदेश सरकार के प्रमुख सचिव गृह ने केन्द्रीय बल का प्रयोग करने का सुझाव दिया, लेकिन कल्याण सिंह इससे सहमत नही हुए.
कल्याण सिंह ने मस्जिद की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में दिए गए आश्वासन का पालन नही किया, जबकि उन्होंने संविधान और देश के कानून की सुरक्षा की शपथ ली थी.
कल्याण सिंह घटना के समय अयोध्या में उपस्थित नही थे, फिर भी उन्हें षड्यंत्र में शामिल बताया गया.
चार्जशीट के अनुसार कल्याण सिंह ने छह दिसंबर के बाद अपने बयानों में स्वीकार किया कि गोली न चलाने का आदेश उन्होंने ही जारी किया था और उसी वजह से प्रशासन का कोई अधिकारी दोषी नही माना जाएगा.
कल्याण सिंह ने सभी आरोपों से इनकार किया है.

अशोक सिंघल

विश्व हिंदू परिषद के नेता अशोक सिंघल अयोध्या के विवादित स्थल पर राम जन्म भूमि मंदिर निर्माण आंदोलन के प्रमुख स्तंभ रहे हैं.
चार्जशीट के अनुसार अशोक सिंघल 20 नवंबर 1992 को बाल ठाकरे से मिले और उन्हें कारसेवा में भाग लेने का निमंत्रण दिया.
चार दिसंबर 1992 को बाल ठाकरे ने शिव सैनिकों को अयोध्या जाने का आदेश दिया.
शिव सेना नेता जय भान सिंह पवैया ने अशोक सिंघल से चंबल घाटी में प्रशिक्षित मौत दस्ता तैनात करने के लिए कहा.
अशोक सिंघल ने यह भी कहा था कि छह दिसंबर की कारसेवा में मस्जिद के ऊपर मीर बाक़ी का शिलालेख हटाया जाएगा, क्योंकि यही अकेला चिन्ह मस्जिद के संबंध में है.
दूसरे दिन पांच दिसंबर को अशोक सिंघल ने प्रेस कांफ्रेंस में कहा था "जो भी मंदिर निर्माण में बाधा आए गी उसको हम दूर कर देंगे. कार सेवा केवल भजन कीर्तन के लिए नही है बल्कि मंदिर के निर्माण कार्य को प्रारम्भ करने के लिए है."
चार्जशीट में अशोक सिंघल पर आरोप है कि वो छह दिसंबर को राम कथा कुंज पर बने मंच से अन्य अभियुक्तों के साथ- साथ कारसेवकों से नारा लगवा रहे थे कि "राम लला हम आए हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे. एक धक्का और दो बाबरी मस्जिद तोड़ दो."
जब बाबरी मस्जिद ढहाई जा रही थी तो अभियुक्त हर्षित थे और मंच पर उपस्थित लोगों के साठ उत्साहित होकर मिठाई बांटी जा रही थी. अभियुक्तों के भाषण से उत्तेजित होकर पहले बाबरी मस्जिद ढहाई गई और उसी दिन अयोध्या में स्थित मुसलमानों के घरों को तोड़ा गया, जलाया गया, मस्जिदें और कब्रें तोडी गईं. इससे मुसलमानों में भय उत्पन्न हुआ और वे अयोध्या छोड़ जाने को बाध्य हुए.
रायबरेली में चल रहे केस नम्बर 198 के सभी अभियुक्तों, विशेषकर उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा पर ऐसे आरोप हैं. सभी अभियुक्त ने आरोपों से इनकार किया है.

विनय कटियार

विनय कटियार की पहचान विश्व हिंदू परिषद के सहयोगी संगठन बजरंग दल के नेता के रूप में रही है. वह अपने उग्र और विवादस्पद बयानों के लिए जाने जाते रहे हैं.
चार्जशीट के अनुसार 14 नवंबर 1992 को विनय कटियार ने अयोध्या में कहा कि बजरंग दल का आत्मघाती दस्ता कार सेवा करने को तैयार है, और छह दिसंबर को मौत दस्ता शिवाजी की रणनीति अपनाएगा.
विवादित मस्जिद गिरने से एक दिन पूर्व पांच दिसंबर को अयोध्या में विनय कटियार के घर पर एक गोपनीय बैठक हुई, जिसमे आडवाणी के अलावा शिव सेना नेता पवन पांडे मौजूद थे. इसी बैठक में विवादित ढांचे को गिराने का अंतिम निर्णय लिया गया.
चार्जशीट के अनुसार कटियार ने छह दिसंबर को अपने भाषण में कहा था, “हमारे बजरंगियों का उत्साह समुद्री तूफान से भी आगे बढ़ चुका है, जो एक नही तमाम बाबरी मस्जिदों को ध्वस्त कर देगा."

मुरली मनोहर जोशी

मुरली मनोहर जोशी आडवाणी के बाद भारतीय जनता पार्टी के दूसरे बड़े नेता हैं जो राम मंदिर आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिसा लेते रहे हैं.
जोशी छह दिसंबर को विवादित परिसर में मौजूद थे. चार्जशीट के अनुसार मस्जिद का गुम्बद गिरने पर उमा भारती आडवाणी और डॉ. जोशी के गले मिल रही थीं.
मुरली मनोहर जोशी के बारे में अभियोजन पक्ष की ओर से कहा गया है कि वे और आडवाणी कार सेवा अभियान के लिए मथुरा और काशी होते हुए दिल्ली से अयोध्या के लिए चले.
इन सभी पर आरोप है कि 28 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट से प्रतीकात्मक कारसेवा का निर्णय हो जाने के बाद भी इन लोगों ने पूरे प्रदेश में सांप्रदायिकता से ओतप्रोत भाषण दिए.
इन उत्तेजनात्मक भाषणों से धर्मनिरपेक्ष भारत में सांप्रदायिक जहर घोला गया.

हालांकि यह ज़िक्र करना समीचीन होगा कि चार साल पहले ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी माना था कि अयोध्या में राम मंदिर को बाबर और उसके सूबेदार मीरबाक़ी ने 1528 में मिसमार करके वहां बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया। मीरबाक़ी का पूरा नाम मीरबाक़ी ताशकंदी था और वह अयोध्या से चार मील दूर सनेहुआ से सटे ताशकंद गांव का निवासी था। इसी तथ्य को आधार बनाकर हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने सितंबर में बहुप्रतीक्षित ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाया था।
जिसमे विवादित स्थल को तीन हिस्सों में बांटने का निर्देश दिया था।